'बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार' यह नारा देकर सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा देकर यह साबित करने की कोशिश की थी कि महिला सुरक्षा और उनके सम्मान की उन्हें बहुत चिंता है। लेकिन ये तमाम नारे और दावे उस वक्त हवाई साबित हो गए जब सरकार की नाक के नीचे दूरदर्शन में काम करने वाली महिलाओं के यौन शोषण के आरोप लगे और अभियुक्तों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। महिला विकास मंत्री को लिखी चिट्ठी के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए अभियुक्तों को सज़ा देने के बजाय उन्हें बचाया गया। इन हालात में प्रधानमंत्री से सवाल तो बनता ही है कि आखिर कार्यस्थल पर काम करने वाली महिलाओं को यौन शोषण से कैसे बचाया जाए।
'बेटी बचाओ बेटी, बचाओ पढ़ाओ'
दूरदर्शन के अलग-अलग केंद्रों में यौन उत्पीड़न का शिकार होने वाली महिला कर्मियों ने कई साल बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होने के बाद यह सवाल उठाया है कि जब 'बेटी बचाओ बेटी, बचाओ पढ़ाओ' का नारा देने वाली सरकार के अपने मीडिया हाउस में महिलाओं के उत्पीड़न की यह हालत है तो बाकी जगहों पर क्या हाल होगा। देश के अलग-अलग हिस्सों से आई इन महिला कर्मियों ने दिल्ली में बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी आपबीती सुनाई और अभियुक्तों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की। कुछ दिन पहले 'मी टू' अभियान के तहत बॉलीवुड के कई कलाकारों पर यौन शोषण के आरोप लगे थे। इसी तरह के गंभीर आरोपों के चलते देश के विदेश राज्य मंत्री एम. जे. अकबर को इस्तीफ़ा देना पड़ा था अब दूरदर्शन के बड़े अधिकारियों पर यौन शोषण के आरोप लगने के बाद सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचा हुआ है।
अपने यौन शोषण के ख़िलाफ़ दूरदर्शन की महिला कर्मियों के खुलकर सामने आने के बाद खुलकर सामने आने के बाद प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर ने ट्वीट करके कहा है कि इन मामलों में उचित कार्रवाई की गई है। उन्होंने यह भरोसा दिलाया है कि वह इन सभी मामलों को गंभीरता से लेते हुए जल्द से जल्द ठोस क़दम उठाएंगे। प्रसार भारती के सीईओ चाहे जो दावा करें, हक़ीक़त यह है कि यौन उत्पीड़न का शिकार हुई महिलाएं इंसाफ़ के लिए दर-दर भटक रहीं है और अभियुक्त अपने रसूख का लाभ उठाकर अपने पद पर बने हुए हैं या फिर रिटायरमेंट के बाद पेंशन पा रहे हैं।
उत्पीड़न का शिकार हुई महिलाओं ने महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली, राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठियाँ लिखीं, पर न वे अपनी खोई हुई नौकरी दोबारा पा सकीं और न ही किसी अभियुक्त के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई हुई।
आरोप सही पाए गए
भोपाल दूरदर्शन केंद्र में काम करने वाली अपर्णा गीते अपने यौन शोषण के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आ गई हैं। इनका मामला सबसे ज्यादा गंभीर है। 2005 से 2015 तक 10 साल काम करने के बाद दूरदर्शन के दफ्तर में ही इनके दो सीनियर ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। इसकी शिकायत आईसीसी यानी यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करने वाली आंतरिक समिति में शिकायत करने पर इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। आंतरिक समिति ने दोनों सीनियर एस. एन. सिन्हा और आशीष खरे पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को सही माना। समिति ने दोनों को दोषी माना और उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की सिफ़ारिश भी की। इसके अलावा समिति ने अपर्णा गीते को को ससम्मान दोबारा नौकरी पर रखने की भी सिफ़ारिश की। लेकिन तमाम ज़द्दोजहद के बावजूद उसे नौकरी पर वापस नहीं रखा गया और ना ही कोई कार्रवाई हुई। एस. एन. सिन्हा तो ससम्मान रिटायर हो चुके हैं और आशीष खरे अपने पद पर बने हुए हैं, जबकि समिति ने इन दोनों को पद से हटाने की सिफ़ारिश समिति ने की थी।
प्रधानमंत्री को लिखा ख़त
अपर्णा गीते कहती हैं कि उन्होंने महिला बाल महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए चिट्ठी लिखी थी। उसके बाद उनके पास राष्ट्रीय महिला आयोग से 18 जनवरी 2016 को यह सूचना देने की चिट्ठी तो आई कि मामले में जांच बैठा दी गई है। लेकिन वह जांच का क्या हुआ, उन्हें अब तक कुछ पता नहीं चला है। अपने मामले में कोई कार्रवाई ना होते देख उन्होंने मेनका गांधी को दोबारा चिट्ठी लिखी और साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चिट्ठी लिखी। इन दोनों चिट्ठियों में अपर्णा ने कहा है, 'यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि प्रधानमंत्री कार्यालय के डिप्टी डायरेक्टर की तरफ से 5 अगस्त 2015 को भोपाल दूरदर्शन केंद्र के महानिदेशक को आंतरिक समिति की सिफ़ारिशों पर अमल करने के दिए गए निर्देशों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह साफ़ है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशों को अनदेखा करते हुए आंतरिक समिति की सिफ़ारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।' अपर्णा आगे लिखती है, 'मैं बेरोज़गार हूं और इस वक्त गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रही हूं। बदले की भावना के तहत कार्रवाई करते हुए मुझे दूरदर्शन केंद्र भोपाल से निकाल दिया गया है। मेरे पास मेरे खर्चो और अपने बेटे के परवरिश के लिए ना पैसे हैं ना कोई और साधन है।' प्रधानमंत्री तक को की गई इस अपील के बावजूद अपर्णा को नौकरी मिल पाई है और ना ही इंसाफ़।
इन महिला कर्मियों को क़ानूनी सलाह दे रहीं वकील वरुणा भंडारी के मुताबिक दूरदर्शन की सात ऐसी महिला कर्मियों ने उनसे संपर्क किया है, जिनके साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ। भंडारी ने दावा किया है कि 10 मामलों में से 9 में आईसीसी यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर ध्यान नहीं देती। उनके मुताबिक़, दूरदर्शन के अलग-अलग केंद्रों में महिला कर्मियों के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामलों में से सिर्फ एक में दूरदर्शन के प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव अजय मिश्रा को निलंबित किया गया है। उनके ख़िलाफ़ यह कार्रवाई एक के बाद एक दो मामले सामने आने के बाद हुई है। दिल्ली के दूरदर्शन केंद्र में काम करने वाली एक महिलाकर्मी मिस 'एक्स' को इस साल मार्च से सैलरी नहीं मिली है। वजह है कि उसने अपने यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिमाक़त कर दी। जिस अधिकारी पर उसने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाया उसी ने दिल्ली में ही दूसरे केंद्र पर उसका तबादला कर दिया। अपनी बीमार माँ और पोलियो ग्रस्त भाई के इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। एक अन्य महिला के आरोप लगाने पर उस अधिकारी को सस्पेंड किया गया।
दिल्ली दूरदर्शन की एक अन्य महिला कर्मी मिस 'ए' की कहानी भी बाकी महिला कर्मियों की तरह ही है। दिल्ली दूरदर्शन में रिपोर्टर और एंकर इस महिला कर्मी ने जब यौन उत्पीड़न करने वाले अपने सीनियर के विरुद्ध आवाज़ उठाई तो अभियुक्त अफ़सर का तबादला अगरतला तो कर दिया गया, मगर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसने तबादला रुकवा लिया। दूरदर्शन की एक अन्य महिला कर्मी मिस 'सी' के मामले में एक सहकर्मी शराब पीकर नशे में धुत होकर दफ़्तर आया और महिलाकर्मी के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश करने लगा। महिलाकर्मी ने मौखिक रूप से अपने सीनियर अधिकारियों से इसकी शिकायत की। उस वक्त उस आदमी को बाहर निकाल दिया गया लेकिन बाद में उसे काम पर वापस बुला लिया गया।
माफ़ी माँगी, छोड़ दिया
दूरदर्शन के अधिकारियों काव्य कुमार और मज़हर महमूद के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद मामला संसद तक में उठा। दूरदर्शन केंद्रों में यौन उत्पीड़न के लंबित चल रहे मामलों में की गई जांच और जांच के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में बताया गया इन मामलों में अभियुक्तों ने माफ़ी माँग ली है। उन्हें यह चेतावनी देकर छोड़ दिया गया कि भविष्य में वह ऐसी हरकतें नहीं करेंगे। वरुणा भंडारी कहती हैं कि दूरदर्शन में कि यौन उत्पीड़न के अभियुक्तों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के नाम पर उनका तबादला करने का नियम सा बन गया है। दूरदर्शन के आला अधिकारी आरोपियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्यवाही करने की जरूरत ही नहीं समझते।
यौन उत्पीड़न के मामलों पर जाँच करने वाली आंतरिक समितियां बग़ैर नाखून या दाँत के शेर की तरह हैं। पहले तो समिति जाँच करने को तैयार ही नहीं होती और अगर जांच हो भी जाती है तो उसमें कभी कार्रवाई नहीं की जाती है।
उत्पीड़न के आदी
दिल्ली दूरदर्शन की एक और महिलाकर्मी मिस 'वाई' के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में आर्थिक समिति की सिफ़ारिशों को नज़रअंदाज़ करते हुए कोई अभियुक्तों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई। मिस 'ज़ेड' के यौन उत्पीड़न का मामला तो और भी हैरान करने वाला है। आंतरिक समिति से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलने पर इस महिला कर्मी को यौन उत्पीड़न के आदी हो चुके अधिकारी के ख़िलाफ़ एफआइआर दर्ज कराने के लिए पटियाला हाउस कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। मामला अभी अदालत में है। इस मामले में आरोपी दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक हैं।
वरुणा भंडारी के मुताबिक सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात है कि दूरदर्शन केंद्रों में अच्छी खासी संख्या में काम करने वाली महिला कर्मियों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित कानूनों और विशाखा गाइडलाइन की जानकारी देने और उसके प्रति जागरूक करने के लिए अभी तक कोई ट्रेनिंग या वर्कशॉप आयोजित नहीं की गई है। यौन उत्पीड़न की शिकार बनी दूरदर्शन की महिला कर्मियों की तरफ से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि 'अगर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा देने वाली सरकार के अपने संगठन में महिला के यौन उत्पीड़न से संबंधित कानूनों के अमल का यह हाल है तो बाकी जगहों पर क्या हाल होगा।