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महायुति का बढ़ता संकटः अजित पवार कैबिनेट मीटिंग छोड़कर क्यों चले गये?

महायुति का बढ़ता संकटः अजित पवार कैबिनेट मीटिंग छोड़कर क्यों चले गये?

महाराष्ट्र में शिंदे सरकार की मीटिंग में 9 अक्टूबर को अच्छा दिन नहीं था। अजित पवार ने फिर से अपनी नाराजगी दिखाई और 10 मिनट बाद ही मीटिंग छोड़कर चले गये। राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और महायुति में दरारें बढ़ती जा रही हैं।

विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले गुरुवार को यह आखिरी कैबिनेट बैठक थी। उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार सिर्फ 10 मिनट के लिए बैठक में आये और रतन टाटा को श्रद्धांजलि देने के फौरन बाद चले गए। उनके जाने के बाद ढाई घंटे तक चली बैठक में 38 फैसले ने लिये।

महाराष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा, "शायद यह पहली बार है कि अजित पवार ने इस तरह कैबिनेट छोड़ी है। सही वजह तो नहीं, लेकिन यह असामान्य है। पूरी बैठक के दौरान उनकी कुर्सी खाली थी।"


अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह संभव है कि वह कुछ फैसलों से नाखुश थे और अंतिम समय में बिना पूर्व सूचना के कैबिनेट बैठक में बड़ी संख्या में जरूरी प्रस्ताव लाए गए थे। पिछले कुछ हफ्तों में वित्त विभाग ने कैबिनेट में लाए गए कई प्रस्तावों पर आपत्ति जताई थी। हालांकि बार-बार प्रयास करने के बावजूद अजित पवार से उनकी टिप्पणियों के लिए संपर्क नहीं किया जा सका, लेकिन एनसीपी की राज्य इकाई के प्रमुख और लोकसभा सांसद सुनील तटकरे ने कहा कि महायुति में किसी भी तरह के मतभेद का कोई सवाल ही नहीं है।

एनसीपी के प्रदेश प्रमुख तटकरे ने कहा- "मैं रायगढ़ में था और मुझे नहीं पता कि कैबिनेट में क्या हुआ। लेकिन महायुति में किसी भी तरह के मतभेद का कोई सवाल ही नहीं है और अगर ऐसा हुआ है तो किसी के भी जल्दी कैबिनेट छोड़ने का कोई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए।"

महाराष्ट्र पहले ही बजट में घोषित 96,000 करोड़ रुपये की चुनाव पूर्व रियायतों, जिसमें लड़की बहन योजना भी शामिल है, को लेकर आलोचना का शिकार हो रहा है। लड़की बहन योजना पर प्रति वर्ष 46,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इशारों में कह चुके हैं कि ज्यादा वित्तीय बोझ का असर अन्य योजनाओं की सब्सिडी पर पड़ता है।

विधानसभा चुनाव से पहले भूमि आवंटन, सब्सिडी और गारंटी को मंजूरी देने की होड़ मची हुई है। वित्त विभाग पहले ही चेतावनी दे चुका है कि 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटा 2 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है। विभाग ने चेतावनी दी है कि राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3% को पार कर गया है, जो कि महाराष्ट्र राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजटीय प्रबंधन अधिनियम द्वारा तय सीमा है।

पिछले कुछ हफ्तों में, महायुति के सहयोगियों-शिवसेना और अजित की एनसीपी के बीच मतभेद उभरे हैं। कुल मिलाकर महायुति की नैया डावांडोल है।

लाडली बहन योजना पर तनातनी

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति में 'लड़की बहन योजना' को लेकर दरार काफी दिनों से उभरी हुई है। शिवसेना शिंदे गुट के मंत्री ने योजना के विज्ञापनों और प्रचार सामग्री से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम "हटाने" के लिए सहयोगी एनसीपी और उसके अध्यक्ष अजित पवार के खिलाफ खुलेआम आपत्ति जताई गई। शिवसेना से राज्य के उत्पाद शुल्क मंत्री शंभूराज देसाई ने डिप्टी सीएम पवार द्वारा 'मुख्यमंत्री माझी लड़की बहन' योजना को वस्तुतः "हाइजैक" करने का आरोप लगाया। इसके जरिये पात्र महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देने की घोषणा की गई है। इस योजना का पूरा श्रेय अजित पवार की पार्टी ले रही है।

उन्होंने कहा कि "योजना के नाम में 'मुख्यमंत्री' है और इसे पोस्टरों से हटा दिया गया है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था। यह राज्य सरकार की योजना है और उन्हें (पवार को) सभी को साथ लेकर चलना चाहिए।''

अजित पवार और एनसीपी के अभियान में इस्तेमाल किए गए विज्ञापनों और अन्य प्रचार सामग्री में एनसीपी योजना का पूरा नाम 'मुख्यमंत्री माझी लड़की बहन' के बजाय सिर्फ 'माझी लड़की बहन' बता रही है। अजित पवार खेमे ने दो वीडियो भी जारी किए हैं जिनमें लाभार्थियों को योजना के लिए अजित पवार को धन्यवाद देते दिखाया गया है।

बता दें कि लड़की बहन योजना पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले शुरू की गई लाडली बहना योजना से प्रेरित थी।लड़की बहन योजना औपचारिक रूप से पिछले महीने शुरू की गई थी। रैलियों के दौरान बोलते हुए, सीएम शिंदे ने वादा किया है कि अगर महायुति दोबारा सत्ता में आती है, तो वह योजना की राशि दोगुनी कर 3,000 रुपये कर देगी।

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