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खींचतान के बीच एमवीए ने 2024 में सीट-शेयरिंग का फॉर्मूला निकाला?

खींचतान के बीच एमवीए ने 2024 में सीट-शेयरिंग का फॉर्मूला निकाला?

क्या महाराष्ट्र में चुनाव से पहले पहली बार साथ आने वाली कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी आख़िर 2024 के लिए सीट-शेयरिंग किस तरह कर पाएँगे? क्या उनके बीच में सहमति बनना इतना आसान है?

एमवीए के सहयोगी दलों के अंदर ही जब कई तरह के घमासान चलने की ख़बरें आ रही हैं तो क्या वे 2024 के लिए एमवीए गठबंधन के तौर पर फ़ैसला ले पाएँगे? एनसीपी के कई नेता ईडी जांच का सामना कर रहे हैं, पिछले महीने कयास लगाए जा रहे थे कि अजीत पवार भाजपा के साथ हाथ मिलाने वाले हैं और कांग्रेस में भी अपने आंतरिक कलह की रिपोर्टें हैं। एमवीए के इन दलों के बीच इतनी दिक्कतों के बावजूद ख़बर है कि 2024 के लिए सीट शेयरिंग का फ़ॉर्मूला निकाल लिया गया है और क़रीब-क़रीब तीनों दलों के बीच सहमति बनने के आसार हैं। तो सवाल है कि आख़िर यह फ़ॉर्मूला क्या है और वे दल आख़िर उस पर सहमत होते कैसे दिख रहे हैं?

अगले साल के आम चुनाव के लिए हालाँकि, सहमति बनने की ख़बर आ रही है, लेकिन इस मामले में ठोस बातचीत अभी तक नहीं हो पाई है। लेकिन सीटों पर अपने-अपने दावे के लिए महा विकास अघाड़ी यानी एमवीए गठबंधन के तीनों घटक दलों ने चुनावी क्षेत्रों में सर्वे कराया है। इन सर्वे के आधार पर ही एनसीपी, शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर ज़्यादा दिक्कत आती नहीं दिख रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 44 पर उनके बीच एक शुरुआती सहमति बन रही है। द इंडियन एक्सप्रेस ने एमवीए सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि पार्टियों ने इन 44 सीटों पर शुरुआती चर्चा की है। रिपोर्ट के अनुसार एक विपक्षी नेता ने कहा, '17 पर कांग्रेस, 15 पर शिवसेना (यूबीटी) और 12 पर एनसीपी। यह एक बहुत ही शुरुआती चर्चा है और अभी तक कुछ भी तय नहीं किया गया है।' कहा गया है कि अन्य चार सीटों पर चर्चा आने वाले दिनों में होगी।

हालाँकि, यह सीट शेयरिंग का मोटे तौर पर आकलन शुरुआती है और 2024 के चुनाव नज़दीक आने पर कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में फेरबदल हो सकता है। कहा जा रहा है कि तीनों दलों में ऐसी बातचीत है कि शुरुआती चर्चाओं के आधार पर प्रत्येक पार्टी आगे अपनी ताक़त का आकलन करेगी और रणनीति पर फिर से विचार करेगी।

एमवीए गठबंधन में अब तक जो सीट शेयरिंग को लेकर बातें सामने आ रही हैं उसका फ़ॉर्मूला यह है कि तीनों दलों ने उन सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार उतारने का फ़ैसला किया है जहाँ वे मज़बूत हैं। इसके लिए इन दलों ने जमीनी हकीकत का आकलन कराया है।

रिपोर्ट है कि तीनों पार्टियों में से प्रत्येक ने राज्य का अपना जमीनी आकलन पूरा कर लिया है। पिछले हफ्ते एनसीपी प्रमुख शरद पवार के आवास पर एक बैठक के दौरान महाराष्ट्र में आम चुनावों को लेकर कथित तौर पर सीट-दर-सीट चर्चा की गई थी।

कथित तौर पर नेताओं ने सीट-बँटवारे की बातचीत में यह तय किया है कि किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा को हराने की सबसे अधिक संभावना वाली पार्टी को वरीयता मिलेगी, भले ही पिछले चुनावों के परिणाम कुछ भी रहे हों।

हालाँकि सीट बंटवारे को लेकर शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत के जो पहले बयान आए थे वे थोड़े अलग थे। उन्होंने हाल ही में कहा था कि 2019 में उनकी अविभाजित पार्टी ने जिन 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, उन पर किसी अन्य पार्टी के चुनाव लड़ने का कोई सवाल ही नहीं है। उनका यह बयान तब आया था जब एनसीपी प्रमुख ने कहा था कि उनकी पार्टी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में वर्तमान राजनीतिक स्थिति का विस्तृत विश्लेषण करेगी, जिसके आधार पर एनसीपी अपने एमवीए भागीदारों के साथ सीटों के लिए सौदेबाजी करेगी। 

बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों में तत्कालीन यूपीए सीट-बंटवारे की व्यवस्था के तहत एनसीपी को 22 सीटें आवंटित की गई थीं, जिनमें से पवार की पार्टी ने 19 पर चुनाव लड़ा था, अन्य तीन को उसके छोटे सहयोगियों के लिए छोड़ दिया था। एनसीपी ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में एनसीपी का 12 सीटों पर अविभाजित शिवसेना के साथ सीधा मुकाबला था। 

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एनसीपी नेता अजीत पवार ने मंगलवार को कहा कि 2019 में एमवीए सहयोगियों द्वारा जीती गई 25 सीटों के अलावा अन्य सीटों पर चर्चा होनी बाक़ी है। 2019 में केवल एक सीट जीतने वाली कांग्रेस ने कहा है कि 2024 के लिए सीटों के बंटवारे की बातचीत में जीतने की क्षमता ही एकमात्र मानदंड होना चाहिए। 

हालाँकि, इसके बावजूद एमवीए के सामने सीट बंठवारे की चुनौतियाँ कम नहीं हैं। तीनों दलों को प्रकाश आम्बेडकर के नेतृत्व वाले वंचित बहुजन अगाड़ी (वीबीए) और राजू शेट्टी के नेतृत्व वाले स्वाभिमानी पक्ष जैसे छोटे सहयोगियों को भी समायोजित करना होगा। इन दलों के बीच एक बार सीटों के बंटवारे पर सहमति बन जाने के बाद भी किसी संभावित विद्रोह जैसी स्थिति से भी निपटने की चुनौती होगी। 

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