कोरोना: केंद्र-राज्य सरकारों के सामने चुनौतियों का अंबार
मोदी सरकार की दूसरी पारी का पहला साल पूरा हुआ लेकिन यह वैसे नहीं मनाया गया, जैसे कि हर साल इसकी वर्षगांठ मनाई जाती है। यदि कोरोना नहीं होता तो यह उत्सव प्रेमी और नौटंकी प्रिय सरकार देश के लोगों को पता नहीं, क्या-क्या करतब दिखाती।
इस एक साल में उसने कई ऐसे चमत्कारी कार्य कर दिखाए, जो वह पिछली पारी के पांच साल में भी नहीं कर सकी थी। जैसे, धारा 370 को ख़त्म करके अधर में लटके हुए कश्मीर को लाकर उसने जमीन पर खड़ा कर दिया। वैसे तो धारा 370 के कई बुनियादी प्रावधानों को इंदिरा सरकार ने काफी कुतर डाला था लेकिन फिर भी औपचारिक तौर से उसे हटाने की हिम्मत पिछली किसी भी कांग्रेसी या गैर-कांग्रेसी सरकार ने नहीं की थी।
इसी प्रकार, तीन तलाक की कुप्रथा को समाप्त करने का साहस दिखाकर मोदी सरकार ने मुसलिम महिलाओं को अपूर्व राहत प्रदान की, हालांकि इस कदम को कई विरोधी नेताओं ने मुसलिम-विरोधी बताकर इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिंदू राष्ट्रवादी पैंतरा कहने की भी कोशिश की।
जहां तक पड़ोसी मुसलिम देशों के गैर-मुसलिम शरणार्थियों के स्वागत के कानून का सवाल है, उसका विरोध न सिर्फ भारत के मुसलमानों ने डटकर किया बल्कि सभी विरोधी पार्टियों ने उसकी भर्त्सना की। मेरी अपनी राय यह थी कि पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को शरण देने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उसका आधार मजहब नहीं बल्कि उनका अपना गुण-दोष होना चाहिए। थोक में किसी को भी नागरिकता देना भारत की सुरक्षा को खतरे में डालना है।
इस मुद्दे पर गहरा असंतोष भड़क रहा था और नागरिकता रजिस्टर का मामला भी तूल पकड़ रहा था लेकिन कोरोना की लहर में ये सारे मुद्दे और सरकार की प्रारंभिक उपलब्धियां भी अपने आप दरी के नीचे सरक गईं। जिस तथ्य ने सरकार को सांसत में डाल रखा था यानि बढ़ती हुई बेरोजगारी और घाटे की अर्थव्यवस्था, वह कोरोना-संकट की वजह से अब आसमान छूने लगी है।
प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित करने में वही ग़लती की, जो उन्होंने पिछली पारी में नोटबंदी और जीएसटी के वक्त की थी। आगे-पीछे सोचे बिना धड़ल्ले से कुछ भी कर डालने के नतीजे सामने हैं।
लॉकडाउन तीसरे महीने में प्रवेश कर गया है, कल-कारखाने, दुकानें, दफ्तर ठप हैं, प्रवासी मजदूरों की करुणा-कथा बदतर होती जा रही हैं, हताहतों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। इसमें शक नहीं कि केंद्र और राज्य-सरकारें कोरोना से लड़ने की जी-तोड़ कोशिशें कर रही हैं लेकिन डर यही है कि यह संकट कहीं सारी उपलब्धियों पर भारी न पड़ जाए।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)