
मोदी के मन में बसे हैं मुसलमान!
मोदी जी बार-बार कह रहे हैं कि वे मुसलमानों के सबसे बड़े हितैषी हैं मगर मुसलमानों को ये छोटी सी बात समझ में ही नहीं आ रही। उन्हें लगता है कि मोदी उन्हें दबा रहे हैं, ख़त्म कर रहे हैं, उन्हें कमज़ोर कर रहे हैं, उनके मज़हब पर हमले कर रहे हैं।
मुसलमानों को एहसास ही नहीं है कि मोदी जी उनके बारे में कितना सोचते हैं। सच तो ये है कि वे दिन रात उन्हीं के बारे में सोचते रहते हैं। उनके ख्वाबों में, खयालों में मुसलमान ही रहते हैं। ऐसा कोई क्षण नहीं गुज़रता जब वे मुसलमानों के बारे में न सोचते हों। उनके पल-पल में मुसलमान बसे हुए हैं।
वास्तव में उनके बराबर तो सेकुलर राहुल गाँधी भी उनके बारे में नहीं सोचते होंगे। वे तो दलित, पिछड़े, आदिवासियों की तरफ चले जाते हैं, मगर मोदीजी एकनिष्ठ भाव से मुसलमान मुसमान जपते हैं।
जो लोग मोदी को लंबे समय से जानते हैं उन्हें पता है कि उनके मुसलमानों के साथ कितने प्रगाढ़ संबंध है। सच तो ये है कि वे उनके बिना जी ही नहीं सकते। अगर मुसलमान न हों तो उनका जीवन सूना हो जाएगा।
उन्होंने घर छोड़ा, परिवार छोड़ा, पत्नी छोड़ी तो इसीलिए क्योंकि उनके मन में मुसलमानों का वास था। उन्होंने मुसलमानों के प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए सब कुछ त्याग दिया।
फिर जो थोड़ा सा भी आरएसएस को जानता है उसे पता है कि हर स्वयंसेवक को पहला पाठ मुसलमानों के बारे में पढ़ाया जाता है और अंतिम पाठ भी मुसलमानों का ही होता है। उन्हें घुट्टी में ये ज्ञान पिलाया जाता है कि उन्हें मुसलमान के प्रति कैसा प्रेम-भाव रखना है।
हिंदू राष्ट्र के निर्माण में मुसलमानों का योगदान किस तरह से हो सकता है ये संघ का मूल पाठ है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना बिना मुसलमानों के योगदान के पूरी हो ही नहीं सकती।
गोलवलकर से लेकर भागवत तक सब मानते हैं कि अगर मुसलमान ठीक हो जाएं तो सब ठीक हो जाएगा। हिंदू अगर बिगड़े हैं तो उसका कारण भी मुसलमान ही हैं। देश को सुधारने के लिए मुसलमानों को सुधारना ज़रूरी है।
संघ में प्रशिक्षण के बाद श्रेष्ठ स्वयंसेवक भी उसी को घोषित किया जाता है जो मुसलमानों के बारे सबसे ज़्यादा सोचता और करता है।
हिंदू राष्ट्र के प्रोजेक्ट के केंद्र में भी मुसलमान ही हैं, वे उसकी धुरी हैं। इसीलिए जितनी बातें वेदों पुराणों और भगवान राम कृष्ण की नहीं की जातीं उतनी अकबर बाबर की की जाती हैं। मंदिरों से ज़्यादा मस्जिदों की बात की जाती है और हिंदुओं से ज़्यादा मुसलमानों की।
“
इसलिए आपको हिंदुत्व की विचारधारा में मुसलमानों के महत्व को समझना चाहिए।
अब मोदी जी से बड़ा स्वयंसेवक भला कौन हो सकता है। वे जितने अडानी के हैं उससे रत्ती भर भी कम संघ के नहीं हैं। अगर आप उनके भाषणों का अध्ययन करके देख लीजिए, शर्तिया यही पाएंगे कि वे हिंदुओं से ज़्यादा मुसलमानों के बारे में बोलते हैं।
जब वे प्रचारक मात्र थे तो पूरे देश में मुसलमानों के बारे में जागृति पैदा करते रहे। फिर जब मुख्यमंत्री बने तो पूरे गुजरात को उन्होंने मुसलमानमय बना दिया। और प्रधानमंत्री बनने के बाद तो वे इस दिशा में अनथक प्रयास कर ही रहे हैं।
लब्बोलुआब ये कि मुसलमान मोदी जी के मन मस्तिष्क पर छाए हुए हैं। 24X7 अगर वे काम करते हैं तो केवल मुसलमानों के लिए। हर क्षण वे इसी प्रयास में लगे रहते हैं कैसे मुसलमानों का भला करें। अगर उनका वश चलता तो वे सीना चीरकर दिखा देते कि कैसे वहाँ औरंगज़ेब की तस्वीर सजी हुई है।
फिर भी अगर मुसलमान उनसे नाराज़ हैं तो इसलिए कि वे तुष्टिकरण करने वाले दलों और नेताओं के जाल में फँसे हुए हैं। वे उनके दुष्प्रचार के शिकार हो रहे हैं, वे उनसे गुमराह हो रहे हैं।
मुसलमानों के पिछड़े होने की भी यही वज़ह है। मोदी सरकार उनकी तरक्की की नई-नई योजनाएं ला रही है, उनको आगे बढ़ने के मौक़े दे रही है मगर वे उनका फ़ायदा ही नहीं उठा पा रहे हैं।
अब देखिए वक़्फ़ बिल का हौआ खड़ा कर दिया गया और वे उसके फेरे में आ गए। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि मोदी जी ने उनके भले के लिए कानून बनाया है। वक्फ की बेकार पड़ी ज़मीन अगर सरकार अडानी, अंबानी आदि को देगी तो उसका विकास होगा। उससे देश का विकास होगा और देश विकसित राष्ट्र बनेगा। इसका श्रेय किसको मिलेगा-मुसलमान भाईयों को।
इससे मुसलमानों की छवि भी सुधरेगी। ये धारणा बदलेगी कि वे देश का विकास नहीं चाहते, केवल अपने मज़हब से चिपटे रहते हैं। हिंदुओं का भी उन पर भरोसा बढ़ेगा।
कहने का मतलब ये हैकि थोड़ा खुले दिमाग़ से सोचेंगे तभी तो उनको इसके फ़ायदे नज़र आएँगे। दुष्प्रचारमें फँसे रहेंगे तो देश की मुख्यधारा से कटे रहेंगे।
बुल्डोजर जस्टिस के मामले में भी उन्हें भ्रमित किया गया है। ये भ्रम फैलाया गया है कि वह मुसलमानों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रहा है। सचाई ये है कि मोदी जी ने योगी समेत सभी भाजपाई मुख्यमंत्रियों को एक रणनीति के तहत इसके इस्तेमाल के लिए कहा है।
और उनकी रणनीति का पॉजिटिव असर देखिए। बुल्डोज़र के इस्तेमाल का मुसलमानों को सीधा फ़ायदा ये हुआ है कि हिंदुओं का गुस्सा इस बहाने निकल जाता है। अगर बुल्डोज़र न चलाया जाता तो वे अपना गुस्सा निकालने के लिए दंगे करते, जिनसे मुसलमानों को ज़्यादा नुकसान होता।
मॉब लिंचिंग,छोटे-मोटे दंगे, मारपीट, गाली गलौज़ सबका लाभ यही है कि हिंदुओं का गुस्सा इनमेंनिकल जाता है और गुजरात या मुज़फ्फ़रनगर सरीख़े दंगे नहीं होते। दिल्ली दंगे जैसेछोटे दंगों में झगडा सुलट जाता है।
बुल्डोजर जस्टिस प्रेशर कुकर के सेफ्टी वाल्व की तरह है।
कुछ साल पहले नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर भी मुसलमान उसी दुष्प्रचार में फँस गए थे जबकि सरकार तो उनकी सुरक्षा के लिए कानून बना रही थी। आख़िर उनको किसी और देश में जाने से रोक तो नहीं लगाई गई। वे कहीं भी जाने के लिए आज़ाद हैं।
हाँ, बाहर से अगर और मुसलमान आने लगे तो उन्हीं का कष्ट बढ़ेगा। हिंदू रोना रोएंगे कि देखिए मुसलमानों की आबादी इतनी बढ़ गई लेकिन नागरिकता संशोधन कानून बनाकर मोदी जी ने उन्हें इस आरोप से बचा लिया।
मोदी जी का वह बयान जब तब तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है कि मुसलमानों को तो उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। सच बात तो ये है कि मोदी जी हर धार्मिक समुदाय की पहचान का आदर करते हैं और इसी संदर्भ में उन्होंने ऐसा कहा था।
अब अगर वे हिंदुओं के बारे में यही कह देते तो क्या उससे उनका अपमान हो जाता, नहीं होता। कोई हिंदू बुरा नहीं मानता। मुसलमानों को भी बुरा नहीं मानना चाहिए।
बार-बार ये भी याद कराया जाता है कि मोदी ने स्कल कैप पहनने से इंकार कर दिया था या वे इफ़तार पार्टी नहीं करते। अब ये बात मुसलमानों को कैसे समझाई जाए कि मोदी जी ये सब उनके हित में करते हैं। अगर वे भी ये सब करने लगेंगे तो उनके बारे में भी कहा जाने लगेगा कि वे भी तुष्टिकरण की राह पर चल पड़े हैं। इससे उनकी विश्सनीयता भी कांग्रेसियों की तरह हो जाएगी और फिर वे हिंदुओं को कंट्रोल नहीं कर पाएंगे।
बात-बात में गुजरातदंगों को बीच में लाना भी ग़लत है। गड़े मुर्दे उखाड़ने की लोगों को ख़राब आदत है।मुसलमानों को सोचना चाहिए कि अगर मोदी जी उस समय नियंत्रित ढंग से हिंदुओं कागुस्सा न निकलने देते तो कितनी बड़ी हिंसा होती, कितने लोग मारे जाते।
मुसलमानों को ये भी समझना चाहिए कि मोदी जी कितने बड़े नेता हैं। जितना चौड़ा उनका सीना है उतना ही बड़ा उनका दिल भी है। वे दूर की सोचते हैं और इसीलिए 11 साल से इतने बड़े देश को चला रहे हैं और बीस करोड़ मुसलमानों को उन्होंने बचाकर रखा हुआ है। नहीं तो हिंदू राज आते ही क्या होना था ये सब जानते हैं।
मोदी जी दिल से चाहते हैं कि मुसलमान जहालत से बाहर निकलें और विकास करें। यही सोचकर उन्होंने तलाक का कानून बनवाया था। इस कानून के बनने से मुस्लिम महिलाओं के लिए मुक्ति का द्वार खुल गया है। अब वे भी उतनी आज़ाद हो गई है जितनी हिंदू औरतें।
विपक्षी दल मुसलमानों की स्कॉलरशिप वगैरा में कटौती को लेकर विलाप करते रहते हैं मगर उसका भी यही पवित्र मक़सद है कि वे अपने पैरों पर खड़े हों, सरकारी बैसाखियों को लात मारें और आगे बढ़ें।
उम्मीद है कि सौग़ात ए मोदी मिलने के बाद मुसलमानों में नई जागृति आएगी और वे मोदी की असली मंशा को समझ सकेंगे। वे अपने असली हितैषी को पहचानेंगे और गुमराह करने वाली ताक़तों से बचेंगे। उन्हें अब वक़्फ़ कानून को तहेदिल से कबूल करते हुए मोदी जी का शुक्रिया अदा करना चाहिए।
सौग़ात-ए-मोदी के बार रिटर्न गिफ़्ट तो देना ही चाहिए न?