नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए हर तीसरे दिन महाराष्ट्र जा रहे हैं। तो क्या महाराष्ट्र में इस बार बड़ी राजनीतिक उलट-पुलट तो नहीं हो रही है? भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना गठबंधन ने महाराष्ट्र में बीते लोकसभा चुनावों में 48 में से 42 सीटों पर जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा लोकसभा सीटें हैं और भारतीय जनता पार्टी -शिवसेना गठबंधन ने यहाँ भी शानदार प्रदर्शन किया था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी महागठबंधन से जूझ रही भाजपा क्या अब महाराष्ट्र पर ज्यादा ध्यान देकर अपने पूर्व के प्रदर्शन को बरक़रार रखने के लिए जद्दोजहद कर रही है? मोदी की बार-बार की यात्राओं से तो कुछ ऐसा ही लग रहा है!
अब तक के सभी सर्वे यही इशारा कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना को इस बार के चुनाव में ज़्यादा से ज़्यादा 33 सीटों पर सफलता मिल सकती हैं। यह सर्वे किस समय, कितने बड़े स्तर पर कराये गए थे या उनको करते समय कितने लोगों की राय ली गयी थी।
अब तक के सभी सर्वे यही इशारा कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना को इस बार के चुनाव में ज़्यादा से ज़्यादा 33 सीटों पर सफलता मिल सकती हैं। यह सर्वे किस समय, कितने बड़े स्तर पर कराये गए थे या उनको करते समय कितने लोगों की राय ली गयी थी।
कांग्रेस लड़खड़ा गई है?
इस पर सवाल खड़े करने से बेहतर यह होगा कि पिछले 15 दिनों के राजनीतिक घटनाक्रम को बारीकी से देखा जाय। विधान सभा में कांग्रेस के विरोधी पक्ष नेता राधा कष्ण विखे पाटिल के बेटे का भारतीय जनता पार्टी में प्रवेश कर टिकट ले लेना और उसके बाद खुद राधाकृष्ण कांग्रेस में रहेंगें उस पर सवाल खड़े होना। औरंगाबाद से विधायक सुभाष झांबड को लोकसभा का टिकट दिए जाने से जिला कांग्रेस अध्यक्ष और सिल्लोड के विधायक अब्दुल सत्तार का नाराज़ होना। चंद्रपुर से कांग्रेस की ओर से पूर्व ज़िलाध्यक्ष विनायक बांगडे को उम्मीदवारी देने पर प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण की नाराज़गी वाले फोन टेप का वायरल होना। इन सभी ख़बरों ने एक बार यह सवाल खड़ा कर दिया था कि क्या कांग्रेस लड़खड़ा गयी है।
ऐसी ही ख़बरें राष्ट्रवादी कांग्रेस से भी आने लगी थी जब माढा लोकसभा क्षेत्र से विजय सिंह मोहिते पाटिल ने शरद पवार का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था। लेकिन इसके बाद कांग्रेस-राष्ट्रवादी की तसवीर में बदलाव दिखता जा रहा है। चंद्रपुर में जिस प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलने लेकर अशोक चव्हाण की नाराज़गी बाहर आयी थी, वह मामला सुलझ गया।
पवार की कूटनीति
शिवसेना के विधायक बालू धानोकर जो कांग्रेस में आये उन्हें ही टिकट मिला और 11 अप्रैल को हुए चुनाव में मतदाताओं का उनको अच्छा समर्थन मिला ऐसी खबरें हैं। औरंगाबाद के ज़िला अध्यक्ष अब्दुल सत्तार के बागी तेवर भी ठन्डे पड़ चुके हैं। वहीं माढा सीट पर टिकट लेने की चाह में गए विजय सिंह मोहिते पाटिल और उनके बेटे रणजीत सिंह मोहिते पाटिल को भाजपा से टिकट नहीं मिल पाया। राजनीतिक गलियारों में इसे शरद पवार की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है।
चुनाव के शुरुआती दौर में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन में प्रकाश आंबेडकर और असदउद्दीन ओवैसी की वंचित बहुजन आघाडी के शामिल नहीं होने पर जो कयास लगाए जा रहे थे, अब उस पर भी सवाल उठने लगे हैं। विदर्भ क्षेत्र में दलित मतदाताओं की मौजूदगी ज़्यादा है।
नागपुर में दलित संगठन जिस तरह से कांग्रेस प्रत्याशी नाना पटोले के साथ खड़े दिखे, उससे यह संकेत साफ़ जा रहा है कि दलित-मुसलिम मतदाता इस बार अपने मतों के बँटवारे को लेकर काफ़ी सचेत हैं। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने इस चुनाव को चुनाव नहीं संविधान बचाने की लड़ाई से जोड़ा है, उसका असर दलित और मुसलिम मतदाताओं पर दिख रहा है।
राज ठाकरे की भूमिका
इस चुनाव में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे की भूमिका भी भारतीय जनता पार्टी के लिए काफ़ी सिरदर्द वाली साबित हो रही है। पिछले चुनावों तक जहाँ राज ठाकरे को शिव सेना के वोटकटवा के रूप में देखा जाता था। अब उनका आंकलन इस पैमाने पर किया जा रहा है कि वे मोदी-अमित शाह विरोधी वोटों का कितना ध्रुवीकरण कर पायेंगें। राज ठाकरे की पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रही है, वह इस चुनाव में सभाएं लेकर मोदी-शाह मुक्त भारतीय राजनीति का नारा बुलंद कर रहे हैं। राज ठाकरे की पहली सभा गुडी पाडवा के दिन दादर के शिवाजी मैदान में हुई और शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के चुनावी क्षेत्र नांदेड में। इन दोनों सभाओं में बड़ी संख्या में युवा जमा हुए थे।
राज ठाकरे की सभाओं की एक ख़ासियत जो दिखाई दे रही है, वह नरेंद्र मोदी को उनके ही भाषणों के जाल में उलझाते हैं यानी फैक्ट चेक कराते हैं। इसके लिए वह अपने भाषण के बीच -बीच में श्रोताओं को मोदी के भाषणों की क्लिप दिखाते हैं फिर उन पर सवाल उठाते हैं।
राज ठाकरे अपनी सभा में जनता से जुड़े हुए खेती,रोजगार,पानी,ज़मीन,ग़रीबी जैसे मुद्दों की याद दिलाते हैं और मोदी की इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि वे चुनाव प्रचार में सेना की आड़ में छुप रहे हैं। कांग्रेस-राष्ट्रवादी में कुछ गुत्थियां जो मार्च के अंतिम सप्ताह तक कहीं उलझी हुई नज़र आती थी अब सुलझी हुई दिख रहीं हैं, जबकि शिवसेना -भाजपा की ज़मीनी हक़ीक़त हर सीट से सुगबुगाहट के रूप सुनाई देने लगी है। दोनों पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व एक साथ दिखाई देता है, लेकिन कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार में दूरियां बना रखी है। 11 अप्रैल को प्रदेश में विदर्भ क्षेत्र की 7 सीटों पर मतदान भी हो चुका है। ये सातों सीटें 2014 में भाजपा -शिवसेना ने जीतीं थीं। लेकिन इस बार जो स्थिति दिखाई दी है वह बराबर का मामला है।
क्या है 'अंडर करंट'?
इसका कारण बताया जा रहा है, मतदाताओं के बीच सरकार के प्रति बढ़ता गुस्सा, जिसे चुनावी पंडित 'अंडर करंट' कहते हैं। किसानों में ग़ुस्सा और सूखे का अन्दर करंट पूरे महाराष्ट्र में फैलता जा रहा है। प्रदेश के 24 हज़ार गाँव और 151 तहसीलें सूखा ग्रस्त घोषित की जा चुकी हैं लेकिन सरकार चुनाव में व्यस्त है और राहत कार्यों के नाम पर क्या चल रहा है कैसा चल रहा है इस बारे में कोई हालचाल लेने वाला नहीं है। शायद इस अंडर करंट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाँप चुके हैं। मोदी ने वर्धा में अपनी सभा में मंच से बोला था कि मैदान भर गया है बड़ी संख्या में लोग आये हैं ।यही बात शुक्रवार को अहमद नगर में भी दोहरायी थी कि इस बार पिछली बार की तुलना में दुगने लोग आये हैं। लेकिन इन दोनों सभाओं के बारे में समाचार पत्रों में और सोशल मीडिया पर भी फोटो ज़ारी हुई कि मैदान खाली पड़े थे या लोग भाषण के बीच में ही उठकर जाने लगे थे। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री हर तीसरे दिन महाराष्ट्र में पंहुच जा रहे हैं?