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दलित वोटों के चलते योगी पर हमलावर हुईं मायावती?, बोलीं- यूपी में गुंडों का राज

दलित वोटों के चलते योगी पर हमलावर हुईं मायावती?, बोलीं- यूपी में गुंडों का राज

मायावती जानती हैं कि अगर इस बार वह योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ चुप रहीं तो उनके पास जो बचा-खुचा दलित वोट बैंक है, वह भी चला जाएगा। 

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के प्रति बहुत ही ‘सॉफ़्ट’ होने के आरोप झेल रहीं मायावती को हाथरस में दलित युवती के साथ गैंगरेप और उसकी मौत होने के बाद हमलावर रूख़ अपनाना पड़ा है। उनके ‘सॉफ़्ट’ होने को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उन्हें बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता तक बता चुकी थीं। 

हाथरस गैंगरेप को लेकर जिस तरह की उग्र प्रतिक्रिया दलित समाज में हुई है, उससे दलित राजनीति के दम पर उत्तर प्रदेश और देश में अपना सियासी वजूद बनाने वालीं मायावती के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है। मायावती जानती हैं कि अगर इस बार वह योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ चुप रहीं तो उनके पास जो बचा-खुचा दलित वोट बैंक है, वह भी चला जाएगा। 

‘माफियाओं, बलात्कारियों का राज’

इसलिए, गुरूवार को न्यूज़ एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में बहुजन समाज की राजनीति करने वालीं बीएसपी सुप्रीमो ने कई सालों बाद (कभी इक्का-दुक्का बयानों को छोड़कर) योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लिया। मायावती ने कहा, ‘हाथरस की घटना के बाद मुझे ऐसा लग रहा था कि यूपी में बीजेपी की सरकार कुछ हरक़त में आएगी। लेकिन अब तो बलरामपुर में भी दलित छात्रा के साथ ऐसी ही घटना हुई। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार में क़ानून का नहीं, गुंडों-बदमाशों-माफियाओं, बलात्कारियों और अन्य अराजक तत्वों का राज चल रहा है और क़ानून व्यवस्था दम तोड़ चुकी हैं।’

हाथरस मसले पर कांग्रेस मुखर 

मायावती को इसलिए भी बोलना पड़ा क्योंकि कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई हाथरस के मसले पर बीते चार दिनों से सड़क पर है और पूरे प्रदेश में लगातार प्रदर्शन कर रही है। उसके प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का कहना है कि योगी आदित्यनाथ से उत्तर प्रदेश नहीं संभल रहा है और उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। इसलिए, शायद मायावती को उनके सियासी सलाहकारों ने यह समझाया कि अगर वह अब नहीं बोलीं तो बहुत देर हो जाएगी। 

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एएनआई से कहा, ‘आरएसएस के दबाव में आकर योगी को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन वे इस लायक नहीं हैं कि अच्छा शासन-प्रशासन दे सकें। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार योगी को गोरखपुर के मठ में बैठा दे या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का काम सौंप दे।’ 

मायावती ने कहा कि जब योगी से उत्तर प्रदेश नहीं संभल रहा है तो या तो केंद्र सरकार किसी दूसरे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में जंगलराज चल रहा है।

एसपी को दिया गच्चा

2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बुरी हार का मुंह देखने वालीं मायावती जानती हैं कि राम मंदिर निर्माण के कारण और दलितों-पिछड़ों में आधार बढ़ाने में जुटे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बढ़ती गतिविधियों की वजह से उनका सियासी वजूद ख़तरे में है। यह तो अच्छा हुआ कि सियासी सूझबूझ दिखाते हुए उन्होंने 2019 में धुर विरोधी एसपी से हाथ मिला लिया और लोकसभा चुनाव में 10 सीटें झटक लीं, वरना 2014 में जो उन्हें शून्य सीटें मिली थीं, उससे कितना आगे बढ़ पातीं, कहना मुश्किल है। लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने एसपी को भी गच्चा दे दिया। 

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प्रियंका का फ़ोकस 2022 के विधानसभा चुनाव पर है।

प्रियंका की सक्रियता से बेचैनी 

टीचर से उत्तर प्रदेश जैसे विशालकाय राज्य की मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वालीं मायावती की परेशानी का कारण कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी हैं। प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में महज 15 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कमर कसी हुई है। 

प्रियंका गांधी लगातार कांग्रेस को छोड़कर जा चुके उसके पुराने वोट बैंक यानी- दलित-मुसलिम-ब्राह्मण को एकजुट कर रही हैं। संगठन में इन वर्गों के लोगों को अहमियत दी जा रही है। मायावती उत्तर प्रदेश के 22 फ़ीसदी दलित वोटों को हाथ से नहीं देना चाहतीं। लेकिन प्रदेश में लगातार बढ़ते दलित अत्याचार और अन्य मसलों पर उनकी चुप्पी को लेकर प्रियंका उन पर खासी हमलावर थीं। इसके अलावा कांग्रेस के दलित नेता भी मायावती से पूछ रहे थे कि आख़िर वह दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर चुप क्यों हैं। 

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हाथरस मामले में भी चंद्रशेखर सड़क पर उतर आए हैं।

चंद्रशेखर की बढ़ती सक्रियता

उत्तर प्रदेश के साथ ही देश भर में दलितों-पिछड़ों की आवाज़ को मजबूती से उठाने वाले चंद्रशेखर आज़ाद की बढ़ती लोकप्रियता और दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर उनके संघर्ष के कारण भी मायावती परेशान हैं। दलित उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर जिस तरह चंद्रशेखर आवाज़ उठाते हैं, मायावती की पार्टी बीएसपी वैसा करती नहीं दिखाई देती। सो, ऐसे में उनके योगी सरकार के ‘सॉफ्ट’ होने के प्रति सवाल उठने लाजिमी ही हैं। 

चंद्रशेखर दलितों के साथ ही नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में मुसलमानों के साथ भी खड़े रहे हैं और कई मसलों पर गिरफ़्तारियां देकर दलित-मुसलिम समाज के बीच पैठ बना चुके हैं। ऐसे में अपनी सियासी ज़मीन को ख़तरा देखकर मायावती को योगी सरकार के ख़िलाफ़ बोलना ही पड़ा।

चौकन्ना है दलित समुदाय 

उत्तर प्रदेश और देश का दलित समुदाय इस वक़्त देख रहा है कि हाथरस जैसे वीभत्स कांड के वक्त उनके समाज का कौन सा नेता उनके साथ खड़ा है और कौन मुंह छिपाए बैठा है। दलितों के दम पर विधानसभा, संसद, आयोगों तक पहुंचने वाले दलित नेता इस बात को समझते हैं। शायद, दलित समाज के गुस्से को भांपते हुए ही मायावती ने योगी आदित्यनाथ को सरकार चलाने के लिए नाकाबिल बताया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की बात कही। 

बहुत देर कर दी?

लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार मानते हैं कि मायावती बीजेपी के प्रति लंबे समय तक ‘सॉफ्ट’ रहकर अपना बहुत नुक़सान करा चुकी हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले उन्हें दलित समुदाय की फिर से याद आई है लेकिन बीजेपी-संघ की हिंदूवादी राजनीति, प्रियंका गांधी- चंद्रशेखर की सक्रियता के बाद मायावती के लिए बहुत उम्मीद नहीं बचती। फिर भी, देखना होगा कि क्या दलित समुदाय उन पर फिर से भरोसा करेगा या नहीं?

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