महाराष्ट्र की सियासत के दो बड़े सूरमा आमने-सामने हैं। इनके नाम हैं- नारायण राणे और उद्धव ठाकरे। राणे बीजेपी में हैं और केंद्र सरकार में मंत्री हैं जबकि ठाकरे शिव सेना के प्रमुख हैं और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर हैं। दोनों के बीच पुरानी सियासी अदावत रही है। इस अदावत को जानने के लिए पीछे चलना होगा।
69 साल के राणे ने अपना राजनीतिक करियर शिव सेना से ही शुरू किया था। वह शिव सेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के बेहद करीबियों में शुमार होते थे। 1990 में पहली बार शिव सेना के टिकट पर विधायक बने थे।
उद्धव का किया था विरोध
राणे शिव सेना में शाखा प्रमुख जैसे शुरुआती दायित्व से चलकर बाला साहेब के आशीर्वाद से 1999 में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। लेकिन 2003 में जब उद्धव ठाकरे को शिव सेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया तो राणे ने इसका पुरजोर विरोध किया और उनका विरोध जारी रहने के बाद 2005 में बाला साहेब ठाकरे ने राणे को पार्टी से बाहर कर दिया।
कांग्रेस भी छोड़ी
राणे की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं हैं। शिव सेना छोड़ने के बाद वे कांग्रेस में आए लेकिन 2017 में कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने पार्टी पर आरोप लगाया कि उसने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा पूरा नहीं किया। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष बनाई और फिर उसका बीजेपी में विलय कर दिया। राणे के बेटे नितेश राणे भी विधायक हैं।
2019 में राणे को बीजेपी ने राज्यसभा में भेजा। इसके बाद राणे ने ठाकरे परिवार पर चुन-चुनकर हमले किए और जो उनका ताज़ा बयान है, जिसे लेकर इतना विवाद हुआ है, यह उसी दिशा में एक और बयान है।
राणे के सियासी क़द का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मोदी कैबिनेट के हालिया विस्तार में उन्हें पहले नंबर पर शपथ दिलाई गई थी।
बीएमसी चुनाव पर नज़र
बीजेपी की नज़र फरवरी, 2022 में होने वाले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के चुनाव पर है। महा विकास अघाडी के तीनों दल मिलकर बीएमसी का चुनाव लड़ेंगे तो निश्चित रूप से बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी होगी, इसलिए बीजेपी चाहती है कि राणे के प्रभाव का इस्तेमाल बीएमसी चुनाव में किया जाए।
राणे की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान भी बीजेपी ने बीएमसी चुनाव को लेकर माहौल बनाने की कोशिश की। जन आशीर्वाद यात्रा पर मुंबई पुलिस काफ़ी सख़्त रही और उसने इसके आयोजकों और बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ धड़ाधड़ एफ़आईआर दर्ज कर दीं।
राणे और उद्धव के बीच यह सियासी अदावत आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है क्योंकि राणे उन्हें गिरफ़्तार किए जाने के मामले में इतनी आसानी से चुप नहीं बैठेंगे। राणे अगर क़दम उठाएंगे तो निश्चित तौर पर उद्धव भी उसका जवाब देंगे।