बीजेपी छोड़ने वाले मंत्रियों, विधायकों की भाषा एक जैसी, कौन है स्क्रिप्ट लेखक?
यूपी में बीजेपी छोड़ने वाले मंत्रियों, विधायकों की भाषा एक जैसी है। सभी 11 जनवरी की तारीख पड़ी हुई है। क्या इन इस्तीफों की स्क्रिप्ट एक ही शख्स ने लिखी है? यूपी के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी छोड़ने वाले बीजेपी को उस पिच पर एक्सपोज कर रहे हैं, जिनके सहारे वो 2017 में यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थी।
बीजेपी के शिकोहाबाद के विधायक मुकेश वर्मा ने आज बीजेपी छोड़ने की घोषणा की है। उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा है बीजेपी की प्रदेश सरकार ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं व जनप्रतिनिधियों को कोई तवज्जो नहीं दी गई और न ही उन्हें उचित सम्मान दिया गया।
योगी कैबिनेट के मंत्री दारा सिंह ने कल इस्तीफा दिया था। उनके इस्तीफे में भी यही भाषा लिखी थी। इससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे की भाषा भी यही थी। इनके अलावा बीजेपी विधायक भगवती सागर, रोशनलाल वर्मा, ब्रजेश प्रजापति के इस्तीफों की भाषा यही थी। आज मुकेश वर्मा और विनय शाक्य के इस्तीफों की भी भाषा एक जैसी है और उन पर भी 11 जनवरी की तारीख है।
सभी इस्तीफों की भाषा एक जैसी होने से यह स्पष्ट है कि इन इस्तीफों की भाषा एक ही जगह लिखी गई है। इनका मास्टरमाइंड एक ही आदमी है। यह बीजेपी की ओबीसी राजनीति का किला ध्वस्त करने का ऑपरेशन है। लेकिन यह कैसे पता चले कि इन इस्तीफों की स्क्रिप्ट किसी एक शख्स ने लिखी है।
छह महीने से चल रही थी तैयारी
इसका कुछ-कुछ संकेत वरिष्ठ पत्रकार प्रिया सहगल ने दिया। वो कल सत्य हिन्दी पर आशुतोष की बात कार्यक्रम में शामिल हुई थीं। उन्होंने सत्य हिन्दी के कार्यक्रम में कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात सितम्बर 2021 में हुई थी। तब अखिलेश ने उन्हें बताया कि वो ओबीसी नेतृत्व वाली तमाम छोटी-छोटी पार्टियों और योगी कैबिनेट के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के संपर्क में हैं। ये सभी लोग या तो समाजवादी पार्टी से जुड़ेंगे या गठबंधन करेंगे। लेकिन ये सभी लोग उचित समय का इंतजार कर रहे हैं।
पत्रकार प्रिया सहगल ने जो तथ्य सत्य हिन्दी पर बताए, उसकी पुष्टि इस समय सपा का ओबीसी ऑपरेशन कर रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्य और बाकी विधायकों के इस्तीफों से पहले ही अखिलेश यादव ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव पार्टी, केशवदेव मौर्य की महान दल, जनवादी पार्टी से समझौता कर चुके थे। अपना दल की अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल भी अखिलेश खेमे में हैं। हालांकि बेटी केंद्र में मंत्री है और बीजेपी के साथ है।
अभी जिस तरह से बीजेपी के ओबीसी विधायकों के इस्तीफे आए हैं, वो भी पुष्टि कर रहे हैं, अखिलेश से पूरी तरह आश्वासन पाने के बाद ही उन्होंने बीजेपी को छोड़ने का फैसला किया। लेकिन सभी डर रहे थे कि अगर वो चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले इस्तीफा देंगे तो बीजेपी पर उन पर छापे डलवा सकती है, पुलिस से तंग करा सकती है। इसीलिए चुनाव की तारीखों के ऐलान का इंतजार किया गया। हालांकि इसके बावजूद बीजेपी विधायक विनय शाक्य के घर के बाहर पुलिस तैनात कर दी गई और स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ सुल्तानपुर की कोर्ट से 2014 के मामले में गिरफ्तारी वॉरंट जारी हो चुका है। विनय शाक्य घोषणा कर चुके हैं कि जहां स्वामी प्रसाद मौर्य जाएंगे, वहां वो जाएंगे। लेकिन तकनीकी रूप से अभी उनका इस्तीफा नहीं हुआ है। वो घर से बाहर ही नहीं निकले हैं।
क्यों नाराज हैं ओबीसी
बीजेपी पर आरोप लगता रहा है कि वो दलितों और ओबीसी नेताओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए तो करती है लेकिन बाद में उन्हें कूड़ेदान में फेंक देती है। इसके लिए बीजेपी के आरएसएस से आए संस्कारों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। अभी जब मंत्रियों और विधायकों के इस्तीफे सामने आए तो उससे भी पुष्टि हुई कि ये सारे ओबीसी नेता बीजेपी में घुटन महसूस कर रहे थे। ज्यादातर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से नाराज थे। स्वामी प्रसाद मौर्य ने तो नवंबर 2021 में गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर योगी की शिकायत तक की थी। इसके अलावा भी तमाम कोनों से बीजेपी आलाकमान के पास शिकायतें पहुंच रही थीं। पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने तो बीजेपी और योगी पर खुलकर आरोप लगाए थे। हालांकि 2017 में राजभर ने बीजेपी से गठबंधन किया था। लेकिन राजभर का अब कहना है कि बीजेपी में दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं है। हम लोग अपने समाज से कुछ वादे करके आए थे लेकिन बीजेपी हमें दूसरी धारा की तरफ बहा ले जाना चाहती है। इसलिए हम बीजेपी न छोड़ते तो अपना आत्मसम्मान खो देते।
अखिलेश अब परिपक्व राजनेता
यह तो स्पष्ट हो गया कि छोटे-छोटे ओबीसी दलों के नेताओं को अपने पाले में लाने, योगी सरकार के मंत्रियों और बीजेपी विधायकों के इस्तीफे की स्क्रिप्ट एक ही शख्स ने लिखी है, उसका नाम अखिलेश यादव है। अखिलेश के पिछले कार्यकाल में राजनीतिक विश्लेषक उन्हें बहुत परिपक्व नेता नहीं मानते थे लेकिन अब उन्होंने इसे साबित कर दिया है कि वो एक परिपक्व नेता की तरह ही आगे बढ़ रहे हैं। अखिलेश की खुद की भाषा सधी हुई है, वो अपने पिता मुलायम सिंह यादव या चाचा शिवपाल यादव जैसी शब्दावली का भी इस्तेमाल नहीं करते। अन्य दलों के नेताओं के साथ उनके बर्ताव का डंका बज रहा है। कल की घटना का जिक्र यहां जरूरी होगा। अखिलेश ने कल जब सहयोगी दलों की बैठक बुलाई तो मीटिंग की मुख्य कुर्सी पर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल को बैठाया। यानी उन्होंने उस बैठक में शामिल इकलौती महिला को इस तरह सम्मान दिया। कल तमाम लोगों ने उस तस्वीर को सोशल मीडिया पर शेयर कर अखिलेश की तारीफ की।
बहरहाल, सपा के सूत्रों का कहना है कि अभी कई ओबीसी विधायकों के इस्तीफे होने को हैं। इसकी घोषणा 14 जनवरी को हो सकती है। उसी दिन स्वामी प्रसाद मौर्य भी सपा में शामिल होने की घोषणा करेंगे। स्वामी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि 14 जनवरी को बड़ा खेल होगा। उन्होंने बीजेपी नेतृत्व को सीधे चुनौती दी है कि वो ओबीसी विधायकों को रोक सके तो रोक कर दिखाए।