प्रधानमंत्री नरेंद्र मोेदी ने जिस हिन्दुत्व कार्ड से तृणमूल कांग्रेस को घेरने की कोशिश की और इसकी नेता ममता बनर्जी पर तंज कसे, पश्चिम बंगाल की ‘दीदी’ ने उन्हें उसी हिन्दुत्व कार्ड से जवाब दिया है। ममता का हिन्दुत्व कार्ड अधिक तेज, घातक और असरदार दिखता है। हालाँंकि इसका अंतिम फ़ैसला तो चुनाव नतीजा आने के बाद ही हो सकेगा, पर एक दूसरे पर हमले करने या खुद को बड़ा हिन्दू साबित करने की होड़ में दीदी ने मोदी को पटकनी दे दी, यह साफ़ है।
नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों पश्चिम बंगाल की एक चुनावी सभा में दावा किया कि वहाँ तो ‘जय श्री राम’ कहने मात्र से किसी को जेल हो जाती है। उन्होंने उसी सभा में खुद ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए, मौजूद भीड़ से यह नारा लगवाया और मुख्यमंत्री को चुनौदी दे डाली कि वह उन्हें गिरफ़्तार कर दिखाएँ। उन्होंने यह साफ़ कर दिया कि वह वहाँ सांप्रदायिकता की राजनीति करना चाहते हैं और हिन्दुत्व का कार्ड खेल चुनाव के दौरान वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं।
ममता का पलटवार
इसके बाद उन्हें जवाब देने की बारी ममता बनर्जी की थी और उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली में जवाब दिया। बाँकुड़ा के रानीबाँध में चुनाव रैली में ममता बनर्जी ने मोदी पर पलटवार करते हुए कहा, 'वह झूठ बोलते हैं।' उन्होंने तंज करते हुए मोदी से पूछा, ‘आपको पता है कि दुर्गा के कितने हाथ होते हैं और उनके कितने और कौन अस्त्र-शस्त्र हैं’
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हम दुर्गापूजा करते हैं, और कहते हैं, दुर्गा माई की जॉय, आस्ते बछड़ आवार होबे ( अगले साल दुर्गा पूजा फिर होगी), हम कहते हैं काली माई की जॉय। हम कहते हैं, ला इलाहा इलल्लाह मुहम्मद रसूललल्लाह। हम कहते हैं गॉड इज़ ग्रेट। लेकिन मोदी क्या कहते हैं, मोदी को बंगाल के बारे में क्या पता है, उनसे पूछिए। सच यह है कि उन्हें यहाँ के बारे में कुछ भी पता नहीं है।
ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
ममता बनर्जी ने इसी भाषण में नरेंद्र मोदी को पश्चिम बंगाल की संस्कृति के बारे में बताया और बंगाली राष्ट्रवाद को सामने लाने, उसे भुनाने और बीजेपी के उग्र राष्ट्रवाद के सामने बंगाली राष्ट्रवाद को खड़ा करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, हमारा नारा है, 'जय हिंद', 'वंदे मातरम।'
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने बेहद होशियारी और तय रणनीति के तहत ‘जय हिंद’ और ‘वंदे मातरम’ के नारों को उछाला और मोदी को उनकी ही बिसात पर घेरने की कोशिश की। ये दोनों नारे बंगाली अस्मिता से जुड़े हुए हैं।
बीजेपी ने साल 2016 के राज्य विधानसभा चुनावों के पहले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े कुछ काग़ज़ात को सार्वजनिक कर दिया, नेहरू की आलोचना की और नेताजी की तारीफों के पुल बाँध दिए। बीजेपी नेताजी के भाई के पोते चंद्र बोस को अपने पाले में ले आई, उन्हें राज्य ईकाई का उपाध्यक्ष बना दिया। कुल मिला कर कोशिश नेताजी का राजनीतिक फ़ायदा उठाने की थी।
बंगाली अस्मिता का सवाल
इसी तरह वंदे मातरम के मुद्दे पर बीजेपी हमेशा ही मुसलमानों की निष्ठा पर सवाल उठाती रहती है और इसे एक बड़ा भावनात्मक मुद्दा बनाती रहती है। ममता बनर्जी ने उस वंदे मातरम के मुद्दे को ही उठा लिया, क्योंकि इसके रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी बंगाली थे और वह बांग्ला गौरव समझे जाते हैं। लेकिन ममता ने इसके साथ एक और चाल चली। उन्होंने उसी मंच से उसके साथ ही क़ुरान की आयतें पढ़ीं और 'गॉड इज़ ग्रेट' का नारा भी उछाल दिया। उन्होंंने मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि वह झूठे तो हैं ही, वह सिर्फ़ हिन्दुओं के नाम पर वोट माँगते फिरते हैं, उनके लिए कुछ करते नहीं हैं। फिर पूछा, 'आपके संकट में मोदी कभी आपसे हालचाल पूछने आए' भीड़ ने चिल्ला कर कहा, 'नहीं।'हिन्दू विरोधी बीजेपी
इस मंच से तो नहीं, उससे थोड़ी ही दूर बाराजोड़ की एक सभा में उसी दिन ममता बनर्जी ने बीजेपी पर ज़बरदस्त हमला बोलते हुए उसे हिन्दू विरोधी पार्टी क़रार दिया। उन्होंने कहा कि दुर्गा पूजा समितियों को उनकी सरकार ने 10 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद करने का एलान किया था, जिसका बीजेपी ने ज़ोरदार विरोध किया। अंत में बीजेपी अदालत चली गई और वहाँ से रोक का आदेश ले कर आ गई। इस योजना के तहत 2800 पूजा समितियों को 10,000 रुपये दिए जाने थे, कुल 28 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना थी। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार के आय कर विभाग ने 40 पूजा क्लबों को आय कर का नोटिस भेज दिया। सरकार की मंशा पूजा क्लबों को डराना था ताकि वे पूजा न करें।
ममता बनर्जी ने इस पर ज़ोर देने की कोशिश की कि उनकी सरकार ने दुर्गा पूजा समितियों को पैसे देना चाहा, लेकिन बीजेपी ने ऐसा नहीं करने दिया। इसके बाद बीजेपी की केंद्र सरकार ने पूजा क्लबों को आय कर का नोटिस जारी कर दिया, मोदी ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि लोग डर कर पूजा न करें।
पूजा पंडालों में ममता
इस तरह दुर्गा पूजा के मुद्दे पर ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को घेरने की कोशिश की और उन्हें एक तरह से चुप करा दिया। लेकिन ममता बनर्जी दुर्गा पूजा के बहाने हिन्दू प्रतीकों का इस्तेमाल इसके पहले से ही कर रही है। वह ऐसे सोची समझी रणनीति के तहत कर रही है।
बीते साल यानी 2018 के दुर्गा पूजा के समय तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया था कि 10 हज़ार पूजा समितियों ने पूजा पंडालों का उद्घाटन करने का निमंत्रण ममता बनर्जी को दिया था। बता दें कि बंगाली संस्कृति के तहत षष्ठी को देवी की प्रतिमा पंडालों में स्थापित की जाती है, उसका उद्घाटन किसी गणमान्य व्यक्ति से कराया जाता है। पूजा की शुरुआत उसके साथ ही हो जाती है।
पूजा पंडाल का उद्घाटन करती हुई ममता बनर्जी
ममता बनर्जी ने कई पूजा पंडालों का उद्घाटन किया, वह हर दिन पूजा पंडाल जाती थी, लोगों से मिलती थीं और पूरे उत्साह के साथ उसका प्रचार-प्रसार भी करती थी। उन कार्यक्रमों को टेलीविज़न चैनलों पर लाइव दिखाया जाता था। ममता अपने फ़ेसबुक पेज पर उन्हें डालती थी।
ममता बनर्जी ने जान-बूझ कर अपनी हिन्दू समर्थक छवि गढ़ने की कोशिश की। दुर्गा पूजा का इस्तेमाल इसलिए किया गया कि यह बंगाली संस्कृति के मानस में अंदर तक रचा-बसा है। कोई राजनीतिक दल इसका विरोध नहीं कर सकता।
उनके पहले ईश्वर को न मानने वाले कम्युनिस्ट नेता तक दुर्गा पूजा का विरोध करने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाए। तमाम पूजा समितियों में सीपीएम के काडर भरे रहते थे। वाम मोर्चा सरकार के परिवहन मंत्री और सीपीएम के कद्दावर नेता सुभाष चक्रवर्ती पूजा पंडालों में खुले आम जाते थे और इस मुद्दे पर पार्टी में उनकी खूब फ़जीहत भी होती थी।
ममता बनर्जी ने बड़ी होशियारी से इस बंगाली मानसिकता का फ़ायदा उठाया और अपनी मुसलिम-परस्त छवि से बाहर निकलने में दुर्गा पूजा का इस्तेमाल किया। पिछले चुनाव में यह साफ़ दिखा।
दुर्गा कार्निवल
पिछले साल दुर्गा पूजा के विसर्जन के ही दिन मुहर्रम भी था। राज्य सरकार ने विसर्जन पर रोक लगा दी। ज़ाहिर है, बीजेपी खुल कर मैदान में आ गई और राज्य सरकार पर हमला बोल दिया। इसका जवाब भी ममता बनर्जी ने अपने ढंग से दिया। उन्होंने इसके एक दिन बाद बहुत ही बहुत ही बड़े स्तर पर और भव्य समारोह रखा और पचासों पूजा समितियों का विसर्जन कराया।इसमें बांग्ला गीत, संगीत और नृत्य के बीच सैकड़ों ट्रकों पर रखीं मूर्तियों का विसर्जन किया गया। इसमें हज़ारों लोगों ने भाग लिया और सैकड़ों कलाकार शामिल हुए। खुद मुख्यमंत्री अपने वरिष्ठ अफ़सरों के साथ वहाँ मौजूद थीं। उनकी यह कह कर आलोचना की जा सकती है कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को इस तरह एक धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन नहीं करवाना चाहिए था, पर बीजेपी बिल्कुल रक्षात्मक मुद्रा में आ गई। बीजेपी के उग्र हिन्दुत्व को यह ममता की शैली में दिया गया जवाब था।
ममता का दुर्गा पूजा गीत
लेकिन ममता इतने पर ही मानने वाली नहीं थीं। प्रशासन के अलावा उन्होंने इसमें व्यक्तिगत हस्तक्षेप भी किया। उन्होंने दुर्गा पूजा के पहले खुद एक गीत लिखा, जिसकी शुरुआत एक संस्कृत श्लोक से होती है। इस गीत का वीडियो बनाया गया। बंगाल की बेहद लोकप्रिय गायिका लोपामुद्रा ने इसे अपना सुर दिया। इसने पूरे पश्चिम बंगाल में धूम मचा दी। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के पहले इस तरह के गीत, संगीत की रचना आम है, पत्रिकाएँ पूजा विशेष तक निकालती हैं, जिसका इंतजार लोग लंबे समय से करते रहते हैं। ममता बनर्जी ने इस मौके का भरपूर फ़ायदा उठाया। यहां देखें उस गीत का वीडियो।बांग्ला प्रतीक
ममता बनर्जी ने दुर्गापूजा के अलावा दूसरे हिन्दू प्रतीकों का भी बखूबी इस्तेमाल किया है। बाँकुड़ा की रैली की शुरुआत शंखध्वनि से हुई और इसमें उलूकध्वनि का भी इस्तेमाल किया गया था। बंगाली संस्कृति में महिलाएँ किसी शुभ मुहूर्त पर एक ख़ास तरीके से जीभ चला कर एक विशेष ध्वनि निकालती हैं, जिसे उलूक ध्वनि कहा जाता है। इसी तरह शुभ मुहूर्त पर शंख बजाया जाता है।
ममता बनर्जी ने शंख और उलूक ध्वनि, इन दोनों ही प्रतीकों का इस्तेमाल बहुत ही सोच समझ कर किया है। ये हिन्दू प्रतीक तो हैं ही, बांग्ला प्रतीक भी हैं, जो बंगाल मानसिकता से बिल्कुल जुड़े हुए हैं। बीजेपी इसका विरोध किसी कीमत पर नहीं कर पाएगी। वह इसका कोई काट भी नहीं निकाल पाएगी।
मोदी निजी तौर पर इसे शायद नहीं समझ सकते, बीजेपी के जो बंगाली नेता इसे समझ सकते हैं, वे चुप रहने को मजबूर होंगे। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि बंगाली खुद को सबसे पहले बंगाली ही मानते हैं। बंगाली होने का गौरव बोध किसी धर्म, जाति या संप्रदाय से बड़ा होता है। इस बंगाली गौरव बोध पर बीजेपी हमला कतई नहीं कर सकती और करेगी तो बुरी तरह घिर जाएगी। यही कारण है कि बंगाल बीजेपी ने मोदी के मुद्दे पर चुप्पी साध ली है। साफ़ है, मोदी अपने ही जाल में घिर गए हैं। या यूं कह सकते हैं कि ममता बनर्जी ने उनकी बिसात पर ही उन्हें शह दे दी है।