पाकिस्तान पहले से ही चीन के पाले में है। श्रीलंका भी चीन की राह पर है! फिर बांग्लादेश, नेपाल और भूटान जैसे भारत के विश्वसनीय पड़ोसी चीन के क़रीब दिखने लगे। और अब मालदीव ने तो भारत को आधिकारिक तौर पर अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कह दिया है। तो क्या पड़ोसी देशों में ही भारत की विदेश नीति में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? यह तब है जब पीएम मोदी ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद से पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने की नीति लागू की थी।
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने औपचारिक रूप से भारत सरकार से द्वीप राष्ट्र से अपनी सैन्य उपस्थिति वापस लेने का अनुरोध किया है। अनुरोध को राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा एक आधिकारिक बयान के माध्यम से सार्वजनिक किया गया। मालदीव के राष्ट्रपति के कार्यालय द्वारा की गई घोषणा में कहा गया है कि उनका देश उम्मीद करता है कि भारत लोगों की लोकतांत्रिक इच्छा का सम्मान करेगा। यह अनुरोध तब किया गया जब मुइज़्जू ने माले में भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात की।
अब सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि व्यावहारिक समाधान को लेकर चर्चा की जा रही है। लेकिन सवाल है कि यह व्यावहारिक समाधान की चर्चा कैसी होगी? ख़ासकर तब जब मुइज्जू लंबे समय से भारत के विरोधी रुख अपनाए हुए हैं। वह अपने चुनाव अभियान के दौरान से ही भारत के ख़िलाफ़ जहर उगलते रहे हैं। एक महीने पहले ही उन्होंने साफ़ तौर पर कह दिया था कि वह भारतीय सैनिकों को मालदीव से वापस भेजेंगे।
पिछले महीने राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद मुइज्जू ने कहा था, 'लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में हो। विदेशी सैनिकों को मालदीव की ज़मीन से जाना होगा।'
बता दें कि भारत मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल के लिये सबसे बड़ी संख्या में प्रशिक्षण देता है और उनकी लगभग 70% रक्षा प्रशिक्षण ज़रूरतों को पूरा करता है। 'द हिन्दू' की रिपोर्ट के अनुसार, 'अब्दु और लम्मू द्वीप में 2013 से ही भारतीय नौसैनिकों और एयरफ़ोर्स कर्मियों की मौजूदगी रही है। नवंबर 2021 में मालदीव नेशनल डिफेंस फ़ोर्स ने संसदीय कमिटी से कहा था कि मालदीव में कुल 75 भारतीय सैन्यकर्मी मौजूद हैं।'
वैसे, मालदीव की सुरक्षा में भारत की बेहद अहम भूमिका रही है। 1988 में राजीव गांधी ने सेना भेजकर मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। 2018 में जब मालदीव के लोग पेय जल की समस्या से जूझ रहे थे तो मोदी सरकार ने पानी भेजा था। इसके बाद भी इसने मालदीव को कई बार आर्थिक संकट से निकालने के लिए क़र्ज़ भी दिया। लेकिन अब मालदीव का रुख काफी बदल गया है। सवाल है कि ऐसा क्यों?
दरअसल, मुइज्जू को चीन की ओर झुकाव वाला नेता माना जाता है। वह इससे पहले राजधानी माले शहर के मेयर रहे थे। वे चीन के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे हैं। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति सोलिह 2018 में राष्ट्रपति चुने गए थे। मुइज्जू ने उनपर आरोप लगाया था कि उन्होंने भारत को देश में मनमर्जी से काम करने की छूट दी है।
तो सवाल है कि आख़िर छोटे से द्वीप राष्ट्र के लिए भारत और चीन इतनी कसरत क्यों कर रहे हैं?
इस सवाल का जवाब यह है कि मालदीव रणनीतिक रूप से बेहद अहम देश है। मालदीव में भारत की मौजूदगी से उसे हिंद महासागर के उस हिस्से पर नजर रखने की ताकत मिल जाती है, जहां चीन अपना प्रभुत्व तेजी से बढ़ा रहा है। चीन ने मालदीव में बीआरआई, विकास परियोजनाओं में कर्ज और तेल आपूर्ति के जरिए अपना प्रभुत्व बढ़ाया है। वैसे, भारत के भी मालदीव में अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
मालदीव भारत का अकेला पड़ोसी नहीं है जहाँ चीन लगातार सेंध लगा रहा है। भारत के भरोसेमंद पड़ोसी रहे बांग्लादेश, नेपाल और भूटान तक में वह दखल बढ़ा रहा है।
भारत चीन के बीच लद्दाख झड़प के कुछ दिन बाद ही नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ वर्चुअल सेमिनार कर पार्टी और सरकार चलाने के लेकर नीतियों पर चर्चा की थी। 2020 में नेपाल की सरकार ने नए नक्शा जारी किया था जिसमें शामिल कई इलाक़े भारत के नियंत्रण में हैं। तब केपी शर्मा ओली ने आरोप लगाया था कि भारत उन्हें सत्ता से हटाने की साज़िश रचा था। श्रीलंका में पहले से ही चीन की कई परियोजनाएँ चल रही हैं। हंबनटोटा पोर्ट के जरिए चीन ने पहले ही भारत की चिंता बढ़ा रखी है। चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए लीज पर ले रखा है और पिछले साल चीनी सेना के एक जासूसी जहाज यहां रुका था। पाकिस्तान तो चीन का क़रीबी है ही।
हाल ही में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना से मुलाक़ात हुई थी। तब राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि चीन बाहरी ताक़तों के दख़ल के विरोध में बांग्लादेश का समर्थन करता है और चीन और बांग्लादेश अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए एक दूसरे का सहयोग करेंगे। तब शेख़ हसीना ने भी कहा था कि बांग्लादेश-चीन संबंध आपसी सम्मान और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित हैं। बांग्लादेश और चीन के बीच कई समझौते हुए हैं।
भारत का सबसे भरोसेमंद पड़ोसी भूटान भी अब चीन के क़रीब जाता हुई दिख रहा है। भूटान के विदेश मंत्री की हालिया चीन यात्रा के बाद अटकलें तेज़ हैं कि दोनों देश दशकों से चल रहे सीमा विवाद को ख़त्म करने के क़रीब पहुँच गए हैं। इसके भी संकेत मिले हैं कि दोनों देश राजनयिक संबंध स्थापित कर सकते हैं। चीन और भूटान के बीच समझौते का मतलब होगा कि भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी। ऐसा इसलिए कि इसका असर डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर पड़ सकता है। इसको लेकर भारत और चीन के सैनिकों के बीच कई बार आमना-सामना हुआ है। तो सवाल वही है कि आख़िर सभी पड़ोसियों से भारत के संबंध पहले से ज़्यादा बिगड़े क्यों दिखते हैं?