+
नगालैंड में AFSPA के खिलाफ 2 दिन का मार्च

नगालैंड में AFSPA के खिलाफ 2 दिन का मार्च

नगालैंड में 4 दिसंबर को हुई फायरिंग के बाद से ही माहौल तनावपूर्ण है और लोग AFSPA को हटाने की मांग कर रहे हैं। 

नगालैंड में विवादित कानून AFSPA को हटाने की मांग को लेकर एक बार फिर लोग सड़कों पर हैं। नगा समुदाय के हजारों लोगों ने सोमवार से दीमापुर से लेकर नगालैंड की राजधानी कोहिमा तक 70 किलोमीटर का मार्च शुरू किया है। इन लोगों की मांग है कि AFSPA को खत्म किया जाए। 

नगालैंड में 4 दिसंबर को हुई फायरिंग के बाद से ही माहौल तनावपूर्ण है और लोग AFSPA को हटाने की मांग कर रहे हैं। फायरिंग की घटना में 14 नागरिकों और सेना के एक जवान की मौत हो गई थी। 

तब भी बड़ी संख्या में लोग नगालैंड में सड़कों पर उतरे थे और AFSPA को हटाने की मांग की थी। फायरिंग की घटना मोन जिले के ओतिंग गांव में हुई थी। यह जिला भारत और म्यांमार की सीमा से सटा हुआ है। 

मार्च में शामिल लोगों ने AFSPA के खिलाफ हाथों में पोस्टर लिए हुए हैं। उन्होंने फायरिंग की घटना में मारे गए 14 लोगों को इंसाफ दिलाने की मांग की है। इस मार्च में कई बड़े नगा संगठनों के लोगों ने भाग लिया है और इसके लिए सोशल मीडिया पर भी बड़ा अभियान चलाया गया। 

मार्च के आयोजकों का कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को लेकर सकारात्मक जवाब नहीं देती है तब तक वे लोग अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।  

30 दिसंबर को केंद्र सरकार ने AFSPA को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया था। मार्च में शामिल लोगों ने कहा कि वे केंद्र सरकार के फैसले को नहीं मानेंगे।

नगालैंड में फायरिंग की घटना के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी सहित कई नेताओं ने मांग की थी कि AFSPA को हटा दिया जाना चाहिए।

क्या है AFSPA?

पूर्वोत्तर के राज्यों में सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार देने वाले AFSPA को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। यह क़ानून तब लगाया जाता है जब किसी इलाक़े को सरकार ‘अशांत इलाक़ा’ यानी ‘डिस्टर्बड एरिया’ घोषित कर देती है। इस क़ानून के लागू होने के बाद वहां सेना या सशस्त्र बलों को भेजा जाता है। अगर सरकार यह घोषणा कर दे कि अब राज्य के उस इलाक़े में शांति है तो इसे हटा लिया जाता है और जवानों को वापस बुला लिया जाता है। 

1958 में इसे असम, मिज़ोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था, जिससे उस दौरान इन राज्यों में फैली हिंंसा पर क़ाबू पाया जा सके। मेघालय से इसे पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें