मध्य प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजे मंगलवार को आ गए। दो विधानसभा सीटों पर दल-बदलुओं ने बीजेपी की इज्जत बचा ली। खंडवा लोकसभा सीट पर भी बीजेपी की जीत का अंतर पौने तीन लाख वोटों से घटकर 82 हजार पर सिमट गया।
चौहान ने बहाया पसीना
मध्य प्रदेश में खंडवा लोकसभा सीट के अलावा निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर, अलीराजपुर जिले की जोबट और सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे। पूरे चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जमकर पसीना बहाया। चौहान ने 50 से ज्यादा बड़ी सभाएं और रोड शो किए।
शिवराज काबीना के दो से लेकर आधा दर्जन तक सदस्यों को उपचुनाव वाले क्षेत्रों की अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गईं। मंत्री उपचुनाव वाले क्षेत्रों में पूरे समय डेरा डाले रहे। पूरी बीजेपी जुटी रही।
सीट बचाने में कामयाबी
तमाम प्रयासों के बावजूद खंडवा लोकसभा चुनाव का नतीजा बीजेपी के लिए उस तरह से धमाकेदार नहीं रहा जो पूर्व के चुनावों में हुआ करता था। पार्टी के लिए संतोष की बात यह रही कि 82 हजार के लगभग वोट से वह अपनी इस पारंपरिक सीट को बचाने में कामयाब रही।
लोकसभा के 2019 के चुनावों में बीजेपी के नंद कुमार सिंह चौहान ने खंडवा सीट को पौने तीन लाख वोटों के बड़े मार्जिन से जीता था। वे छह बार खंडवा से सांसद रहे। केन्द्र में मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अरुण यादव को दो बार चौहान ने बड़े अंतर से खंडवा के चुनावी रण में धूल चटाई।
नंद कुमार सिंह चौहान के निधन से खंडवा लोकसभा सीट रिक्त हुई थी। उनके बेटे हर्ष चौहान टिकट के प्रबल दावेदार थे। नंद कुमार सिंह चौहान की प्रतिद्वंद्वी रहीं पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस भी टिकट के लिए जोड़तोड़ कर रही थीं।
बीजेपी ने दोनों का पत्ता काटते हुए नंद कुमार सिंह चौहान के चुनाव प्रभारी का रोल अदा करते रहने वाले ज्ञानेश्वर पाटिल को टिकट दे दिया था।
बीजेपी के तमाम प्रयासों के बावजूद पाटिल को स्थानीय कार्यकर्ताओं का वैसा साथ नहीं मिल पाया जो चौहान को मिला करता था। नतीजा सामने है। जीत का अंतर बहुत ज़्यादा घट गया।
अरुण यादव की अनदेखी
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक दिनेश निगम त्यागी ने कहा, ‘कांग्रेस ने अरुण यादव के साथ चोट नहीं की होती तो चुनाव नतीजा उलट हो सकता था।’ सही भी है टिकट के लिए झुलाए जाने से तंग आकर अरुण यादव ने अंत समय में स्वयं को मैदान से बाहर कर लिया था। लंबे वक्त से घर बैठे पूर्व विधायक राजनारायण सिंह पूर्णी पर कांग्रेस ने दांव खेला था।
उधर, कांग्रेस की पारंपरिक जोबट और पृथ्वीपुर सीटों पर बीजेपी को आयातित उम्मीदवारों की बदौलत जीत मिल पायी। जोबट में कांग्रेस की पूर्व विधायक सुलोचना रावत को उपचुनाव प्रक्रिया आरंभ होने के बाद बीजेपी ने तोड़ा था और फिर टिकट दिया।
टिकट देने में गड़बड़ी
कांग्रेस जोबट सीट पर भी चूक कर गई। उसने जोबट की विधायक रहीं कलावती भूरिया के परिवारजनों पर दांव खेलने के बजाय टिकट के लिए दबाव बना रहे महेश पटेल पर दांव खेल दिया। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और झाबुआ सांसद कांतिलाल भूरिया की वे रिश्तेदार थीं। भूरिया ने मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ को चेताया था। मगर वे नहीं माने। पटेल को टिकट दे दिया। नाथ की यह कथित भूल बीजेपी के पक्ष और कांग्रेस के विरोध में चली गई।
देश के साथ मध्य प्रदेश में भी बीजेपी की रणनीति एक ही है कि कैसे भी करके हरेक क्षेत्र को केसरिया कर दिया जाये (प्रत्येक सीट पर जीत दर्ज कर ली जाये)। इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने पृथ्वीपुर में समाजवादी पार्टी के नेता शिशुपाल सिंह पर दांव खेलने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
शिशुपाल को सपा से तोड़ा। टिकट दिया। जमकर काम किया। रणनीति सफल हुई। कांग्रेस की इस पारंपरिक सीट पर शिशुपाल बीजेपी के लिए सेंधमारी में कामयाब हो गए। उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार नीतेन्द्र सिंह राठौर को हराया। कई चुनावों से बीजेपी पृथ्वीपुर में तीसरे और चौथे क्रम पर आ रही थी।
बागरी की अनदेखी भारी पड़ी!
सतना जिले की रैगांव सीट 31 सालों के बाद बीजेपी के हाथों से निकल गई। रैगांव सीट शिवराज सरकार में मंत्री रहे जुगल किशोर बागरी के निधन से रिक्त हुई थी। उनकी मौत कोरोना से हुई थी।
टिकट के दावेदारों में उनके कई परिजन थे। जबरदस्त दबदबा रखने वाले जुगल किशोर बागरी परिवार की जगह बीजेपी ने प्रतिमा बागरी को यहां से उतार दिया। गैर जुगल किशोर बागरी परिवार वाला एंगल बीजेपी के लिए उल्टा पड़ा।
रैगांव सीट को 31 साल के बाद 31 वर्ष की कल्पना वर्मा ने कांग्रेस के लिए जीतकर बाजी उलट दी।
मध्य प्रदेश की खंडवा लोकसभा और तीनों विधानसभा सीटों के उपचुनाव में पूरे प्रचार के दौरान कमल नाथ- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विरोध करते रहे। महंगाई को कांग्रेस प्रचार का मुख्य हथियार बनाया। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के बढ़ते दामों के मुद्दे को खूब उछाला। मगर ये दांव नहीं चल पाये।
‘पुलिस-प्रशासन, धनबल से हारे’
सभी चार सीटें जीतने का दावा कांग्रेस का था। मगर दो पारंपरिक सीटें जोबट और पृथ्वीपुर भी हार गए। खंडवा लोकसभा नहीं मिली। इन तीन सीटों पर मिली पराजय के बाद नाथ ने कहा, “हमारा मुकाबला बीजेपी से नहीं उसके गुंडों, धनबल, प्रशासन और पुलिस से हुआ। जनता हमारे साथ थी। मगर बीजेपी के हथकंडों के आगे हार गए।”
सिंधिया की बग़ावत
मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी थी। पन्द्रह सालों के बाद कमल नाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। सरकार बनवाने में अहम रोल अदा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया अनबन के चलते कांग्रेस से जुदा हो गए थे। अपने साथ दो दर्जन विधायक भी वे ले गए थे।
सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की टूट से कमल नाथ की सरकार 15 महीनों बाद ही गिर गई थी। कांग्रेस के टूटे विधायकों की मदद से बीजेपी ने सत्ता में वापसी कर ली थी।
मुख्यमंत्री पद पर पुनः शिवराज सिंह की ताजपोशी बीजेपी ने की थी। कांग्रेस से टूटे हुए ज्यादातर विधायकों को बीजेपी ने उपचुनाव में टिकट दिया था। जीतने वालों को मंत्री बना दिया था।
कई हार जाने वालों को भी सरकार में एडजस्ट कर लिया था। हारने वाले पुराने कांग्रेस विधायक सत्ता में भागीदारी के लिए कतार में बने हुए हैं।
एक और विधायक टूटा
उपचुनावों के बीच खरगोन जिले की बड़वाह सीट से कांग्रेस विधायक सचिन बिड़ला को बीजेपी ने तोड़ा है। उपचुनाव के प्रचार के बीच बिड़ला के पाला बदलने से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा। वे अरुण यादव के नजदीकी नेताओं में शुमार थे।
बिड़ला के पाला बदलने से मध्य प्रदेश में फिर एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा।