गुजरात : बीजेपी की जीत का अकेला शोमैन नरेंद्र मोदी
गुजरात के चुनाव नतीजे जरा भी चौंकाने वाले नहीं है। ये कांग्रेस के लिए तो चौंकाने वाले हो सकते हैं जो 17 सीटों तक सिमट आई है लेकिन 52.57 फीसदी वोट लेकर बीजेपी ने बता दिया कि वो 7वीं बार भी गुजरात की सत्ता संभालने को तैयार है। गुजरात विधानसभा चुनाव के अकेले शोमैन नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने हर बार की तरह साबित किया कि उनके बिना गुजरात नहीं जीता जा सकता। कुछ लोग इसका श्रेय बीजेपी के कथित चाणक्य अमित शाह और साफ-सुथरी छवि वाले सीएम भूपेंद्र पटेल को भी देंगे लेकिन हकीकत में इस जीत का श्रेय मोदी को ही मिलेगा।
गुजरात में इससे पहले 1985 में माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 55.55 फीसदी वोट लेकर 149 सीटें जीती थीं लेकिन मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 2022 में उस रेकॉर्ड को ध्वस्त करने जा रही है। उसे 150 से ज्यादा सीटें मिलने जा रही हैं। यह काम कोई राजनीतिक शोमैन ही कर सकता था। हालांकि इस प्रचंड जीत का श्रेय खुद मोदी और अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं को देंगे लेकिन हकीकत यही है कि मोदी ने यह प्रचंड जीत दिलाई है।
गुजरात चुनाव को पीएम मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाया। खुद पूरी व्यूह रचना रची। अमित शाह बस जहां-तहां नजर आए। हर चुनाव में आरएएस को श्रेय देने का चलन या उसकी व्यूह रचना की बात की जाती रही है, लेकिन गुजरात में वो न प्रत्यक्ष और न ही अप्रत्यक्ष कहीं दिखाई दिया। गुजरात में घर-घर मोदी हो गया। गुजरात की जनता ने महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, मोरबी हादसे को ताक पर रखकर बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिया है। चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी को 156 सीटों पर विजय मिल सकती है। अभी तक घोषित नतीजों में से 42 सीटें उसने जीत ली हैं, 115 सीटों पर वो आगे चल रही है।
2017 के चुनावों में मोदी का साथ सौराष्ट्र ने नहीं दिया था और वहां कांग्रेस बहुत मजबूत होकर उभरी थी। इस बार बीजेपी ने सौराष्ट्र में कांग्रेस को धूल चटा दी है। यही नहीं उत्तरी गुजरात में इस बार बीजेपी का ही बोलबाला है। इस तरह वो भविष्यवाणियां गलत साबित हुईं जो उत्तरी गुजरात खासकर सौराष्ट्र में बीजेपी की स्थिति को खराब बता रही थीं। सूरत में बीजेपी से कारोबारियों के नाराज होने की खबरें आम थीं लेकिन अंत में कारोबिरयों के जिले ने भी बीजेपी का साथ दिया।
अब हर राज्य के चुनाव में एक चलन हो गया है, पहले बीजेपी के लिए हालात प्रतिकूल बताए जाते हैं। फिर वो धीरे-धीरे गति पकड़ती है और अंत में मोदी एक नायक की तरह आकर सबकुछ संभाल लेते हैं। बीजेपी ने इस बार करीब 30 फीसदी पुराने चेहरों के टिकट काट कर नए लोगों को मैदान में उतारा। बड़े पैमाने पर असंतुष्ट सामने आए। उन्होंने गांधीनगर में बीजेपी मुख्यालय कमलम से लेकर अहमदाबाद की सड़कों पर प्रदर्शन किए और राजनीतिक पंडित मान बैठे कि इस बार बीजेपी के लिए मुश्किल होगी। चुनाव प्रचार आगे बढ़ा। मोदी की रैलियां होने लगीं। मोदी खुद को पीड़ित के रूप में पेश करने लगे। कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी को रावण कहकर आग में घी डाल दिया। मोदी समेत पूरी बीजेपी हमदर्दी पाने के लिए इसे मुद्दा बना दिया।
गुजरात में चुनावों की घोषणा के बाद पीएम मोदी ने 30 से अधिक रैलियां कीं और पूरा चुनाव युद्ध अपने दम पर लड़ा। इनमें से 5 घंटे के मेगा रोड शो का जिक्र नहीं करना मोदी के साथ नाइंसाफी होगी। बीजेपी ने दावा किया कि यह किसी भी भारतीय नेता द्वारा अब तक का सबसे बड़ा रोड शो था। टीवी चैनलों ने इस रोड शो को लाइव दिखाकर जनता को चमकदार गाड़ियों के दर्शन से महरूम नहीं किया। मोदी का अपना काफिला रोककर एम्बुलेंस को रास्ता देना भी जनता को पसंद आया। मोदी की हर अदा गुजरात के मतदाता को पसंद आई। वरना इतने बड़े पैमाने पर बीजेपी की सीटें नहीं आई होतीं।
बहरहाल, गुजरात में कांग्रेस की उम्र कम हो गई है। इसमें उम्मीद की किरण सिर्फ आम आदमी पार्टी के लिए है, जो आने वाले समय में कांग्रेस के बाकी वोट शेयर पर भी कब्जा कर सकती है। अभी तो उसने शुरुआत की है। पार्टी को पारंपरिक रूप से कांग्रेस के प्रभुत्व वाली सीटों पर भारी बढ़त मिली है।
एग्जिट पोल ने दावा किया था कि कांग्रेस को 2017 में जीती गई सीटों की आधी सीटें मिलेंगी, और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी मुश्किल से अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। नौ एग्जिट पोल ने कुल मिलाकर संकेत दिया था कि बीजेपी राज्य की 182 सीटों में से 132 सीटें जीत सकती है। कांग्रेस 38 और आप सिर्फ 8। लेकिन कांग्रेस और आप इन आंकड़ों से भी कम सीटें ला रही हैं।
2002 के बाद से गुजरात में बीजेपी की सीटों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही थी और 2017 में तो वो 99 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार बीजेपी के कथित चाणक्य अमित शाह ने राज्य के बीजेपी नेताओं को 140 का टारगेट दिया था। इस दौरान पार्टी की मांग पर मुख्यमंत्री भी बदल दिया गया। पार्टी ने वास्तव में अमित शाह के टारगेट से भी आगे जाकर अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की।
विपक्ष की भूमिका पर सवाल
बीजेपी की जीत में काफी हद तक विपक्ष की भी भूमिका है। इसके लिए प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस पूरी तरह से जिम्मेदार है। जिसने चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही मैदान छोड़ दिया। प्रचार यह किया गया कि कांग्रेस चुपचाप चुनाव लड़ रही है। लेकिन इसका नतीजा सामने है। कांग्रेस के प्रचार का दारोमदार राहुल गांधी पर था, जो भारत जोड़ो यात्रा की वजह से गुजरात में बहुत कम समय दे पाए। इसके मुकाबले 2017 में कांग्रेस ने ज्यादा बेहतर ढंग से चुनाव लड़ा था और बीजेपी को 99 सीटों पर समेट दिया था।इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाएगा कि आखिर 2022 में कांग्रेस ने ज्यादा मुखर होकर चुनाव क्यों नहीं लड़ा। वो गुजरात में किसी भी तरह के मुद्दे पर आंदोलन करती नहीं दिखाई दी। कांग्रेस को अगर ये लगता है कि जनता थक हारकर उसे एक दिन वोट देगी तो वो एक दिन राजनीति में कभी नहीं आता। बीजेपी 27 वर्षों से गुजरात की सत्ता में है। अब उसे पांच साल और मिल गए हैं। इस तरह उसने अंगद की तरह पैर जमा लिए हैं। इन चुनाव नतीजों का असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर निश्चित रूप से पड़ेगा। उस समय भी कांग्रेस के लिए कहने को कुछ नहीं होगा। जनता उसका इंतजार नहीं कर रही है, बल्कि कांग्रेस को अब जनता का इंतजार करना होगा।