राहुल गांधी 'पप्पू’ हैं लेकिन जो वे कहते हैं, सरकार वही करती है!
केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रचार तंत्र तथा मीडिया के एक बड़े हिस्से के ज़रिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को 'पप्पू’ के तौर पर प्रचारित कर रखा है। कहा जाता है कि इस प्रचार की निरंतरता बनाए रखने के लिए बीजेपी काफ़ी बड़ी धनराशि ख़र्च करती है। बीजेपी के तमाम नेता और केंद्रीय मंत्रियों का अक्सर कहना रहता है कि वे राहुल गांधी की किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन होता यह है कि राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के ख़िलाफ़ जब भी कुछ बोलते हैं, आरोप लगाते हैं या सरकार को कुछ सुझाव देते हैं तो सरकार के कई मंत्री और बीजेपी के तमाम प्रवक्ता उसका जवाब देने के लिए मोर्चा संभाल लेते हैं।
यही नहीं, तमाम टीवी चैनलों पर उनके एंकर और एक खास क़िस्म के राजनीतिक विश्लेषक भी राहुल की खिल्ली उड़ाने में जुट जाते हैं। लेकिन कई मामलों को देखने में आता है कि राहुल गांधी जो कहते हैं, उसे देरी से ही सही मगर सरकार को मानना पड़ता है। चाहे दुनिया के दूसरे देशों में बनी तमाम कोरोना वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी देने का मामला हो या 45 साल से ज़्यादा उम्र के सभी नागरिकों को कोरोना की वैक्सीन लगाने का मामला हो या केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) की परीक्षाएँ टालने की बात हो, सबकी मांग सबसे पहले राहुल गांधी ने ही की थी। शुरू में सरकार की ओर से इन मांगों को लेकर नाक-भौं सिकोड़ी गई, लेकिन थोड़े दिनों के बाद आख़िरकार सरकार को उनकी सभी मांगें मानना पड़ीं।
सबसे ताज़ा और दिलचस्प मामला विदेशी वैक्सीन को मंजूरी देने का है। राहुल गांधी ने नौ अप्रैल को कहा था कि सरकार को दुनिया भर में इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूर की गई वैक्सीन को भारत में मंजूरी देनी चाहिए। राहुल का यह बयान आते ही केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स करके कहा कि पार्ट टाइम नेता के तौर पर फेल होने के बाद राहुल गांधी अब फुल टाइम लॉबिस्ट यानी दलाल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि राहुल ने पहले तो लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनियों के लिए लॉबिइंग करते हुए रॉफेल विमानों के भारतीय सौदे को पटरी से उतारने की कोशिश की और अब वे वैक्सीन बनाने वाली विदेशी फार्मा कंपनियों के लिए दलाली कर रहे हैं। हालाँकि रविशंकर प्रसाद ऐसा कहते हुए यह भूल गए कि रॉफेल सौदे को लेकर हाल में फ्रांस के न्यूज़ पोर्टल 'मीडियापार्ट’ अपने ही देश की एक जांच एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से खुलासा किया है कि इस सौदे में दलाली, बिचौलिया और याराना पूंजीवाद, सब कुछ है जिसे फ्रांस और भारत की सरकारें छुपा रही हैं।
बहरहाल, यहाँ यह कहना अनावश्यक होगा कि राहुल को लेकर रविशंकर प्रसाद का अहंकारी लहेजे में दिया गया यह बयान राजनीतिक शालीनता से कोसों दूर था। चूँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद भी विपक्षी नेताओं और अपने आलोचकों के लिए इससे भी ज़्यादा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं, लिहाजा उनके मंत्रियों से शालीनता बरतने की उम्मीद करना बेमानी ही है। राहुल के ख़िलाफ़ अहंकारी तेवरों के साथ अक्सर बदजुबानी करने वाली एक अन्य केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी राहुल को 'फेल्ड पोलिटिशियन एंड फुल टाइम लॉबिस्ट’ कहा। सोशल मीडिया पर बीजेपी की ट्रोल आर्मी ने भी राहुल के ख़िलाफ़ ख़ूब अनापशनाप लिखा।
लेकिन राहुल के सुझाव के महज तीन बाद ही यानी 13 अप्रैल को भारत सरकार ने अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ से मंजूर सभी वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी।
लेकिन अपनी सरकार के इस फ़ैसले के बाद राहुल गांधी को विदेशी फार्मा कंपनियों का लॉबिस्ट कहने वाले केंद्रीय मंत्रियों को अपने बयान पर जरा भी शर्म नहीं आई। शर्म आने का सवाल भी नहीं उठता, क्योंकि सरकार ही पूरी तरह शर्मनिरपेक्ष हो चुकी है।
वैक्सीन जैसा ही मामला कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच पश्चिम बंगाल में हो रही चुनावी रैलियों का है। बीजेपी की ओर से कहा गया है कि बंगाल के विधानसभा चुनाव में अब आगे वह कोई बड़ी राजनीतिक रैली आयोजित नहीं करेगी। अपनी रैलियों में भीड़ न बढ़ाने की यह सदबुद्धि बीजेपी को यूँ ही नहीं आई है।
पिछले दिनों कोलकाता हाई कोर्ट ने कुछ जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए रैलियों और रोड शो के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस क़दम उठाने का जो निर्देश दिया था, उसका भी पालन नहीं हो रहा था और रैलियों का सिलसिला पहले की तरह जारी था। लेकिन जब राहुल गांधी ने बंगाल में अपनी शेष रैलियाँ रद्द करने का ऐलान किया तो बीजेपी पर भी इसका दबाव बना।
हालाँकि शुरुआत में बीजेपी नेताओं और उनकी ट्रोल आर्मी ने राहुल के रैलियाँ रद्द करने के ऐलान का भी मजाक उड़ाया था, लेकिन जब आम लोगों ने राहुल की इस पहलकदमी की सराहना की और बीजेपी की चौतरफा आलोचना होने लगी तो उसे भी अपनी रैलियों की संख्या सीमित करने और रैलियों में कम भीड़ जुटाने का ऐलान करना पड़ा। हालाँकि उसके इस ऐलान की ज़मीनी हकीकत अभी देखी जाना बाक़ी है।
इससे पहले राहुल गांधी और कुछ अन्य विपक्षी नेताओं ने देश में बढ़ते कोरोना संकट और वैक्सीन की कमी को देखते हुए सरकार से वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगाने को कहा था तो स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने संसद में कहा था कि भारतीयों की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ कर वैक्सीन का निर्यात नहीं किया जा रहा है। मगर कुछ ही दिनों बाद विभिन्न राज्यों की ओर से वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने की शिकायतें आने लगीं तो सरकार ने हालाँकि वैक्सीन के निर्यात पर रोक तो नहीं लगाई लेकिन निर्यात को धीमा करने का फ़ैसला लेते हुए कहा गया कि घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के बाद ही अन्य देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की जाएगी।
राहुल गांधी पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने 45 साल से ज़्यादा उम्र वाले हर नागरिक को कोरोना का टीका लगाने की मांग की थी।
टीकाकरण के पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाया गया था। उसके बाद से ही राहुल गांधी मांग कर रहे थे कि 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को भी टीका लगाना शुरू करना चाहिए। थोड़ी हीला-हवाली के बाद सरकार ने उनकी यह मांग भी मान ली और एक अप्रैल से 45 से ऊपर की उम्र वालों को भी टीका लगाना शुरू कर दिया।
इसी तरह राहुल गांधी पिछले कई दिनों से कह रहे थे कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सीबीएससी की परीक्षाएँ स्थगित कर देनी चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस आशय की मांग की थी। लेकिन बीजेपी के तमाम प्रवक्ता, नेता और टीवी चैनलों के एंकर तक इस मांग को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कह रहे थे कि बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। लेकिन 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ बैठक की और 10वीं की परीक्षा रद्द करने तथा 12वीं की परीक्षा टालने का फ़ैसला किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा ज़रूरी है लेकिन उससे ज़्यादा ज़रूरी बच्चों का स्वास्थ्य है।
इन चंद उदाहरणों के अलावा भी कोरोना वायरस की महामारी को लेकर शुरू दिन से राहुल गांधी जो भी कह रहे हैं, वही हो रहा है। राजनेताओं में राहुल पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने इस महामारी को लेकर सरकार को आगाह किया था। उन्होंने पिछले साल जनवरी महीने में ही सरकार को सचेत किया था, जबकि भारत में कोरोना वायरस का प्रवेश भी नहीं हुआ था। लेकिन उस वक़्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पूरी सरकार अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का खैरमकदम करने की अंतरराष्ट्रीय तमाशेबाजी में जुटी हुई थी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह विपक्षी शासित राज्यों की सरकारों को गिराने के अपने प्रिय खेल के तहत मध्य प्रदेश में कांग्रेस की चुनी हुई सरकार को गिराने के खेल में मशगूल थे।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और बीजेपी के तमाम प्रवक्ता टीवी चैनलों पर बैठकर राहुल गांधी की चेतावनी की खिल्ली उड़ाते हुए उन पर लोगों को गुमराह करने और डराने का आरोप लगा रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को मार्च महीने में कोरोना महामारी की गंभीरता का अहसास तभी हो पाया था, जब कोरोना महामारी भारत में प्रवेश कर अपने पैर फैलाने लगी थी और जिसकी ख़बरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आने लगी थीं।