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महाराष्ट्र की सत्ता तय करने वाले विदर्भ के किसानों की हालत क्यों नहीं सुधर पायी?

महाराष्ट्र की सत्ता तय करने वाले विदर्भ के किसानों की हालत क्यों नहीं सुधर पायी?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव-प्रचार जोरों पर है। राजनेता एक के बाद एक कई चुनावी वादे कर रहे हैं। हर बार करते रहे हैं, लेकिन विदर्भ के किसानों की आत्महत्याएँ नहीं रुक रही हैं?

चुनाव है तो प्रधानमंत्री मोदी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार के लिए विदर्भ पहुँच रहे हैं। यह वही विदर्भ क्षेत्र है जिसको महाराष्ट्र की राजनीतिक सत्ता की कुंजी कहा जाता है। कहा जाता है कि 62 विधानसभा सीटों वाला विदर्भ क्षेत्र ही तय करता है कि महाराष्ट्र की सरकार कौन चलाएगा। तो इस विदर्भ के लोगों की हालत कैसी है? जहाँ से राज्य की सत्ता तय होती है वहाँ के लोगों का जीवन स्तर कैसा है?

एक रिपोर्ट आई थी कि विदर्भ के अमरावती संभाग में इस साल जून तक छह महीने में 557 किसानों ने आत्महत्या की। इस दौरान पूरे महाराष्ट्र में कुल 1267 किसानों ने आत्महत्या की। राज्य राहत एवं पुनर्वास विभाग द्वारा जुटाए गए आँकड़ों के अनुसार विदर्भ में 2023 में पूरे साल में 1439 किसानों ने आत्महत्या की। 

महाराष्ट्र में किसानों के बीच संकट के कारण पिछले साल 2851 किसानों ने आत्महत्या की थी। यानी पूरे राज्य में जितनी आत्महत्याएँ हुईं उसका आधा सिर्फ़ विदर्भ में ही। हर साल राज्य में ऐसी ही स्थिति रही है। 2022 में पूरे राज्य में 2942 कर्ज में डूबे किसानों ने आत्महत्या की और 2021 में यह संख्या 2743 थी। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2022 में महाराष्ट्र देश में सभी किसान आत्महत्याओं में 37.6 प्रतिशत के साथ सबसे आगे रहा। एनसीआरबी ने कहा कि 2022 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 11290 लोगों ने अपनी जान दे दी, जिनमें 5207 किसान या खेतिहर और 6083 खेतिहर मजदूर शामिल हैं। 

कृषि विशेषज्ञ और किसान नेता किसानों की आत्महत्या के लिए सरकार के उदासीन रवैये और किसान विरोधी नीतियों को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। 30 जून 2022 को एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के एक दिन बाद उन्होंने आश्वासन दिया था कि वे कृषि संकट से निपटने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे। उन्होंने महाराष्ट्र को किसान आत्महत्या मुक्त राज्य बनाने का संकल्प लिया था। 

कर्ज का दबाव और फसल का ख़राब होना किसानों की आत्महत्या के सबसे बड़े कारणों में से हैं। इस पहलू पर पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया।

दावा किया जाता रहा है कि सरकार ने कमजोर किसानों के लिए व्यापक कार्य योजना बनाने और स्वास्थ्य योजनाओं को मजबूत करने के लिए प्रयास नहीं किया है। उम्मीद की जा रही थी कि कृषि विभाग फसल के ख़राब होने से रोकने या फसल पैटर्न में बदलाव के लिए योजना तैयार करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

अमेरिका की सरकारी संस्था नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के कारणों की पड़ताल की है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार किसानों की आत्महत्या के लिए पहचाने गए विभिन्न ग्यारह कारण हैं-

  1. कर्ज 
  2. व्यसन 
  3. पर्यावरण संबंधी समस्याएँ
  4. कृषि उपज के लिए कम कीमत
  5. तनाव और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ
  6. सरकारी उदासीनता
  7. खराब सिंचाई
  8. खेती की बढ़ी हुई लागत
  9. निजी साहूकार
  10. रासायनिक उर्वरकों का उपयोग 
  11. फसल का ख़राब होना

विदर्भ के साथ ही मराठवाड़ा में भी हालात बदतर हैं। पिछले कई दशकों से विदर्भ और मराठवाड़ा राजनीतिक युद्ध के मैदान रहे हैं। ये दोनों क्षेत्र लंबे समय से चले आ रहे कृषि संकट और जटिल जातिगत समीकरणों से प्रभावित रहे हैं और इन क्षेत्रों के पिछड़ेपन पर राजनीति होती रही है। राजनीतिक सत्ता में बदलाव और राज्य व केंद्र दोनों स्तरों पर शुरू की गई कई योजनाओं के बावजूद इन क्षेत्रों का उस तरह विकास नहीं हो पाया है। 

स्थानीय लोगों के सामने गंभीर चुनौतियाँ हैं। इसके अलावा राहत और सहायता योजनाओं के कार्यान्वयन में व्यापक भ्रष्टाचार ने जलवायु संकट और कृषि संकट से सबसे अधिक प्रभावित लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। महाराष्ट्र में औसत किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। 

बहरहाल, महाराष्ट्र में 62 विधानसभा सीटों वाले इस विदर्भ को राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। महायुति और एमवीए दोनों ही इस क्षेत्र में अपना परचम लहराने की कोशिश में हैं, लेकिन उनके लिए मुश्किल यह है कि दोनों गठबंधन इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आंतरिक असंतोष से जूझ रहे हैं। उनका ध्यान इस बात पर है कि असंतुष्ट कैसे वोट को प्रभावित कर सकते हैं। राज्य में 20 नवंबर को चुनाव होने हैं।

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