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क्या मामा शिवराज मैदान में उतरकर नेतृत्व को चुनौती दे पायेंगे?

क्या मामा शिवराज मैदान में उतरकर नेतृत्व को चुनौती दे पायेंगे?

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या मैदान में उतरने की हिम्मत दिखायेंगे? क्या वे मोदी-शाह की जोड़ी से दो-दो हाथ कर पायेंगे? सीएम न बनाये जाने से दुःखी समर्थक लाड़ली बहनें एवं भांजे-भांजी वोटर शिवराज सिंह को कितने दिन याद रखेंगे? ऐसे अनेक सवाल मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में गूंज रहे हैं। जानिएः

भोपाल में बुधवार को जब मोहन यादव ने शपथ ले ली और कार्यक्रम खत्म हो गया तो पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान बाहर आए। सैकड़ों लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया और उनके समर्थन में नारे लगाने लगे। इनका कहना था कि आप हमें छोड़कर कहां जा रहे हैं। यह एक झलक मात्र है। प्रदेश में शिवराज के लिए सहानुभूति उमड़ी हुई है। इन हालात के बीच शिवराज के तेवर कभी-कभी बदल रहे हैं लेकिन क्या वो सिर्फ तेवर तक रहेंगे।

शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी चार पारियां खेलकर साइड लाइन कर दिये गये हैं। विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद शिवराज सिंह चौहान अलग अंदाज में आ गए थे, मोहन यादव के चयन के बाद उनके रवैये में पुराना अंदाज और सिर चढ़कर बोलता प्रतीत हो रहा है।

हालांकि मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी विधायक दल के नेता के चुनाव के पहले ही मामा ने स्वयं को मुख्यमंत्री पद की दौड़ से अलग बता दिया था। उन्होंने साफ कहा था, ‘वे सीएम पद की दौड़ में न पहले थे और ना ही अब हैंं। वे पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं, जो काम नेतृत्व देगा उसे संभालेंगे।’ शिवराज ने यह भी कहा था, ‘वे दिल्ली नहीं जायेंगे।’ दिल्ली नहीं जाने संबंधी उनके बयान के कई अर्थ निकाले गये।

पहला यह माना गया कि वे पुनः मुख्यमंत्री पद पाने के लिए आलाकमान के दरबार में नाक नहीं रगड़ेंगे। अन्य अर्थ यह निकाला गया कि वे केन्द्र की राजनीति नहीं करेंगे। विधायक दल का नेता चुने जाने और स्वयं ही मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव करने के बाद सीएम के चेहरे पर मुख्यमंत्री पद के लिए पांचवां अवसर न मिलने का अवसाद साफ तौर पर दिखा।

पूर्व सीएम शिवराज सिंह ने 12 दिसंबर को निवर्तमान मुख्यमंत्री के तौर पर प्रेस से बातचीत की। बातचीत में उनका यह बयान, ‘मर जाऊंगा, लेकिन अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगूंगा’ बेहद सुर्खियों में रहा। मुख्यमंत्री न बनाने की भनक लगने के बाद से शिवराज सिंह कई दिनों से कहते आ रहे हैं, ‘बहन और भांजे-भांजियों से रिश्ता बरकरार रहेगा। सबसे बड़ा रिश्ता (भाई एवं मामा) वाला ही है।

मुख्यमंत्री द्वारा मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस करने के पहले कई बहनों के मामा के सामने बिलख-बिलख रोने के फुटेज ने भी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं। मामा ने बहनों को गले लगाया। ढांढस बंधाया, ‘वे कहीं नहीं जा रहे हैं।’ मामा का यह अंदाज भी न्यूज चैनलों पर हेडलाइन बना। मामा शिवराज सिंह ने बुधवार को कबीर के भजन की लाइन ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ का उल्लेख कर उनके अपने गम को पुनः जाहिर कर दिया।

शिवराज सिंह अपने कबीना के सदस्य रहे मोहन यादव के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित रहे। शपथ ग्रहण समारोह के बाद स्थल से अपने वाहन की और बढ़े तो मामा शिवराज को ‘चाहने’ वालों ने बुरी तरह घेर लिया। सुरक्षा कर्मियों को मामा को भीड़ में सुरक्षित बनाये रखने में जमकर पसीना बहाना पड़ा। कल तो महिलाएं थीं, आज पुरूषों की भीड़ ने घेरा। मामा को न ‘छोड़ने’ की बात की।

एक भांजे ने तो यह भी कहा, ‘आप कहते थे हमें कभी भी नहीं छोड़ेंगे, लेकिन हमें छोड़कर जा रहे हैं।’ मामा किंकर्त्तव्यविमूड़ नज़र आये। कुछ बोल उनके मुख से नहीं फूटे। भीड़ के स्नेह से अभिभूत होने के भाव अलबत्ता उनके चेहरे पर उमड़े।

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक ऋषि पांडे ने कहा, ‘मामा के प्रति लोगों में अनुराग किसी से छिपा हुआ नहीं है। वे बहन एवं बेटियों के अलावा भांजों एवं सर्वहारा वर्ग में आज भी खासे लोकप्रिय हैं, मोहन यादव की शपथ ग्रहण समारोह में पहुंची भीड़ ने इस बात को बल दिया।’

भोपाल की एक गृहणी अनामिका कुलश्रेष्ठ ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मामा ठग लिए गए हैं। यह सच है उन्हें फिर से सीएम देखने के लिए हम बहनों ने उन्हें वोट दिया था।’ वे आगे कहती हैं, ‘बदलाव वक्त की मांग है, लेकिन अभी मामा को नहीं बदला जाना चाहिए था। मध्य प्रदेश में बहुत सारे बचे हुए विकास के काम होना हैं। लोकसभा चुनाव में मोदी और शाह को यह दांव भारी पड़ सकता है।’

भोपाल के एक व्यवसायी, भाजपा एवं मामा शिवराज सिंह के कामों के प्रशंसक अमित दुबे कहते हैं, ‘मोदी-शाह को पता है वोटर बहुत दिनों तक किसी को याद नहीं रखते हैं, कुछ दिन याद रखेंगे फिर मामा को भूल जायेंगे।’ दुबे आगे जोड़ते हैं, ‘शिवराज सिंह को लंबा वक्त हो गया था, लेकिन उनकी विदाई का तरीका हम जैसे उनके प्रशंसकों को भी जोरदार पीड़ा दे गया है। वे मोहन यादव से बेहतर फेस थे।’

मिशन 29 सफल हो पायेगा!

भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई 2024 के लोकसभा चुनाव में मिशन 29 का दावा ठोक चुकी है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 29 में से 28 सीटें जीतने का कीर्तिमान रचा था। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट भर भाजपा हारी थी और सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार नकुल नाथ (कमल नाथ के पुत्र) भर जीते थे।

पूर्व मुख्यमंत्री ने चुनाव के परिणाम आने और भाजपा विधायक दल का नेता न चुने जाने के पहले छिंदवाड़ा से ही ‘मिशन 29’ के संकल्प का आगाज़ किया था। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व, लोकसभा चुनाव में शिवराज को ‘आजादी’ (मिशन 29 जीतने का मुख्य सहयोगी का पद) देगा?

यदि शिवराज सिंह को नेतृत्व से ‘आजादी’ मिली भी तो...मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने से ‘बेहद दुःखी’ लाड़ली बहनें और भांजे-भांजी, शिवराज एवं भाजपा का 2023 विधानसभा के चुनावों जैसा साथ देंगे?

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