दंगों के केस लड़ रहे वकील महमूद प्राचा के कार्यालय की तलाशी क्यों?
दंगों से जुड़े कई मुक़दमों में पैरवी करने वाले प्रसिद्ध वकील महमूद प्राचा के कार्यालय की दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को तलाशी ली है। दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई की कई वरिष्ठ वकीलों ने आलोचना की है। प्राचा के ख़िलाफ़ अगस्त महीने में फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगा था और तभी उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी। इससे दंगे के आरोपियों का केस लड़ने वाले दूसरे वकील भी चिंतित थे कि कहीं वे भी किसी मुक़दमे में फँस जाएँ।
उनकी यह आशंका इसलिए थी क्योंकि महमूद प्राचा इस साल फ़रवरी महीने में हुए दिल्ली दंगे के मामले में भी आरोपियों का केस लड़ रहे हैं।
प्राचा के कार्यालय पर जो छापा मारा गया है वह मामला दरअसल अगस्त महीने में एक मुक़दमे से जुड़ा है। दिल्ली की एक अदालत ने 22 अगस्त को प्राचा के ख़िलाफ़ उन आरोपों की जाँच के आदेश दिए थे जिनमें उनपर धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे। इसके बाद उनके ख़िलाफ़ धोखाधड़ी और जालसाजी की एफ़आईआर दर्ज की गई थी। इस मामले की जाँच दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही है। और इसी संदर्भ में यह तलाशी की कार्रवाई की गई है।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने उस तलाशी की कार्रवाई की आलोचना की। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'दिल्ली दंगों के मामले में बचाव के लिए वकील महमूद प्राचा पर छापा क़ानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार के मौलिक अधिकार पर सीधा हमला है, सभी वकीलों को इस हमले की निंदा करनी चाहिए।'
The raids on Mahmood Pracha Lawyer for the defence in the Delhi riots case is a direct attack on the fundamental right of the right to legal representation , all lawyers must condemn this attack
— Indira Jaising (@IJaising) December 24, 2020
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, 'उन वकीलों पर निशाना साधा जा रहा है जो ऐसे लोगों का बचाव कर रहे हैं जिन्हें फँसाया गया है। यह उस साज़िश में अगला क़दम है जिसमें प्रदर्शन करने वालों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और उनके वकीलों को जाँच की आड़ में फँसाया जाए।'
प्राचा ने क्या कहा?
रिपोर्ट के अनुसार, निज़ामुद्दीन पूर्वी में प्राचा के कार्यालय में जब तलाशी ली जा रही थी तो पुलिसकर्मियों ने प्रवेश पर रोक लगा दी थी। शाम को दूसरी मंजिल की बालकनी से प्रचा ने कहा, 'मेरा फ़ोन जब्त कर लिया गया है। मुझे धमकी दी जा रही है। मैंने उन्हें बताया है कि वे मेरे कंप्यूटर से, मेरे कार्यालय से और यहाँ तक कि मेरे घर से भी चीजें ले सकते हैं। आख़िरकार संविधान जीतेगा। यह इतना कमज़ोर नहीं है... हम सुनिश्चित करेंगे कि हर दंगा पीड़ित को न्याय मिले।'
जबकि पुलिस का आरोप है कि प्राचा के ख़िलाफ़ शिकायत है कि उन्होंने फर्जी नोटरी स्टांप का इस्तेमाल किया। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त पीआरओ अनिल मित्तल ने कहा कि पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के एक आरोपी से संबंधित जमानत मामले के दौरान, एक जाली नोटरी स्टैम्प का उपयोग और हेरफेर किया गया साक्ष्य पेश किया गया। उनके अनुसार, विशेष अदालत ने कहा था कि इसकी पूरी जाँच ज़रूरी थी और इसी संदर्भ में जाँच की जा रही है।
उन्होंने कहा, 'जाँच के दौरान, बार के दो सदस्यों के परिसर से इलेक्ट्रॉनिक और अन्य सबूतों की तलाश करने के लिए न्यायालय से वारंट प्राप्त किए गए थे और इन्हें निजामुद्दीन में एक स्थान पर और दूसरे को यमुना विहार में पेशेवर तरीक़े से अंजाम दिया जा रहा था।'
पुलिस कार्रवाई के बाद प्राचा ने दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात इसलिए कही क्योंकि वह दंगे से जुड़े क़रीब डेढ़ सौ मुक़दमों में पैरवी कर रहे हैं।
अगस्त महीने में जब प्राचा के ख़िलाफ़ वह एफ़आईआर दर्ज की गई थी तब उस कार्रवाई को दंगों में मुक़दमा लड़ने से जोड़कर देखा जा रहा था।
अगस्त महीने में ही 'द हिंदू' ने कुछ वकीलों से बातचीत के आधार पर रिपोर्ट छापी थी। उसके अनुसार, एक वकील ने कहा था, 'स्वाभाविक रूप से कोई भी ख़ुद को मानसिक तौर पर नियंत्रण रखेगा। कोर्ट में कोई भी जाँच में गड़बड़ियों को लेकर निडर और आक्रामक होकर बोलने से पहले दो बार सोचेगा। स्पष्ट रूप से कोई भी तथ्य तो रखेगा लेकिन वह चाहेगा कि उस पर ध्यान न जाए।'
एक अन्य वकील ने कहा था कि कई बार शिकायत करने वाली की बातों पर भरोसा कर केस ले लेते हैं, लेकिन बाद में वे ग़ायब हो जाते हैं। उन्होंने कहा, 'एक महिला ने दंगे के दौरान सेक्सुअल असॉल्ट का आरोप लगाया था, लेकिन अब वह मिल नहीं रही है।'
तब यह सवाल उठा था कि यदि किसी मामले में फँसे आरोपियों की पैरवी करने वाले वकीलों के ख़िलाफ़ ही केस दर्ज कर दिया जाए तो क्या वकील वैसे आरोपियों की पैरवी करने से हतोत्साहित नहीं होंगे? और यदि किसी आरोपी की तरफ़ से कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील ही नहीं होंगे तो क्या यह न्याय के मूलभूत सिद्धाँतों के ख़िलाफ़ नहीं होगा? न्याय का मूलभूत सिद्धाँत कहता है कि आरोपी को बिना किसी डर के अपना पक्ष रखने की पूरी छूट होनी चाहिए।