विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण के मसले पर उत्तर प्रदेश की राजनीति के अखाड़े के मज़बूत पहलवान सपा और बसपा के आक्रामक होने से सरकार सकते में है। संभवत: सरकार को उम्मीद नहीं थी कि ऊल-जुलूल तरीक़े से 8 लाख रुपये से कम आमदनी वाले सवर्णों को आर्थिक रूप से कमज़ोर मानकर 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के मसले पर खामोश रहे ये दोनों दल विश्वविद्यालयों के आरक्षण पर इतने उग्र हो जाएँगे। वहीं अब एससी, एसटी, ओबीसी को जनसंख्या के मुताबिक़ आरक्षण दिए जाने और मौजूदा आरक्षण के मुताबिक़ हर विश्वविद्यालय एवं विभाग में पद भरे जाने की माँग खुलकर सामने आने से सरकार अपने ही बुने जाल में फँसती नज़र आ रही है।
सपा, बसपा के इस मसले पर उग्र होने पर तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी खुलकर सामने आ गईं। तेजस्वी यादव का राष्ट्रीय जनता दल पहले से ही विश्वविद्यालयों में आरक्षण को लेकर उग्र है, जिसने 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के ख़िलाफ़ भी विद्रोही रुख अपना रखा है।
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- सरकार की अफरा-तफरी का आलम यह हुआ कि हंगामे के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा की कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों को पत्र भेजकर एसएलपी पर उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला आने तक भर्ती रोकने को कहा था और वह फ़ैसला अब तक वापस नहीं लिया गया है। साथ ही जावड़ेकर ने कहा कि यह मामला अभी अदालत के समक्ष विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा विशेष अनुमति याचिका और पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। जावड़ेकर ने कहा कि सरकार अनुसूचित जाति (एससी) , अनसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के आरक्षण पर आँच नहीं आने देगी। सरकार का यह आश्वासन धोखाधड़ी के सिवा कुछ नहीं लगता।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ही नया रोस्टर लागू करने का फ़ैसला किया था और जब संसद में हंगामा हुआ तब सरकार ने घड़ियाली आँसू बहाते हुए उच्चतम न्यायालय में स्पेशल लीव पिटीशन दायर की थी।
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लंबे समय बाद जब सुनवाई का नंबर आया तो न्यायधीशों ने एक झटके में याचिका ख़ारिज करते हुए उसे सुनवाई के योग्य भी नहीं समझा। वहीं सवर्ण आरक्षण के मसले पर सरकार विद्युत गति की सक्रियता दिखा चुकी है। न सिर्फ़ संसद में पारित कराने, बल्कि राष्ट्रपति से उसकी अनुमति दिलाने से लेकर डीओपीटी द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने और विभिन्न बीजेपी शासित राज्यों द्वारा उसे तत्काल अपने राज्यों में लागू किए जाने की कार्यवाही की गई।
यहाँ ओबीसी को 27% आरक्षण नहीं दिया
1991 में संसद द्वारा ओबीसी आरक्षण का विधेयक पारित किए जाने के बावजूद अभी भी राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे तमाम राज्यों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिलता है और कुछ राज्यों ने तो यह भी कह दिया कि उनके राज्य में ओबीसी हैं ही नहीं। सरकार संसद में या तो झूठ बोल रही है, या उसके ही विभाग, मंत्रालय व आयोग नियंत्रण से बाहर चले गए हैं। एक तरफ़ जहाँ सरकार कह रही है कि उसने अपने पुराने आदेश में कोई बदलाव नहीं किया है, वहीं विश्वविद्यालय शीर्ष न्यायालय का फ़ैसला आते ही धड़ाधड़ विज्ञापन निकालने लगे।
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आनन-फानन में राजस्थान विश्वविद्यालय ने 18 विभागों के लिए 32 भर्तियाँ निकालीं और हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय ने 53 भर्तियाँ निकालीं। इन 85 सीटों में से एक भी सीट एससी, एसटी या ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं है।
इसका साफ़ मतलब निकाला जा सकता है कि केंद्र सरकार और यूजीसी का आदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय मानने को तैयार नहीं हैं।
क्या सरकार की नीयत में खोट है?
संसद में शून्यकाल में हुई चर्चा में सपा के रामगोपाल यादव, बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, राजद के मनोज झा, भाकपा के विनय विश्वम ने इस मसले पर समीक्षा याचिका के बजाय तत्काल 48 घंटे के भीतर विधेयक लाने की माँग की है। जाने माने वकील और बसपा सांसद मिश्र का कहना है कि अगर शीर्ष न्यायालय ने यह कह दिया है कि इस मसले पर कोई याचिका दायर करने की ज़रूरत नहीं है तो सरकार बार-बार याचिका की बात क्यों करती है।
भाकपा सांसद विश्वम ने इससे आगे बढ़कर माँग कर दी है कि दलितों पिछड़ों को उनका संवैधानिक हक़ दिए जाने की ज़रूरत है, वह किसी भी तरह से लूटा नहीं जा सकता।- सरकार वंचित तबक़े को लेकर अपने रुख़ को लेकर लगातार फँसती जा रही है। विश्वविद्यालय में आरक्षण के मसले पर संसद ठप है। वहीं, 2014 में सत्ता में आने के बाद से सरकार के डीओपीटी ने पिछड़े वर्ग के सैकड़ों बच्चों को आईएएस बनने से रोक रखा है। दिलचस्प यह है कि सरकार इस मामले में किसी न्यायालय की बात मानने को तैयार नहीं है।
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‘आरक्षण के अनुसार पद भरे जाएँ’
तमाम अभ्यर्थियों को उच्चतम न्यायालय में लड़ाया जा रहा है। यह एक नज़ीर है कि ओबीसी, एससी, एसटी को लेकर इस सरकार का रुख़ क्या है। सरकार की मंशा साफ़ है कि जहाँ भी आरक्षित तबक़े का व्यक्ति मिले, उसे रगेद दिया जाए। विश्वविद्यालय में आरक्षण के मामले में सरकार फँस गई है। सिर्फ़ विश्वविद्यालय तक मामला नहीं है, भाकपा सदस्य ने यहाँ तक माँग कर दी है कि रोस्टर और प्वाइंट का कोई मतलब ही नहीं है। सरकार यह अधिसूचना जारी करे कि हर विश्वविद्यालय में ओबीसी, एसटी, एसटी के पद आरक्षण के मुताबिक़ भरे जाएँ, किसी रोस्टर की कोई ज़रूरत नहीं है। वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव ने एससी, एसटी, ओबीसी को उनकी आबादी के मुताबिक़ 90 प्रतिशत आरक्षण की माँग को लेकर सभाएँ और पदयात्राएँ करने की घोषणा कर दी है।
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