सीएए: विरोध को मीरा नायर, नसीरुद्दीन शाह सहित 300 हस्तियों का समर्थन
नागरिकता क़ानून यानी सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को मीरा नायर, नंदिता दास, नसीरुद्दीन शाह सहित 300 से ज़्यादा हस्तियों ने समर्थन किया है। उन्होंने इस संबंध में एक बयान जारी किया है और कहा है कि वे छात्रों के साथ खड़े हैं। इसके साथ ही उन्होंने लिखा है कि इस राष्ट्र के लिए हमारा नज़रिया है कि हम अब हमारे लोकतंत्र और इसे बचाने वाले संविधान के लिए खड़े हों। बता दें कि नागरिकता क़ानून के विरोध में सेवानिवृत्त अफ़सरों ने भी हाल ही में खुला ख़त लिखकर विरोध किया था।
अब जो इन हस्तियों ने बयान जारी किया है उसमें कलाकार, फ़िल्ममेकर, लेखक और बुद्धिजीवी शामिल हैं। यह बयान जारी करने वालों में मीरा नायर, नंदिता दास, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के अलावा रत्ना पाठक शाह, जावेद जाफरी, होमी के भाभा, पार्थ चटर्जी, अनीता देसाई, किरण देसाई, टीएम कृष्णा, आशीष नंदी, और गायत्री चक्रवर्ती स्पिवक जैसी हस्तियाँ शामिल हैं।
इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों ने लिखा है, 'हम उन छात्रों और अन्य लोगों के साथ एकजुटता में खड़े हैं जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं और बोल रहे हैं। एक बहुलतावादी और विविधतापूर्ण समाज के अपने वादे के साथ भारत के संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उनके सामूहिक आवाज़ को हम सलाम करते हैं। हम इस बात से अवगत हैं कि हम हमेशा उस वादे पर खरे नहीं उतरे हैं, और हम में से कई लोग अक्सर अन्याय के विरोध पर चुप रहते हैं। इस पल की गंभीरता की यह माँग है कि हम में से प्रत्येक अपने सिद्धांतों के लिए खड़े हों।'
उन्होंने कहा है कि जनता की असहमति या खुली चर्चा के अवसर दिए बिना संसद के माध्यम से जल्दी से क़ानून पारित करना एक धर्मनिरपेक्ष, समावेशी राष्ट्र के सिद्धांत के विरोधी है। उन्होंने कहा कि ‘राष्ट्र की आत्मा को ख़तरा है’।
इस बयान में यह भी कहा गया है कि एनआरसी के तहत कोई दस्तावेज़ नहीं पेश कर पाएगा तो उसे देशविहीन माना जा सकता है। उन्होंने लिखा है, ‘एनआरसी के माध्यम से अवैध क़रार दिए गए लोगों को, यदि वे मुसलिम नहीं हैं, नागरिकता क़ानून के तहत नागरिकता के लिए वैध होंगे।’
इसमें सवाल उठाया गया है कि जब इस क़ानून को उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए बताया जा रहा है तो आख़िर क्यों श्रीलंका, चीन और म्यांमार के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को बाहर रखा गया है। उन्होंने पूछा है कि क्या ऐसा इसलिए है कि इन देशों में सत्ता में बैठे लोग मुसलिम नहीं हैं इन हस्तियों ने कहा है कि इस क़ानून का मतलब है कि मुसलिमों को नहीं आने दिया जाएगा। उन्होंने लिखा है, ‘यह सरकार प्रयोजित धार्मिक उत्पीड़न है’।
उन्होंने लिखा है, 'पुलिस की बर्बरता के कारण जामिया मिल्लिया इसलामिया और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के छात्र सहित सैकड़ों लोग घायल हुए। प्रदर्शन के दौरान कई लोग मारे गए। इससे कहीं ज़्यादा नज़बंद किए गए हैं। प्रदर्शन को रोकने के लिए कई राज्यों में धारा 144 लगाई गई।'
उन्होंने कहा है कि हम उनके साथ खड़े हैं जो मुसलिम विरोधी व बाँटने वाली नीतियों का बहादुरी से विरोध कर रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि वे उनके साथ खड़े हैं जो लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
106 सेवानिवृत्त अफ़सरों ने लिखा था खुला ख़त
नागरिकता संशोधन क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए क़रीब एक पखवाड़े पहले ही 106 सेवानिवृत्त अफ़सरों ने खुला पत्र लिखा था। उन्होंने यह पत्र आम लोगों के नाम लिखा था। पत्र में उन्होंने लिखा था कि एनपीआर यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और एनआरआईसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीज़न ग़ैर ज़रूरी और बेकार की प्रक्रिया है जो लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगी। उन्होंने इस पत्र का शीर्षक ही ‘भारत को सीएए-एनपीआर-एनआरआईसी की ज़रूरत ही नहीं’ दिया था। इन पूर्व अफ़सरों में शामिल दिल्ली के पूर्व लेफ़्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने नागरिकों से आग्रह किया था कि वे नागरिकता अधिनियम, 1955 में राष्ट्रीय पहचान पत्र से जुड़ी धाराओं को निरस्त कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएँ।
बता दें कि नागरिकता संशोधन क़ानून पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है। मुसलिमों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसी आधार पर कहा गया है कि यह क़ानून धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है और यह संविधान में उल्लेखित धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है। इस बीच अमित शाह ने पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात की और फिर एनपीआर की बात कही। एनआरसी और एनपीआर में लोगों से अपनी पूरी जानकारी के साथ ही माँ-बाप के जन्म और उनके जन्म स्थान की जानकारी देने की बात कही गई है। माना जा रहा है कि इससे लोगों को काफ़ी दिक्कतें होंगी और वे शायद ये कागजात नहीं दे सकें। इसी को लेकर विरोध हो रहा है।