लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बड़ा सपना संजोये समाजवादी पार्टी को न सिर्फ़ क़रारी हार मिली, बल्कि ख़ुद मुलायम परिवार की बहू और भतीजे भी चुनाव नहीं जीत सके। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बाद भी समाजवादी कुनबे का बुरा हश्र देख 25 साल पुरानी इस पार्टी में बहुत कुछ बदलने की चर्चाएँ भी चलीं जिनमें सपा मुखिया अखिलेश के चाचा शिवपाल की घर वापसी प्रमुख थी। हालाँकि शिकस्त के बाद भी अखिलेश का दिल अभी चाचा शिवपाल को लेकर साफ़ नहीं हो सका है। शिवपाल के क़रीबियों की मानें तो उनकी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) का अपना अलग वजूद कायम रहेगा और अखिलेश से कोई मेल नहीं होगा। इतना ही नहीं, अखिलेश को हटाकर एक बार फिर से मुलायम सिंह यादव को सपा की कमान दिए जाने की भी कोई योजना नहीं है। सपा नेताओं की मानें तो हार के सदमे से उबरने के बाद अखिलेश एक बार फिर से पार्टी को खड़ा करेंगे और ज़रूरी बदलाव करेंगे। पार्टी में हाशिए पर चले गए मुलायम सिंह यादव की राय अब सभी अहम फ़ैसलों में ज़रूर ली जाएगी और वह पहले से ज़्यादा सक्रिय दिखेंगे, लेकिन अध्यक्ष अखिलेश यादव ही रहेंगे।
शिवपाल से नहीं सुलझी मन की गाँठ
लोकसभा चुनावों में महज पाँच सीटों पर सिमट जाने और डिंपल यादव, अक्षय यादव व धर्मेंद्र यादव जैसे कद्दावर नेताओं की हार के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि भतीजे से मनमुटाव के बाद सपा छोड़ अपनी अलग पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव की वापसी हो सकती है। ख़बरें यह भी थीं कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने ख़ुद पहल भी की है और अखिलेश यादव से बात की है। लंबे समय तक सपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे शिवपाल की संगठन पर गहरी पकड़ है। हालाँकि इस कवायद के बाद भी अखिलेश किसी भी क़ीमत पर शिवपाल की वापसी को लेकर तैयार नहीं हैं। इसी हफ़्ते जब मुलायम की सेहत का हालचाल लेने मुख्यमंत्री योगी उनके घर पहुँचे तो अखिलेश के साथ शिवपाल भी मौजूद थे। हालाँकि बाद में जब अखिलेश ने इस शिष्टाचार भेंट की तसवीर को ट्वीट किया तो उसमें शिवपाल नहीं थे।
सपा मुखिया के क़रीबी लोगों का कहना है कि बदायूँ में धर्मेंद्र हों या कन्नौज में डिंपल या यादव बेल्ट की ज़्यादातर सीटें, इन सभी सीटों पर शिवपाल ने हराने का काम किया है।
फिरोज़ाबाद में तो रामगोपाल यादव के बेटे के सामने शिवपाल ख़ुद मैदान में थे और 95000 वोट काट कर सपा की हार तय कर दी। मायावती ने तो सपा-बसपा गठबंधन ख़त्म करते समय खुला आरोप लगाया था कि शिवपाल ने यादव वोट बीजेपी को ट्रांसफर कराने का काम किया।
सपा सूत्रों का कहना है कि अखिलेश और शिवपाल में दूरी व तल्ख़ी इतनी बढ़ चुकी है कि एक होने पर भी दोनों सहज नहीं रह पाएँगे। साथ ही शिवपाल के सपा में वापस होते ही फिर से वहाँ दो खेमे हो जाएँगे जिससे पस्तहाल पार्टी का और नुक़सान ही होगा।
हार से उबर अखिलेश पार्टी को मज़बूत बनाने में जुटे
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर हार के कारणों की समीक्षा के साथ अगली रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव में क़रारी हार के बाद सपा और बसपा अलग होकर विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।
सपा सूत्रों के मुताबिक़ अखिलेश यादव पार्टी के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं और ज़िला प्रभारियों से ख़ासे नाराज़ हैं। बैठकों में उनकी क्लास लिए जाने की बात सामने आ रही है। अखिलेश यादव अभी पार्टी संगठन में कोई बड़ा बदलाव करना चाहते हैं लेकिन उससे पहले कार्यकर्ताओं से राय लेकर ही लोगों की ज़िम्मेदारियाँ तय होंगी। यह भी तय है कि अखिलेश यादव आने वाले दिनों में चुनाव अकेले लड़ने का फ़ैसला ले सकते हैं, क्योंकि पिछले गठबंधन के प्रयोग में ज़्यादा नुक़सान उनकी समाजवादी पार्टी को ही उठाना पड़ा है। सपा-बसपा-रालोद से गठबंधन के बाद बाक़ी दोनों पार्टियों के वोट बढ़े वहीं सपा के वोट घट गए हैं।
अखिलेश अपने कोर ग्रुप का भी पुनर्गठन कर सकते हैं और उनके ईर्द-गिर्द रहने वाले कुछ चेहरे हाशिए पर धकेले जा सकते हैं। पार्टी में यादव चेहरों का दबदबा कम होने व अन्य पिछड़ी जातियों का रुतबा बढ़ने के आसार साफ़ हैं। उप-चुनाव में टिकटों को लेकर भी सपा मुखिया की सोच है कि पार्टी से जुड़े पुराने चेहरों को ही महत्व दिया जाए।
आसान नहीं होगी 2022 विधानसभा चुनाव की राह
क़रीब-क़रीब तय है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा अलग-अलग होकर मैदान में उतरेंगी। दूसरी ओर गुरुवार को प्रियंका गाँधी ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस किसी से गठबंधन नहीं करेगी। अब 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर सपा के सामने सबसे बड़ी परेशानी अपने खिसके हुए जनाधार को वापस पाने की है। सपा के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में उतरी बसपा ने ख़ासा फ़ायदा उठाते हुए न केवल जाटव-मुसलिम का बेहतरीन गठजोड़ तैयार कर लिया बल्कि प्रदेश में 65 विधानसभा सीटों पर बढ़त पायी है।
यूपी में सपा, बसपा और रालोद ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। बसपा सुप्रीमो मायावती को 38 में दस और अखिलेश यादव को 37 में से पाँच सीटों पर कामयाबी मिली है तो अजीत सिंह (5 सीट) की पार्टी का खाता भी नहीं खुला। हालाँकि विधानसभा सीटों के हिसाब से देखें तो 2017 में 19 विधायक तक सीमित रहने वाली बसपा को इस बार 65 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली है।
रोचक बात यह है कि उसने बिजनौर, नगीना, लालगंज और जौनपुर लोकसभा सीटों के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है।
2017 में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव का ही क़िला ढहा कर बीजेपी ने बाजी मारी थी और सपा के 47 ही विधायक बन सके थे। मौजूदा लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशियों को कुल 45 विधानसभा सीटों पर ही बढ़त मिली। इस दौरान सपा को आजमगढ़ के तहत आने वाली सभी पाँच विधानसभा सीटों पर विरोधी से अधिक वोट मिले, जहाँ से ख़ुद अखिलेश मैदान में थे।