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नेशनल हेराल्ड: ऐसे खुर्द-बुर्द हुई मध्य प्रदेश की प्रॉपर्टी!

नेशनल हेराल्ड: ऐसे खुर्द-बुर्द हुई मध्य प्रदेश की प्रॉपर्टी!

मध्य प्रदेश में एसोसिएट जनरल्स लिमिटेड (एजेएल) की प्रॉपर्टियों के साथ क्या हुआ? पढ़िए, इस खबर में। 

बहुचर्चित नेशनल हेराल्ड केस को लेकर राजनीति पूरे उफान पर है। ईडी की पूछताछ में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने दो टूक कहा है, ‘नेशनल हेराल्ड की परिसंपत्तियों से लेकर अन्य वित्तीय कामकाज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे मोतीलाल वोरा ‘देखा’ करते थे। सोनिया-राहुल के इन ‘दावों’ में न केवल सच्चाई है, बल्कि बहुत दम भी है।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और इंदौर से जुड़ी एसोसिएट जनरल्स लिमिटेड (एजेएल) की मिल्कियतों को ‘खुर्द-बुर्द’ करने के आरोपों की ‘सत्य हिन्दी’ द्वारा की गई पड़ताल (सत्य हिन्दी के पास इस मामले से जुड़े अनेक दस्तावेज हैं) के अनुसार अखबार के नाम पर मिली जमीन को ‘बेखौफ’ होकर ‘ठिकाने’ लगाया गया।

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने 41 साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह द्वारा एजेएल को भोपाल और इंदौर में आवंटित की गई जमीन से जुड़े गड़बड़झाले की जांच कराये जाने का एलान किया है। शिवराज सरकार में नगरीय विकास और आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने सीनियर आईएएस से जांच कराने की घोषणा करते हुए दोनों ही शहरों की संपत्तियों को सील करने की बात भी कही है। इसके बाद उन लोगों में हड़कंप है, जिन्होंने इन भूखंडों पर अवैधानिक तरीके से निर्माण कर बेच दिये हैं अथवा इसका नियम विरूद्ध उपयोग कर रहे हैं। 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा एजेएल के चेयरपर्सन थे। एजेएल के डायरेक्टर रहे विश्वबंधु गुप्ता ने 24 अगस्त 2001 में भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की प्रॉपर्टी (प्लॉट नंबर 1) की पॉवर ऑफ अटार्नी दिल्ली के बड़े बिल्डर नरेंद्र कुमार मित्तल को दी थी।

जी 62 ईस्ट कैलाश नगर निवासी मित्तल की कंपनी मैसर्स गंगा इंटरप्राइजेज को भोपाल के महाराणा प्रताप नगर जोन वन क्षेत्र स्थित प्रेस कॉम्प्लेक्स की 1.14 एकड़ जमीन (करीब 50 हजार स्क्वायर फीट के भूखंड) पर बहुमंजिला इमारत विकसित करने सहित तमाम अधिकार दिये गये।

एजेएल ने पॉवर ऑफ अटार्नी 2001 में दी और मैसर्स गंगा इंटरप्राइजेज कंपनी का विधिवत गठन 2002 में हुआ, तब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार थी।

दिग्विजय सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहे तनवंत सिंह कीर (अब इस दुनिया में नहीं) की पत्नी श्रीमती इंदरबीर सिंह कीर और बहू श्रीमती हरप्रीत कीर को भी ‘वेंडर’ के रूप में प्रोजेक्ट से जोड़ा गया। इन्हें नरेंद्र कुमार मित्तल ने जोड़ा। कीर के परिजनों को बाद में प्रोजेक्ट से ‘रूखसत’ भी कर दिया गया।

एजेएल से मिली पॉवर ऑफ अटार्नी के तहत मित्तल ने 29 मार्च 2007 को भोपाल के एक अन्य बिल्डर-डेवलपर सौम्या होम्स के मुखिया संजय सिन्हा को वेंडर के तौर पर प्रोजेक्ट से जोड़ लिया। करार के तहत 46 प्रतिशत हिस्सेदारी सौम्या को और 54 प्रतिशत हिस्सा मित्तल की कंपनी को मिला।

सूत्र बताते हैं कि एजेएल के प्रकाशन नवजीवन और नेशनल हेराल्ड 1992 में बंद हो गये थे। इसी के बाद से बेशकीमती जमीन को ‘ठिकाने’ लगाने का ताना-बाना बुना गया। बाद में रणनीति के अनुसार जमीन को ठिकाने लगाया गया।

जमीन का उपयोग कॉमर्शियल करने का अधिकार नहीं था। यह नवजीवन और नेशनल हेराल्ड अखबारों (एजेएल के प्रकाशन) के लिये दी गई थी। बावजूद इसके ज्वाइंट वेंचर में यहां ‘सिटी सेंटर’ की स्थापना की गई। विकसित शो रूम, दुकानें और अन्य स्पेस बेचे गये।

भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए) का दफ्तर प्रेस कॉम्प्लेक्स में ही है। हैरतअंगेज यह है कि जमीन आवंटन की शर्तों के खुले उल्लंघन, बेजा दुरूपयोग और भव्य व्यावसायिक निर्माण पर बीडीए मैनेजमेंट की ‘नज़र’ कभी भी नहीं पड़ी।

बहरहाल, ‘सौदे गलत होने’ की ‘जानकारियां’ तब सामने आयीं, जब एजेएल के प्रोजेक्ट में प्रॉपर्टी खरीदने वाले कतिपय मालिकान अपने हिस्से में आये अंश का नामांतरण कराने प्राधिकरण के समक्ष पहुंचे। नामांतरण के आवेदनों को बीडीए ने पूर्व अनुमति और एनओसी के अभाव में निरस्त कर दिया।

एजेएल सहित कुल 39 अखबार मालिकों/पत्र समूहों को 27 एकड़ 22 डेसिमल जमीन भोपाल के प्रेस कॉम्प्लेक्स में बीडीए ने दी थी। जमीन का दाम एक लाख रुपये एकड़ तय किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और कांग्रेस की सरकार की ‘कृपा’ से मीडिया के लोगों को जमीन का आवंटन हुआ था।

जमीन खरीदने के लिये आवेदन करने वाले मीडिया मालिकों/समूहों की क्षमता को देखते हुए 5 हजार स्क्वायर फीट से लेकर 2 एकड़ तक के क्षेत्रफल वाले भूखंड काटे गये थे। जमीन 30 सालों की लीज पर थी। जमीन आवंटन की विभिन्न शर्ताें में भूमि का कॉमर्शियल उपयोग न होना एक मुख्य शर्त थी। खरीदारों से इस आशय (व्यावसायिक उपयोग नहीं करेंगे) के शपथ पत्र भी भरवाये गये थे।

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अधिकांश अलॉटीज ने नियमों का पालन नहीं किया। जमीन का मनमाफिक उपयोग हुआ। कुछ ने तो अलग-अलग आकार वाले फ्लेट्स के कॉम्प्लेक्स बनाकर खुले बाजार में बेच दिये। अनेक आवंटियों ने एक हिस्से में अखबार के प्रकाशन के लिए प्रिटिंग मशीन स्थापित करते हुए अन्य निर्माण कर प्रकाशन की तमाम व्यवस्थाएं कीं। 

जबकि भूमि के बचे हुए हिस्से में ऑफिस कॉम्प्लेक्स और अन्य निर्माण कर संपत्ति को ‘खुर्द-बुर्द’ कर दिया। किराये पर दे दिया।

‘2011 में लीज खत्म हुई तो हड़कंप मचा’

भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन की लीज 2011 में खत्म हुई। लीज खत्म होने के बाद बीडीए ने शिकंजा कसना शुरू किया। कई लीज निरस्त कीं। इससे हड़कंप मचा।

एजेएल के प्लॉट नंबर एक की लीज भी निरस्त की गई। सूत्र दावा करते हैं कि बीडीए कब्जा लेने की तैयारी में था, तब दिल्ली के एक बड़े वकील और केन्द्र में मंत्री रहे भाजपा के बड़े लीडर का कथित तौर पर फोन पहुंच गया। कब्जा लेने के लिये निकल रहे बीडीए के अमले को कदम पीछे खींचने पड़े।

वर्ष 2003 से मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है। साल 2011 में शिवराज सिंह मुख्यमंत्री थे। बीडीए इसी एंगल (सरकार भाजपा की है) को सामने रखकर ‘मुस्तैदी’ से काम कर रहा था। मगर दिल्ली के कथित ‘हस्तक्षेप’ के बाद मध्य प्रदेश की सरकार और अफसर ‘ठंडे पड़ गये।’

उधर, प्राधिकरण ने बाद में कानूनी दांव-पेचों से बचने और स्वयं की खाल उधड़ने से बचाने के लिए सीधे कब्जा लेने का प्राप्त अधिकार एक तरफ रखकर एजेएल की जमीन का पजेशन लेने के लिये कोर्ट में अर्जी लगा दी। बीडीए के कोर्ट जाने से वक्त मिल गया। एजेएल और पावर ऑफ अटार्नी लेने वालों ने अन्य ‘रास्ते निकाल लिये।’

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बीजेपी सरकार बड़ी दोषी हैः कांग्रेस

मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता के.के.मिश्रा का कहना है, ‘लैंडयूज भाजपा की सरकार में बदला। अन्य अनुमतियां भी बीजेपी सरकार में ही मिलीं। पहला दोष तो सरकार और उसके अधीन काम कर रही मशीनरी का ही है।’

संपत्ति को खुर्द बुर्द करने को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ दिवंगत नेता मोतीलाल वोरा पर लग रहे आरोपों और तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह (अब इस दुनिया में नहीं हैं) द्वारा जमीन देने के दौरान लागू की गई शर्तों के उल्लंघन से जुड़े सवाल पर मिश्रा ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘पूरे मामले का विस्तृत अध्ययन करने के बाद ही वे आगे कुछ बोल पायेंगे।’

दोषी जेल जायेंगे: भाजपा

मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता डॉक्टर हितेष वाजपेयी ने इस बहुचर्चित मामले को लेकर ‘सत्य हिन्दी’ से अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘नेशनल हेराल्ड के नाम आवंटित की गई परिसंपत्तियों की जांच में सामने आ रहा है कि कैसे निजी फायदे के लिये कांग्रेस पार्टी ने कौड़ियों के मोल ली गई जमीनों का खेल किया। जिस प्रायोजन से जमीन मिली उसके इतर उपयोग किया। 

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उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस के भ्रष्टाचार रूपी मकबरों की खुदाई में उसके सड़े इरादों की लाशें अब सामने आ रही हैं। इनसे बदबू फैल रही है। संपत्तियों को खुर्द-बुर्द करने की जांच से कांग्रेस भयभीत है।’ 

‘सत्य हिन्दी’ द्वारा पूछे जाने कि मध्य प्रदेश में भाजपा 2003 से सत्ता में है, मामला उसी के दौर का है अनियमितताओं की जानकारी थी तो कार्रवाई में इतना विलंब आखिर क्यों हुआ? डॉक्टर वाजपेयी ने कहा, ‘यह स्वीकारने में परहेज नहीं कि राजनैतिक और प्रशासनिक कारणों से देरी हुई, लेकिन अब तय मानिये - गड़बड़झाला करने वाले बचेंगे नहीं। सभी को जेल भेजा जायेगा।’ 

कई खरीददार कोर्ट गये, मामला लंबित

एजेएल की मिल्कियत वाले सिटी सेंटर में प्रॉपर्टी खरीदने वाले 6 लोग नामांतरण के लिये भोपाल विकास प्राधिकरण पहुंचे थे। पूर्व अनुमति और एनओसी के अभाव में आवेदन निरस्त हो गये। इसके बाद ये लोग सिविल कोर्ट गये। याचिका खारिज हो गई। हाई कोर्ट गये। वहां भी सफलता नहीं मिली। पुनः सिविल कोर्ट भेजा गया। केस खारिज हुआ तो नये याचिकाकर्ता कोर्ट पहुंच गये।

भोपाल विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बुद्धेष वैद्य ने बेहद पेचीदा और उलझे हुए एजेएल प्रकरण को लेकर पूछे जाने पर ‘सत्य हिन्दी’ को बताया कि प्राधिकरण ने नियमों का उल्लंघन करने वालों को तमाम नोटिस दिये। राज्य की सरकार को भी सूचनाएं भेज जाती रहीं।

वैद्य ने बताया एजेएल से जुड़ा मामला अभी भी कोर्ट में है। वर्ष 2019 में एक नये याचिकाकर्ता ने कोर्ट में आवेदन किया है। उस आवेदन पर आज सुनवाई हो रही है। कोर्ट का फैसले आने के बाद बीडीए आगे की कार्रवाई करेगा...(जारी)।

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