सरकार किसी ने किसी तरीके से मनुस्मृति को स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी पाठ्यक्रम में शामिल कराने के जुगाड़ में लगी रहती है। पिछले दिनों महाराष्ट्र में शिंदे-भाजपा सरकार ने की थी। लेकिन राजनीति गरमाने पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने कदम पीछे खींच लिए। अब दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी यही कोशिश गंभीर स्तर पर पहुंच गई है। यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी अपने ग्रैजुएट प्रोग्राम में न्यायशास्त्र (कानूनी पद्धति) नामक पेपर के तहत प्राचीन संस्कृत पाठ मनुस्मृति को शामिल करने की योजना बना रहा है। बाबा साहब अंबेडकर ने मनु स्मृति का विरोध करते हुए इसकी प्रतियां जलाई थीं, अपने पैरों से रौंदा था। कांग्रेस ने मनु स्मृति लागू करने जैसी कोशिशों के आधार पर कहा था कि भाजपा और मोदी सरकार संविधान के खिलाफ है। क्योंकि वो अंबेडकर के विचारों के खिलाफ काम कर रही है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में इसे लेकर तमाम कदम उठाए जा रहे हैं। अगस्त के शैक्षणिक सत्र से संशोधित पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए शुक्रवार 12 जुलाई को को डीयू की अकादमिक मामलों की अकादमिक काउंसिल के सामने रखा जाएगा।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जी एन झा द्वारा लिखित मेधातिथि के मनुभाष्य के साथ मनुस्मृति को बैचलर ऑफ लॉ या लेगम बैकालॉरियस या एलएलबी सेमेस्टर 1 में ग्रैजुएशन पाठ्यक्रम के पेपर की यूनिट वी के तहत सुझाए गए पाठ के रूप में पेश किया जाएगा।
लॉ फैकल्टी की डीन, प्रोफेसर अंजू वली टिक्कू ने कहा, “शिक्षा में भारतीय नजरिए को पेश करने के लिए न्यू एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) 2020 के अनुरूप मनुस्मृति को पेश किया गया है। जिस यूनिट के अंतर्गत इसे प्रस्तुत किया गया है वह अपने आप में एक विश्लेषणात्मक इकाई है। इसलिए, छात्रों को विश्लेषणात्मक सकारात्मकता की तुलना करने और समझाने के लिए यह कदम उठाया गया है।''
सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने बुधवार को इसका विरोध किया था। फ्रंट ने डीयू के कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखकर कहा, "...जानकारी में आया है कि छात्रों को मनुस्मृति को "पाठ" के रूप में पढ़ाने के लिए अनुमोदन किया गया है, जो बेहद आपत्तिजनक है। क्योंकि यह पाठ महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की प्रगति और शिक्षा के खिलाफ है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के तमाम शिक्षकों का कहना है कि “देश में 85 फीसदी आबादी हाशिए पर रहने वालों की है और 50 फीसदी आबादी महिलाओं की है। उनकी प्रगति एक प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली और शिक्षण पर निर्भर करती है। मनुस्मृति में कई धाराओं में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकारों का विरोध किया गया है। मनुस्मृति के किसी भी खंड या हिस्से का परिचय हमारे संविधान की मूल संरचना और भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
महाराष्ट्र में भी कोशिश हुई
महाराष्ट्र राज्य स्कूल शिक्षा विभाग ने अपने स्कूल पाठ्यक्रम ढांचे (एससीएफ) को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के साथ मिलाने के बाद 'भारतीय ज्ञान प्रणाली' (आईकेएस) का एक ड्राफ्ट पिछले दिनों पेश किया था। आईकेएस ड्राफ्ट के लिए सुझाव और आपत्तियां मांगी गई हैं। इसमें सुझाव दिया गया है कि संतों जैसे धार्मिक व्यक्तित्वों के जीवन का अध्ययन किया जाना चाहिए और साथ ही भगवद गीता और मनुस्मृति के श्लोकों का पाठ भी किया जाना चाहिए।
महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा के मूल अध्ययन में मनुस्मृति के श्लोक को शामिल करने से महाराष्ट्र के विभिन्न समुदाय के लोगों में चिंता बढ़ गई। इस पर एनसीपी अजीत पवार के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने चेतावनी जारी की अगर इसे लागू किया गया तो हम सरकार से हट जाएंगे।राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री और वरिष्ठ एनसीपी नेता छगन भुजबल ने इस प्रयास पर आपत्ति जताई और अजीत से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मई 2024 में गरवारे क्लब में एनसीपी की एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "अब हमारे छात्रों को मनुस्मृति और मनचे श्लोक से छंद याद करने के लिए कहा जाएगा। यह भाजपा द्वारा उठाए गए नारे 'अब की बार, 400 पार' से भी अधिक खतरनाक है, जिसने यह धारणा बनाने में मदद की कि सरकार संविधान को बदलना चाह रही है। हमने मनुस्मृति को जलाया है क्योंकि हम चतुर्वर्ण (जाति व्यवस्था) के विरोधी थे। यह सब तुरंत बंद होना चाहिए।”
इसके बाद महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने बयान दिया कि राज्य सरकार मनुस्मृति का समर्थन नहीं करती है और इसे किसी भी छात्र पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा। केसरकर ने बताया कि सभी शैक्षिक सामग्रियों को सार्वजनिक करने से पहले संचालन समिति द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “मनुस्मृति के एक श्लोक का उल्लेख करने वाली पुस्तक की प्रस्तावना उचित प्रोटोकॉल का पालन किए बिना सार्वजनिक कर दी गई।”
बहरहाल, दिल्ली यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ऑफ लॉ 1 जुलाई को लागू हुए नए आपराधिक कानूनों पर तीन नए पाठ्यक्रम जोड़ने की प्रक्रिया में है। भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पर पाठ्यक्रम, 1872, को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) से बदला जाएगा।
नए पाठ्यक्रमों का ड्राफ्ट पिछले महीने विधि संकाय की पाठ्यक्रम समिति द्वारा तैयार किया गया था और जून के अंत में शैक्षणिक मामलों की स्थायी समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था।