162 विधायकों को हयात होटल में मीडिया के सामने दिखाकर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस क्या आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव की सरकार जैसा कोई उदाहरण तो नहीं पेश करना चाहते विगत दो दिनों से महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार के शपथ ग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। मंगलवार को इस मामले में अदालत का फैसला आना है। तो ऐसे में क्या महा विकास आघाडी के ये तीनों दल अपने विधायकों की परेड या प्रस्तुति मीडिया के सामने कर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने की राजनीति तो नहीं कर रहे हैं।
दरअसल, सत्ता के इस संघर्ष में महा विकास आघाडी के नेताओं को इस बात का डर सता रहा है कि विधानसभा के पटल पर यदि पारदर्शी मतदान प्रक्रिया को लेकर अदालत ने कोई फ़ैसला नहीं दिया तो केंद्र सरकार और राजभवन के इशारे पर कुछ भी हो सकता है। क्योंकि जिस तरह से महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर राजभवन का रुख रहा है, यह आरोप लगने लगे हैं कि वह जिस पार्टी से आते हैं उसकी सरकार बनवाने का प्रयास कर रहे हैं।
इसी के चलते कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना फडणवीस सरकार के ख़िलाफ़ अपना बहुमत दिखाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। सुबह उन्होंने राजभवन जाकर 162 विधायकों के समर्थन वाला पत्र भी दिया। क्योंकि ऐसी ख़बरें चल रही हैं कि फडणवीस द्वारा विश्वास मत नहीं हासिल करने की स्थिति में राज्यपाल प्रदेश की विधान सभा को भंग करने का क़दम भी उठा सकते हैं। यही नहीं तीनों दलों के द्वारा अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटाने का पत्र भी अदालत में पेश किया गया ताकि अजीत पवार के व्हिप के अधिकार को चुनौती दी जा सके।
मीडिया के समक्ष विधायकों की परेड दिखाकर तीनों दल यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पास जो बहुमत का आंकड़ा है वह कागजों में नहीं हकीकत में है।
विधायकों को दिखाकर तीनों पार्टियां जनता के सामने भी यह संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि किस तरह भारतीय जनता पार्टी केंद्र सरकार के दम पर महाराष्ट्र की सरकार बनाने की प्रक्रिया में बाधा डाल रही है। आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव की सरकार को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
1983 में एनटी रामाराव बड़े बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुए थे। लेकिन एन. भास्कर राव ने उनकी सरकार के तख़्तापलट की कोशिश की। ऐसे में रामाराव की सरकार बचाने का काम उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने बखूबी से निभाया था। उन्होंने तेलुगू देशम पार्टी के विधायकों की रातों-रात परेड राष्ट्रपति के सामने करा दी थी। इस घटना के बाद ही रामाराव ने उन्हें अपना राजनीतिक वारिस बना लिया था। एनटी रामाराव ने उन्हें पार्टी का महासचिव और सरकार में वित्त मंत्री बना दिया था। इसके बाद नायडू का पार्टी पर इतना असर हो गया कि उन्होंने 23 अगस्त, 1995 में पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
हैदराबाद के वायसराय होटल में पार्टी के 226 विधायकों में 200 से ज़्यादा विधायक नायडू के नाम पर जुट गए थे। दरअसल, नायडू ने अपना राजनीतिक करियर संजय गाँधी के प्रभाव में कांग्रेस से शुरू किया था और वह 1975 में महज 28 साल की उम्र में कांग्रेस के विधायक बने थे। ना केवल विधायक बने बल्कि पहले ही टर्म में संजय गाँधी के युवाओं को जोड़ने के अभियान के तहत टेक्निकल एजुकेशन और सिनमेटोग्राफ़ी मंत्री बन गए। सिनमेटोग्राफ़ी मंत्री के तौर पर ही उनकी जान पहचान एनटी रामाराव से हुई। 1980 में रामाराव की तीसरी बेटी से उनकी शादी हो गई। इस शादी के बाद एनटी रामाराव ने 1982 में तेलुगू देशम का गठन किया, उसके कुछ महीने बाद नायडू अपने ससुर की पार्टी में आ गए। हालांकि एक धारणा यह भी है कि एनटी रामराव को राजनीति में आने की सलाह नायडू ने ही दी थी।