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मध्य प्रदेश में गदा उठाकर गलती कर रही है कांग्रेस!

मध्य प्रदेश में गदा उठाकर गलती कर रही है कांग्रेस!

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस क्या धार्मिक प्रतीकों के ऊपर निर्भर हो गई है? क्या जो ग़लती बीजेपी ने कर्नाटक में की वही गलती अब कांग्रेस एमपी में करने जा रही है?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीत कर कांग्रेस जोश में है और इसी जोश में कांग्रेस ने होश गंवा कर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बजरंगबली का गदा उठाकर एक बड़ी ग़लती कर दी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की जबलपुर यात्रा के दौरान  सभा स्थल पर गदा का इस्तेमाल कर मध्य प्रदेश में उसी बजरंगी राजनीति को सींचने की ग़लती कर दी है जो कर्नाटक में भाजपा कर चुकी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बजरंगबली और गदा को लेकर जमकर सियासत हुई थी।

मध्य प्रदेश में बजरंगबली कर्नाटक के मुक़ाबले ज़्यादा असरदार है। यहाँ भाजपा और कांग्रेस में बजरंगबली के भक्तों की कोई कमी नहीं है। कांग्रेस मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को हनुमान भक्त के रूप में प्रचारित कर रही है। वहीं, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस कमलनाथ को हनुमान भक्त और पार्टी के सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडा को आगे बढ़ाने की कोशिश में है।

कांग्रेस भूल जाती है कि उसकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय दल के रूप में है। बजरंगबली या कोई देवी-देवता कभी उसका आधार नहीं रहे। मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति मध्य प्रदेश में पहले से इतना असंतोष है कि यदि कांग्रेस उसे ही भुना ले तो उसकी सत्ता में वापसी आसान हो सकती है।

प्रियंका गांधी मध्य प्रदेश में उसी तरह नहीं चलने वालीं जैसे 2018 के विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी नहीं चले थे। राज्य में प्रियंका गांधी भीड़ जुटाने क मशीन के रूप में इस्तेमाल की जा सकती हैं। लेकिन वे पासा पलट नेता नहीं बन सकतीं। वे कांग्रेस के दूसरे नेताओं को मुक़ाबले ज़्यादा आक्रामक हैं, कांग्रेस को बजरंगबली को गदे की बजाय इसी आक्रामकता का इस्तेमाल करना चाहिए।

प्रियंका ने जबलपुर में सटीक निशानेबाजी की। उन्होंने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि 'पीएम मोदी को दी गई गालियों से लंबी तो एमपी बीजेपी सरकार के घोटालों की लिस्ट है। तकरीबन हर महीने एक घोटाला हो ही रहा है।' कर्नाटक चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि कांग्रेस नेता उन्हें गालियाँ दे रहे हैं। अपशब्द गिनाते हुए उन्होंने कहा था कि अब कांग्रेसी उन्हें 91 बार गालियाँ दे चुके हैं।

मध्य प्रदेश विधानसभा इस बार महाराज बनाम शिवराज नहीं है। इस बार का चुनाव कमलनाथ बनाम शिवराज + महाराज है। यानी कांग्रेस को शिवराज के कुशासन और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत का लाभ उठाना है।

कांग्रेस ये भी भूल रही है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस के पास कर्नाटक की तरह न डीके शिवकुमार हैं और न सिद्धारमैया जैसा कोई खांटी नेता। भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को बंटाधार के नाम से खलनायक बना चुकी है और कमलनाथ अपने अक्खड़पन की वजह से न सिर्फ बदनाम हैं बल्कि कांग्रेस की अच्छी खासी चलती हुई सरकार गंवा चुके हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल कमलनाथ से इक्कीस साबित हो चुके हैं। 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता और अपने कर्नाटक के पांच सूत्री कार्यक्रम के जरिए अच्छा प्रतिसाद हासिल कर सकती है। कर्नाटक में कांग्रेस के कार्यक्रम ने जादुई काम किया। बजरंगबली ने नहीं। कांग्रेस यदि अपने चुनाव प्रचार में प्रियंका और राहुल की जोड़ी का इस्तेमाल करने के साथ ही यदि जनता को 1500 रुपये प्रति माह महिला को अनुदान, गैस सिलेंडर 500 का, 100 यूनिट बिल माफ, 200 का बिल हाफ, सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने के साथ ही किसान कर्ज माफी का भरोसा दिला सके तो चुनाव परिदृश्य बदल सकता है।

कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश में भाजपा की 'बी' टीम परेशानी का सबब बन सकती है। हालांकि बीते छह दशक से कांग्रेस और जनसंघ/ भाजपा में ही मुकाबले होते आए हैं। सपा, बसपा की उपस्थिति नगण्य रही है। यानी तीसरे दल केवल बिकाऊ विधायक ही दे सके। आप की भी यही स्थिति रहने वाली है। 

मध्य प्रदेश का मौजूदा परिदृश्य संकेत दे रहा है कि कांग्रेस और भाजपा में से कोई भी 150 का आंकड़ा नहीं छू सकता। दोनों दलों के सभी दिग्गज दस सिर वाले होकर भी ये करिश्मा नहीं कर सकते। यद्यपि इस बार भाजपा के देव दुर्लभ कार्यकर्ता हताश हैं और कांग्रेस के नयी ऊर्जा से लबालब। परिदृश्य कार्यकर्ता ही बदलेंगे, बजरंगबली के गदे से ये काम नहीं हो सकता।

(राकेश अचल के फेसबुक पेज से साभार)

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