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मौलाना आज़ाद पर कीचड़ उछालने से पहले पढ़-लिख लेते तो अच्छा होता!

मौलाना आज़ाद पर कीचड़ उछालने से पहले पढ़-लिख लेते तो अच्छा होता!

लखीमपुर खीरी की घटना में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बचाव करते हुए बीजेपी मौलाना आज़ाद के बारे में वाहियात बातें करने लगी है। 

समाचार पोर्टल ‘सत्य हिंदी’ पर एक बहस के दौरान कुछ ऐसी बातें कही गईं जिसको सुनकर हर हिन्दुस्तानी का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए था। सिर्फ़ चंद शब्दों में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अश्विनी शाही ने इस देश के सबसे बुलंद बुद्धिजीवी पर अपनी अज्ञानता की गन्दगी डालने की कोशिश की। अगर उन शब्दों को अक्षरशः दोहराया जाए तो उन्होंने कहा "जब देश का पहला शिक्षा मंत्री ही अनपढ़ हो सकता है तो देश का गृहमंत्री कुछ भी हो सकता है।" 

इसका सन्दर्भ अनिल मिश्रा और उनके बेटे आशीष मिश्रा की क़ातिलाना हरकतों पर पर्दा डालना था। इसका बहुत ही सटीक जवाब गुरदीप सिंह सप्पल ने बहस के दौरान ही दिया। जिस आत्मविश्वास के साथ अश्विनी शाही ने कहा कि देश का पहला शिक्षा मंत्री अनपढ़ था। उसी आत्मविश्वास से अगर ये बात हज़ारों बार दोहराई जायेगी तो सच एक मज़ाक़ बन कर रह जाएगा। 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को अनपढ़ कहना चाँद पर कीचड़ उछालना है, जो गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार उसी चेहरे पर गिर जायेगा जहां से इसकी उत्पत्ति हुई हो। 

अपने जीवन के बीस साल मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की लिखी हुई कोष पर काम किया है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को बचपन में देखने का सौभाग्य भी मिला है और हमारा घर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की लिखी हुई किताबों से सजा हुआ था। 

जब उनकी उम्र महज़ बारह साल की थी तो उन्होंने अपना पहला जर्नल लिसान-उस-सिद्क़ (सच की आवाज़) निकाला। जब वो पंद्रह साल के थे तब उन्होंने अपना दर्स-ए-निज़ामी का कोर्स मुकम्मल किया। जब वो सोलह साल के हुए तब उन्होंने शायरी शुरू की। वो जब चौबीस साल के थे तब उन्होंने अपना जर्नल हिलाल जारी किया जो देश की आज़ादी के लिए एक मज़बूत ललकार था। 

जिसमें उन्होंने मुसलामानों को मज़हब का हवाला देकर हिदायत दी कि वो अपने हिन्दू भाइयों के साथ मिलकर आज़ादी की लड़ाई में अपने आप को झोंक दें। 

जेल में रहे मौलाना आज़ाद

उन्होंने अपने जीवन के कई अहम साल अलीपुर जेल, अहमदनगर जेल और राँची के बंदीगृह में बिताये। इस दौरान उन्होंने क़ुरआन का अनुवाद किया और उसकी व्याख्या लिखी। बार-बार अंग्रेज़ सिपाहियों ने उनकी पांडुलिपि को नष्ट कर दिया। मगर उन्होंने उन्हीं काग़ज़ के टुकड़ों को उठाकर काम फिर से शुरू किया। आज मौलाना आज़ाद का तर्जुमानुल क़ुरआन, क़ुरआन का सबसे विश्वसनीय और प्रामाणिक अनुवाद और व्याख्या मानी जाती है। 

उनके निजी पुस्तकालय में आठ हज़ार किताबें थीं। उसमें उर्दू, अंग्रेजी, फ़ारसी, संस्कृत, अरबी, फ्रेंच,और लैटिन की किताबें मौजूद थीं। और उनके हाशिये पर मौलाना आज़ाद के हाथ से लिखे हुए नोट्स। ये पूरा संकलन उन्होंने अपने महबूब इदारे आईसीसीआर को भेंट कर दिया। उस संकलन में उनके निर्देशन पर लिखी हुई फ़ारसी की रामायण और महाभारत भी थी। और सूफ़ीमत पर बहुत ही उच्च स्तरीय पांडुलिपि भी थी। 

जब मौलाना आज़ाद संसद में बोलने के लिए खड़े होते थे या कांग्रेस प्रेसिडेंट की हैसियत से दिल्ली या रामगढ़ के अधिवेशन में सम्बोधित करते थे तो लोग उनकी बातों को बड़े गौर से सुनते थे।

पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविन्द दास के बेबुनियाद आरोपों पर बहुत ही शाइस्ता अल्फ़ाज़ में जवाब देते। जो पत्रकार स्टेज के नीचे बैठकर हाथ से नोट्स बनाते वो मौलाना आज़ाद से आग्रह करते कि अपने ख़्यालात के रौ को धीरे रखें ताकि कलमबंद कर सकें। 

‘सत्य हिंदी’ समाचार पोर्टल पर अश्विनी शाही जी की बातें सुनकर लोगों को उनका सारा सच पता चल गया। हमारा एक ही सवाल है कि अगर उनको अनिल मिश्रा के बचाव में कुछ तर्क देना भी था तो वो देते। लेकिन इस तरह देश को झूठ के समंदर में धकेलने से क्या फ़ायदा हुआ सिवाय इसके कि उनकी नाकाबलियत दुनिया के रु-ब-रु आ गई। 

हमें शाही से कोई सरोकार नहीं है और उनके इस घटिया आरोप पर कुछ कहना भी मेरे लिए समय को बर्बाद करना है। इस लेख को लिखने का सिर्फ़ एक मक़सद है कि लोगों के अंदर जो ज़हर भरा जा रहा है उसे रोका जाए।

आखिर में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की ज़बान में इस का जवाब अगर कुछ है तो बस ये है कि हम बहुत कुछ कह सकते हैं। और हमें बहुत कुछ कहने की कुव्वत भी है मगर हमारे ख़यालात इस काले बाज़ार में बिकाऊ नहीं हैं।

मौलाना आज़ाद कहते हैं

अंदाज़-ए-जुनूं कौन सा हममें नहीं मजनू

पर तेरी तरह इश्क़ को रुस्वा नहीं करते

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