लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस को लेकर जिस बात का अंदेशा था, वही हुआ। देश भर में ‘मोदी चेहरे’ के ‘करिश्मे’ के बावजूद बीते दो चुनाव में इज्जत बचाती रही, छिन्दवाड़ा सीट भी इस बार कांग्रेस बड़े अंतर से हार गई। सवाल उठाया जा रहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस का अब क्या होगा?
मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। इस चुनाव में कांग्रेस ने 28 और उसके गठबंधन वाले दल समाजवादी पार्टी ने एक सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। भारतीय जनता पार्टी ने ‘मिशन 29’ का लक्ष्य इस बार रखा था। बीजेपी अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल रही। बेहद चौंकाने वाला तथ्य इस बार यह है कि देश भर में मोदी का चेहरा और उनके प्रयास विफल रहे, लेकिन मध्यप्रदेश में मोदी ‘चल’ निकले।
मध्य प्रदेश में इंदौर सीट को भाजपा ने 11 लाख से ज्यादा से जीतकर कीर्तिमान रचा। इसके अलावा गुना, विदिशा, भोपाल, खजुराहो और मंदसौर को 5 लाख से अधिक मतों से जीता। इसी तरह से उज्जैन, शहडोल और उज्जैन सीट पर कांग्रेस की हार का अंतर 3 से 4 लाख, खंडवा, धार, रतलाम और सीधी में 2 से 3 लाख, रीवा, मंडला, बालाघाट, छिन्दवाड़ा, खरगोन और राजगढ़ में 1 से 2 लाख तथा मुरैना, ग्वालियर, सतना और भिंड में 1 लाख से कम रहा।
राज्य में कांग्रेस आलाकमान ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले और मप्र विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कमलनाथ को पीसीसी चीफ़ पद से हटाते हुए मध्य प्रदेश कांग्रेस की बागडोर कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे पूर्व विधायक जीतू पटवारी के हाथों में सौंपी थीं। जीतू पटवारी अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं।
राहुल गांधी ने कमलनाथ को हटाने के साथ युवा नेता पटवारी के अलावा मप्र विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता की बागडोर चार बार के ट्राइबल एमएलए उमंग सिंघार को सौंपी थी। जबकि विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष का दायित्व ब्राह्मण समाज से आने वाले हेमंत कटारे को सौंपा था।
कुल मिलाकर राहुल गांधी द्वारा खेला गया ओबीसी, ट्राइबल और ब्राह्मण कार्ड बुरी तरह विफल हो गया। कार्ड सुपर फ्लॉप रहने की अहम वजह, जीतू पटवारी और उमंग सिंघार के बीच तालमेल नहीं बैठ पाना रहा।
बेहद अहम चुनाव में पटवारी विजन विहीन नजर आये। भाजपा जब चुन-चुनकर कांग्रेस के नेताओं (तीन विधायक तोड़ लिए) रही थी, तब पटवारी ऐसे जतन करते नज़र नहीं आये जिसकी ज़रूरत या उनसे अपेक्षा थी। मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त गच्चा खाया था। कुल 230 सदस्यों वाली विधानसभा में महज 66 सीट ही कांग्रेस हासिल कर पायी थी। विधानसभा चुनाव में करारी हार की बहुत बड़ी वजह कमलनाथ को माना गया था। उनके अकड़ू स्वभाव के चलते हार का विलेन उन्हें ही करार दिया गया था।
लोकसभा के इस चुनाव में बहुत साफ़ नज़र आया कि कमलनाथ को आधार बनाकर या उनके स्वभाव के कारण हुए नुक़सान को सामने रखकर पटवारी आगे नहीं बढ़े। इसी वजह से मप्र में पार्टी का खाता भी नहीं खुला। साफ़ शब्दों में कहा जाये तो बेड़ागर्क/बंटाधार हो गया।
एमपी के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक अरुण दीक्षित भी कहते हैं कि-‘जीतू पटवारी ने बेहद निराश किया। उमंग सिंघार मिले बेहद सुनहरे अवसर को भुना नहीं पाये।’
राज्य में थी 4-5 सीटों पर भरपूर गुंजाइश
मध्य प्रदेश में मुरैना, भिंड और ग्वालियर सीट पर कांग्रेस के पास सुनहरा अवसर था। लेकिन इन तीनों ही सीटों पर रणनीतिक चूक और कांग्रेस में हुई टूट-फूट ने पार्टी की दुर्गति कर दी। आखिरी वक़्त में मुरैना लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विजयपुर के विधायक रामनिवास रात टूटकर भाजपा में चले गए। फायदा हुआ और भाजपा उम्मीदवार की जीत में रोल अदा कर गए।
ऐसे ही भिंड में हार की वजह कांग्रेस के 2019 के उम्मीदवार बने। आखिरी समय में उन्होंने बसपा ज्वाइन करके कांग्रेस की जीत में रोड़े अटकाये। ऐसे ही ग्वालियर भी कई तरह की रणनीतिक चूक और उम्मीदवार प्रवीण पाठक को मदद नहीं मिल पाने के कारण कांग्रेस कमाल करने से चूक गई। कांग्रेस ने कुल 5 विधायकों को टिकट दिया था। सभी चुनाव हार गए।
27 सालों बाद भाजपा ने जीता छिन्दवाड़ा
कमलनाथ के गढ़ छिन्दवाड़ा में कांग्रेस की हार 27 सालों के बाद हुई। इस सीट को केवल एक बार कमलनाथ 1997 के उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा से हारे थे। उस हार के बाद नकुलनाथ की हार हुई।
भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से कमलनाथ को उनके गढ़ में घेरा था, तब से ही इस बात की संभावनाएं बलवती हो चली थीं कि कांग्रेस यहां भी नहीं जीत पायेगी। कमलनाथ के बनाये लोग टूटे और कुछ कांग्रेस खेमे में वापस लौटे तो माना गया सहानुभूति, नाथ एवं कांग्रेस की छिन्दवाड़ा में इज्जत बचा ले जायेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। बेहद करारी हार नकुलनाथ की यहां हो गई।
अरुण दीक्षित कहते हैं, ‘राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को मध्य प्रदेश को लेकर नये सिरे से काफी कुछ सोचना होगा। फिलहाल नरेंद्र मोदी के ख़त्म हुए जादू और भाजपा के घटते जनाधार को मध्य प्रदेश में तभी भोथरा किया जा सकेगा, जब अभी से उस मोर्चे पर बहुत गंभीरता तथा गति से काम हो। ऐसा नहीं हुआ तो आने वाला वक़्त गांधी-खड़गे को मध्य प्रदेश से खुशी की खबर से महरूम करने वाला ही होगा, यह मेरा आकलन है।’