सरकार ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक की रैंकिंग को सिरे से खारिज कर दिया है। इसने कहा है कि वह न तो उस रिपोर्ट से सहमत है और न ही उस 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' संगठन से जिसने रिपोर्ट तैयार की। सरकार ने यह बात संसद में ही रखी है।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा, 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक एक विदेशी ग़ैर-सरकारी संगठन द्वारा प्रकाशित किया जाता है, जिसे रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कहा जाता है, और सरकार इसके विचारों और देश की रैंकिंग को नहीं मानती है और इस संगठन के निष्कर्षों से सहमत नहीं है।'
कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सरकार ऐसा इसलिए मानती है कि संगठन रैंकिंग के लिए 'बहुत कम नमूना लेता है, लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को बहुत कम या कोई महत्व नहीं देता है और एक ऐसी कार्यप्रणाली को अपनाता है जो संदिग्ध और गैर-पारदर्शी है।'
पत्रकारों की सुरक्षा के मुद्दे पर ठाकुर ने कहा कि केंद्र सरकार पत्रकारों सहित देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा को सर्वोच्च महत्व देती है। अक्टूबर 2017 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विशेष रूप से पत्रकारों की सुरक्षा पर एक एडवाइजरी जारी की गई थी, जिसमें मीडियाकर्मियों की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून को सख्ती से लागू करने का अनुरोध किया गया था।
अनुराग ठाकुर ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने की अपनी नीति के तहत सरकार प्रेस के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करती है। वैसे, यह पहली बार नहीं है कि मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों को खारिज किया है।
पिछले साल अक्टूबर में जब ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 2022 की रैंकिंग में फिसलकर 121 देशों में से 107 वें स्थान पर पहुँच गया तो मोदी सरकार ने उस रिपोर्ट को त्रुटिपूर्ण बता दिया था।
इसने कहा था कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में कार्यप्रणाली संबंधी गंभीर समस्याएँ हैं। इसने इससे पहले के साल के इंडेक्स को भी खारिज कर दिया था और कहा था कि जिस आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है वह अवैज्ञानिक पद्धति है। सरकार ने कहा था कि उस रिपोर्ट को सिर्फ 4 सवालों वाले ओपिनियन पोल के आधार पर तैयार कर दिया गया है। रिपोर्ट को तैयार करने वाली संस्था ने कहा था कि यह रिपोर्ट किसी ओपिनियन पोल के आधार पर तैयार नहीं की गई है।
कई और उन अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों को भारत यह कहते हुए खारिज करते रहा है कि आकलन के लिए सही तरीक़ा नहीं अपनाया गया। पिछले साल जब विश्व विषमता रिपोर्ट आई थी तो उसको भी केंद्र सरकार ने ख़ारिज कर दिया था। रिपोर्ट में कहा गया था भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है। विश्व विषमता रिपोर्ट के अनुसार भारत की शीर्ष 10% आबादी की आय नीचे के 50% लोगों की आय का 22 गुना है। 12 लाख रुपये की वार्षिक आय वाले लोग देश के शीर्ष 10% लोगों में शामिल हैं। देश की औसत आय सिर्फ 2 लाख रुपये है। शीर्ष 1% की औसत वार्षिक आय 44 लाख रुपये से अधिक है।
हालाँकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस रिपोर्ट को "त्रुटिपूर्ण" बताते हुए निष्कर्षों को खारिज कर दिया और कहा था कि रिपोर्ट तैयार करने के लिए 'संदिग्ध पद्धति' का इस्तेमाल किया गया।
आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के एक वेबिनार में संघ के दूसरे सबसे बड़े ताक़तवर अधिकारी आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने देश में ग़रीबी, बेरोजगारी, असमानता जैसी समस्याओं को स्वीकार किया था। होसबले ने कहा था, 'देश में गरीबी हमारे सामने दानव की तरह खड़ी है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस राक्षस का वध करें। 20 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं, यह एक ऐसा आंकड़ा है जो हमें बहुत दुखी करता है। 23 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 375 रुपये से कम है।'
अभी कुछ महीने पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री आई तो सरकार ने कड़ी निंदा की थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि 'झूठे नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए प्रोपेगेंडा डिजाइन किया गया'।