नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का यह शपथ-ग्रहण समारोह अपने आप में ऐतिहासिक है, क्योंकि यह ऐसा पहला ग़ैर-कांग्रेसी मंत्रिमंडल है, जो अपने पहले पाँच साल पूरे करके दूसरे पाँच साल पूरे करने की शपथ ले रहा है। पिछले शपथ-ग्रहण समारोह से यह इस अर्थ में भी थोड़ा भिन्न है कि इसमें दक्षेस (सार्क) की बजाय ‘बिम्सटेक’ सदस्य-राष्ट्रों के प्रतिनिधि आए। इसके कारण हमारे तीन पड़ोसी देशों की उपेक्षा हो गई। मालदीव, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान!
मेरी राय यह थी कि दक्षेस और बिम्सटेक के अलावा अन्य पड़ोसी राष्ट्रों को भी बुलाया जाता तो बेहतर होता। ऐसे पड़ोसी राष्ट्र, जो भारत को महाशक्ति और महासम्पन्न बनाने में विशेष सहायक हो सकते हैं। शपथ-ग्रहण समारोह इतने कम समय में आयोजित हुआ है कि शायद इतने राष्ट्रों को एक साथ बुलाना संभव नहीं था। खैर, इस नए मंत्रिमंडल के शपथ-ग्रहण समारोह में मुझे यह भी अच्छा लगा कि राजनाथ सिंह, अमित शाह और नितिन गडकरी की वरिष्ठता को यथोचित्त रखा गया। इन लोगों के बीच सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को बैठा न देखकर मुझे दुख हो रहा है। सुषमा और अरुण, दोनों अपने स्वास्थ्य के कारण बाहर रहने को मजबूर हुए हैं। यह इस नए मंत्रिमंडल के लिए घाटे का सौदा है। स्वर्गीय पर्रिकर और अनंतकुमार की भी याद ताज़ा हुई।
अमित शाह को मंत्री बनाकर मोदी ने अनौपचारिक उप-प्रधानमंत्री का पद कायम कर दिया है। जैसे अटलजी और आडवाणीजी की जुगल-जोड़ी ने काम किया, उससे भी बेहतर काम यह नरेंद्र भाई और अमित भाई की भाई-भाई जोड़ी काम करेगी।
जयशंकर से मिलेगी विदेशनीति को धार
डाॅ. जयशंकर को मंत्री बनाकर मोदी ने अपनी विदेशनीति को नई धार देने की कोशिश की है। जयशंकर चीन और अमेरिका में हमारे राजदूत रह चुके हैं और विदेश सचिव भी रहे हैं। उनके पिता स्वर्गीय के. सुब्रहमण्यम भारत के माने हुए रणनीति-विशेषज्ञ रहे हैं। कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी इस बार मंत्रिमंडल में जोड़ा गया है, इससे केंद्र सरकार को उनके अनुभव का लाभ तो मिलेगा ही, उन-उन प्रांतों में बीजेपी का जनाधार भी बढ़ेगा। इस नए मंत्रिमंडल में कई पुराने मंत्रियों को बरकरार रखा गया है। ज़ाहिर है कि ज़्यादातर मंत्रियों ने अपना काम ठीक-ठाक किया है। जैसे कई कांग्रेसी सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे, वैसे आरोप मोदी मंत्रिमंडल के सदस्यों पर नहीं लगे। आशा है कि मोदी सरकार की इस दूसरी अवधि में भी इस मंत्रिमंडल के सदस्यों का आचरण विवादों के परे रहेगा।
नये सदस्यों से बढ़ेगा जनाधार
इस मंत्रिमंडल में कई नये सदस्यों को भी जोड़ा गया है। इनमें से कुछ बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रहे सांसद भी मंत्री बने हैं। यह भी बीजेपी के जनाधार को बढ़ाने में मदद करेगा। इस मंत्रिमंडल में महिलाओं और अहिंदी प्रांतों के सांसदों को काफ़ी स्थान मिला है। यह बीजेपी के लिए ही नहीं, संपूर्ण भारत के लिए शुभ-संकेत है।देश की जनता को सरकार, नौकरशाही, पुलिस और फ़ौज से ज़्यादा जोड़नेवाली ताक़त कोई होती है तो वह एक अखिल भारतीय राजनीतिक पार्टी होती है। यह काम जो कांग्रेस करती रही, अब वही बीजेपी करती दिखाई पड़ रही है। एक मज़बूत पार्टी और मज़बूत सरकार भारत को अगले पाँच साल में विश्व-स्तरीय शक्ति बना सकती है।