कोरोना के जिस डेल्टा वैरिएंट को देश में दूसरी लहर में तबाही लाने के लिए ज़िम्मेदार समझा जाता है उसका अब एक नया म्यूटेंट यानी नया रूप पाया गया है। शोध में तो यह सामने आ रहा है कि डेल्टा वैरिएंट जहाँ शरीर के इम्युन सिस्टम से बच निकलता था वहीं इसके नये वैरिएंट पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल दवा भी निष्प्रभावी साबित हो सकती है। इस दवा के बारे में कहा जा रहा है कि यह कोरोना मरीज पर एक दिन में ही काफ़ी ज़्यादा प्रभावी साबित हो रही है। तो क्या डेल्टा वैरिएंट का यह नया स्ट्रेन या म्यूटेंट ज़्यादा घातक है?
यह कितना घातक है, इससे पहले यह जान लें कि यह डेल्टा वैरिएंट क्या है और इसका नया रूप किस तरह से अलग है।
पिछले साल कोरोना की पहली लहर के धीमा पड़ने के दौरान ही कोरोना के जो नये-नये स्ट्रेन सामने आ रहे थे उसमें से एक बी.1.617 था। यह सबसे पहले भारत में मिला। इसे ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट कहा गया क्योंकि यह फिर से तीन अलग-अलग रूप में- बी.1.617.1, बी.1.617.2 और बी.1.617.3 फैला। इसी में से बी.1.617.2 को डब्ल्यूएचओ ने डेल्टा नाम दिया है। यह सबसे पहले भारत में फैला था और दूसरी लहर के लिए इस म्यूटेंट को ही ज़िम्मेदार माना गया। अब तक कई देशों में इस वैरिएंट के मामले सामने आ चुके हैं। अब इंग्लैंड में तो कुल नए संक्रमण के जो मामले आ रहे हैं उसमें से 91 फ़ीसदी डेल्टा वैरिएंट के ही मामले हैं।
अब इसी डेल्टा वैरिएंट यानी बी.1.617.2 में एक म्यूटेंट के417एन जुड़ गया है और इसको वैज्ञानिक नाम बी.1.617.2.1 दिया गया है। विशेषज्ञ इसे डेल्टा+ यानी डेल्टा प्लस नाम से बुला रहे हैं। इसे डेल्टा-एवाई.1 यानी के417एन के साथ डेल्टा भी कहा जा रहा है। के417एन म्यूटेंट सबसे पहले इंग्लैंड में मिले बीटा वैरिएंट बी.1.351 में भी मिला था।
इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी यानी आईजीआईबी में चिकित्सक और कम्प्यूटेशनल जीवविज्ञानी डॉ. विनोद स्कारिया ने डेल्टा प्लस स्ट्रेन को लेकर सचेत किया है। उनका कहना है कि के417एन के संबंध में विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इस पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल दवा के निष्क्रिय होने के सबूत मिल रहे हैं। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल दवा को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ से मंजूरी मिली हुई है। हालाँकि उन्होंने ट्वीट में कहा है कि के417एन के साथ डेल्टा वैरिएंट के मामले भारत में ज़्यादा नहीं हैं।
ब्रिटेन में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड यानी पीएचई की हाल की रिपोर्ट कहती है कि जीआईएसएआईडी की वेबसाइट पर इंग्लैंड के अलावा 7 जून तक डेल्टा प्लस के 63 मामले सामने आए हैं। उसमें से कनाडा, जर्मनी व रूस में 1-1, नेपाल में 2, स्विट्ज़रलैंड में 4, इंडिया में 6, पोलैंड में 9, पुर्तगाल में 12, जापान में 13 और अमेरिका में 14 मामले शामिल हैं। डॉ. विरोद स्कारिया ने लिखा है कि इंग्लैंड में डेल्टा प्लस के 36 मामले आए हैं। इसमें से दो मामले तो ऐसे हैं जिनको वैक्सीन लगी थी इसके बावजूद संक्रमण हो गया।
भारत को भी इसके प्रति सजग होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि डेल्टा वैरिएंट ही भारत में दूसरी लहर में भयंकर तबाही लेकर आया था। भारत में जब दूसरी लहर अपने शिखर पर थी तो हर रोज़ 4 लाख से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले रिकॉर्ड किए जा रहे थे। देश में 6 मई को सबसे ज़्यादा 4 लाख 14 हज़ार केस आए थे। यह वह समय था जब देश में अस्तपाल बेड, दवाइयाँ और ऑक्सीजन जैसी सुविधाएँ भी कम पड़ गई थीं। ऑक्सीजन समय पर नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुईं। अस्पतालों में तो लाइनें लगी ही थीं, श्मशानों में भी ऐसे ही हालात थे। इस बीच गंगा नदी में तैरते सैकड़ों शव मिलने की ख़बरें आईं और रेत में दफनाए गए शवों की तसवीरें भी आईं।
अब यदि इसके नये म्यूटेंट डेल्टा प्लस पर दवाओं का असर भी नहीं होगा तो यह कितना घातक हो सकता है, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। बहरहाल, इस नये स्ट्रेन के प्रति वैक्सीन कितनी कारगर होती है और यह कितना ख़तरनाक हो सकता है इसका पता और ज़्यादा शोध से चलेगा।