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मध्य प्रदेश : आज फ़्लोर टेस्ट होगा या स्पीकर इसे टालने में होंगे कामयाब?

मध्य प्रदेश : आज फ़्लोर टेस्ट होगा या स्पीकर इसे टालने में होंगे कामयाब?

मध्य प्रदेश में पिछले दस-बारह दिनों से चल रहे ‘द ग्रेट पाॅलीटिकल ड्रामे’ का सोमवार को पटाक्षेप हो पायेगा? कमलनाथ सरकार बचेगी या जायेगी?

मध्य प्रदेश में पिछले दस-बारह दिनों से चल रहे ‘द ग्रेट पाॅलीटिकल ड्रामे’ का सोमवार को पटाक्षेप हो पायेगा कमलनाथ सरकार बचेगी या जायेगी फ्लोर टेस्ट हो भी पायेगा अथवा इसे स्पीकर टालने में सफल होंगे क्या कमलनाथ सरकार की ढाल कोरोना वायरस बनेगा

 ये और ऐसे अनेक राजनीतिक सवालों के बहुतेरे जवाब 16 मार्च से शुरू हो रहे विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन सामने आ जायेंगे।

क्या करेगी कांग्रेस

मध्य प्रदेश की 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गहरे संकट में है। नंबर गेम में वह इस कदर पिछड़ गई है कि फ्लोर टेस्ट में उसका बच पाना मुमकिन नज़र नहीं आ रहा है। 

अब नंबरों के मान से सरकार को बचाने का एकमात्र रास्ता सत्तारूढ़ दल के सामने बीजेपी खेमे के विधायकों में बड़ी तोड़फोड़ बचा हुआ है। इसके आसार कतई नजर नहीं आ रहे हैं।

दरअसल कांग्रेस के 22 विधायकों ने नाथ सरकार और कांग्रेस का साथ छोड़ते हुए विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। इनमें छह के त्यागपत्र स्पीकर ने मंजूर भी कर लिये हैं।

राज्यपाल का 'मास्टर स्ट्रोक'!

तमाम सियासी गहमा-गहमी और दाँव-पेचों के बीच राज्यपाल लालजी टंडन ने ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेल दिया है। गेंद अब विधानसभा स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति के पाले में है। राज्यपाल ने शनिवार देर रात मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर फ्लोर टेस्ट देने को कहा है।

राज्यपाल के पत्र के बाद कमलनाथ सरकार को बचाने के कानूनी रास्ते कांग्रेस खोज रही है। भोपाल से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस के रणनीतिकार सक्रिय हैं। विधिवेत्ताओं से तमाम पहलुओं को लेकर विचार विमर्श हुआ।

उधर बीजेपी भी क़ानून की किताबों को खंगाल रही है। कांग्रेस छोड़कर कमलनाथ सरकार और पार्टी को गहरे संकट में डालने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दिल्ली में अपनी नई पार्टी बीजेपी के नेताओं के साथ रविवार को क़ानून के जानकारों से रायशुमारी करते रहे।

फिलहाल नंबरों को लेकर जो दृश्य है, उसे देखते हुए कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि कमलनाथ सरकार अब बच पायेगी।

नंबरों का गणित एक नज़र में

  • विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या : 230
  • रिक्त हैं दो सीटें
  • सिंधिया समर्थक 20 और दिग्विजय सिंह के खेमे के माने जाने वाले दो विधायकों बिसाहूलाल सिंह और ऐंदल सिंह कंसाना भी इस्तीफ़ा दे चुके हैं।
  • इस तरह से कुल 22 कांग्रेस विधायकों के त्यागपत्र पहुँचे हैं। 
  • सिंधिया समर्थक छह विधायकों के इस्तीफ़े स्पीकर ने मंजूर किये हैं। 
  • कुल 16 विधायकों के इस्तीफ़े अभी स्पीकर के पास लंबित हैं। इन विधायकों ने रविवार को एक बार फिर इस्तीफ़ा दे  दिया। 

222 या 204

यदि 16 विधायकों के इस्तीफे़ सदन की कार्रवाई आरंभ होने के पहले तक स्वीकृत नहीं होते हैं तो तकनीकी तौर पर विधानसभा सदस्यों का मौजूदा नंबर 222 रहेगा। इस अंक के मान से सदन में बहुमत साबित करने के लिए ज़रूरी नंबर 112 होंगे।

22 विधायकों के विद्रोह के बाद कांग्रेस का अपना नंबर स्पीकर को मिलाकर 92 है। बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायक वोटिंग के वक्त कांग्रेस का साथ देते हैं, तो भी नंबर 99 ही हो पायेगा।

यानी कांग्रेस को सरकार बचाने के लिए 13 विधायकों की ज़रूरत और पड़ेगी।

बीजेपी

उधर बीजेपी के पास संख्या बल 107 है। उसे 222 नंबरों के मान से सदन में कांग्रेस को हराने के लिए बहुत ज्यादा मशक्कत नहीं करना होगी। पाँच सदस्य उसे चाहिए होंगे। सरकार गिराने को लेकर चल रहे ‘खेल’ में कई बार बसपा और निर्दलीय विधायकों का झुकाव बीजेपी के पक्ष में नज़र आता रहा है।

सपा के सदस्य ने भी ताज़ा राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच भाजपा से मेल-मुलाकातें की हैं। चूंकि अखिलेश यादव ने रविवार को कहा है, सपा विधायक कांग्रेस का साथ देगा,  लिहाज़ा, सपा एमएलए के अब बीजेपी के साथ जाने की संभावना ख़त्म मानी जा रही है।

यह भी माना जा रहा है कि जिन 16 विधायकों के इस्तीफ़े मंज़ूर नहीं हुए हैं, वे सदन में आयेंगे ही नहीं। यदि आ भी जाते हैं तो कांग्रेस के साथ इनमें से अधिकांश चले जायें - इसकी उम्मीद भी नहीं है।

दूसरा गणित

दूसरा गणित यह बनता दिखलाई पड़ रहा है कि कांग्रेस के 16 बागी विधायकों को सदन से दूर रखते हुए बीजेपी अपना दाँव खेलेगी। ऐसे में कुल 204 नंबरों पर ज़ोर आजमाइश होगी। विधायकों का सदन में कुल आंकड़ा 204 होने पर ज़रूरी बहुमत की संख्या 103 हो जायेगी।

बीजेपी के पास अपने 107 विधायक हैं, लिहाज़ा, वह उसके अपने दो विधायकों के साथ ना देने पर भी कमलनाथ सरकार को आसानी से पटकनी देने में सफल हो जायेगी।

बीजेपी को शक

बीजेपी के दो विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल, नाथ सरकार को गिराने के लिए आरंभ हुए खेल के वक्त से ही बीजेपी को डाॅज दे रहे हैं। पिछले दस दिनों में कई बार दोनों विधायकों को मुख्यमंत्री से मेल-मुलाकात और कांग्रेस से पींगे बढ़ाते पार्टी ने ‘पकड़ा’ है। त्रिपाठी की माताजी का चार दिन पहले देहावसान हुआ है। वह फिलहाल अपने विधानसभा क्षेत्र में मैहर में थे। उम्मीद है कि कल वे विधानसभा पहुँचेंगे।

कांग्रेस का दावा 

बहुमत साबित करने का दावा कर रहा कांग्रेस का खेमा तो कह रहा है कि बीजेपी के दो नहीं, आधा दर्ज़न से कहीं ज़्यादा विधायक सरकार के साथ हैं। सोमवार को जब सदन में शक्ति परीक्षण होगा तो उसके इस दावे पर ‘मोहर’ लग जायेगी।

उधर कुछ ऐसा ही दावा बीजेपी पक्ष से भी हो रहा है। भाजपा ताल ठोकते हुए कह रही है कि कमलनाथ सरकार को उन्हीं के कुछ और विधायक (22 के अलावा भी) फ्लोर टेस्ट में आईना दिखा देंगे। कांग्रेस कहीं अपने दावे के अनुसार बीजेपी विधायक दल में सेंध लगाने में कामयाब हुई तो नाथ सरकार बच जायेगी।

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपने-अपने दलों में व्हिप जारी कर रखा है। किसी भी सदस्य ने व्हिप का उल्लंघन किया तो उसकी सदस्यता तो जायेगी ही, छह सालों के लिए चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा ना ले पाने का भागी भी हो जायेगा।

स्पीकर का डंडा

विधानसभा स्पीकर के पास कई विकल्प खुले हुए हैं। सबसे पहला विकल्प उनके पास हंगामा मचाने वाले बीजेपी विधायकों के ख़िलाफ़ ‘अनुशासन का डंडा’ चलाने का होगा। यह तय माना जा रहा है कि फ्लोर टेस्ट को लेकर सदन में भारी हंगामा हो सकता है।

बीजेपी विधायकों ने ज्यादा आक्रमता दिखाई तो स्पीकर उन्हें सदन के बाहर करने जैसा कदम उठा सकते हैं। बीजेपी के सदस्यों की संख्या ऐसे में कम हो जायेगी और कांग्रेस की राह बहुमत साबित करने के लिए कुछ आसान हो जायेगी।

दूसरा और अहम कदम, राज्यपाल के अभिभाषण के बाद स्पीकर कोरोना वायरस की आड़ लेकर सदन की कार्रवाई स्थगित करने संबंधी भी उठा सकते हैं।

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को भेजे अपने पत्र में संविधान के अनुच्छेद 174 सहपठित 175 (2) में राज्यपाल को निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्देश दिये हैं। महामहिम ने साफ़ कहा है, ‘अभिभाषण के बाद विश्वासमत की कार्यवाही हर हाल में हो। सदन स्थगित, विलंबित या निलंबित नहीं किया जाये।’

पत्र सरकार को लिखा गया है और सदन में स्पीकर विवेकानुसार कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है, लिहाज़ा, सबकुछ स्पीकर के ‘विवेक’ पर ही निर्भर रहने वाला है।

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