शिंदे ने सीबीआई जाँच की सहमति वाला उद्धव सरकार का फ़ैसला पलटा

05:40 pm Oct 21, 2022 | सत्य ब्यूरो

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने पूर्ववर्ती उद्धव सरकार के एक अहम फ़ैसले को पलट दिया है। इस फ़ैसले के बाद अब सीबीआई को राज्य में किसी के ख़िलाफ़ जाँच के लिए राज्य सरकार से आम सहमति लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। 

दरअसल, सरकार ने राज्य में मामलों की जाँच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई को आम सहमति वापस लेने के पिछले महाविकास अघाड़ी के फ़ैसले को उलट दिया है। इसका मतलब है कि एकनाथ शिंदे सरकार ने केंद्रीय जाँच एजेंसी को दी गई सामान्य सहमति को बहाल कर दिया है।

पीटीआई ने एक अधिकारी के हवाले से ख़बर दी है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एमवीए सरकार के फ़ैसले को वापस लेने के लिए उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में गृह विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। 

21 अक्टूबर 2020 को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार ने यह तर्क देते हुए सीबीआई से सामान्य सहमति वापस ले ली थी कि केंद्र सरकार राजनीतिक बदले के तहत केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। तो सवाल है कि अब उद्धव ठाकरे का नेतृत्व वाला खेमा क्या अब फिर से ऐसा ही आरोप नहीं लगाएगा?

बता दें कि केंद्र सरकार पर एजेंसी के दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए कई राज्य सरकारों ने ऐसी आम सहमति को वापस ले ली है। ऐसा करने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान, छ्त्तीसगढ़, केरल जैसे राज्य शामिल हैं।

दरअसल सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम द्वारा गठित एजेंसी है। 

सीबीआई और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है, जिसके तहत सीबीआई अपना काम विभिन्न राज्यों में करती है, लेकिन अगर राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे तो सीबीआई को उस राज्य में जांच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी।

चूँकि सीबीआई के पास केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों पर अधिकार क्षेत्र है, यह राज्य सरकार के कर्मचारियों या किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जांच तभी कर सकती है जब संबंधित सरकार इसकी सहमति देती है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी एक बार कहा था कि राज्य सरकार की सहमति उसके अधिकार क्षेत्र में सीबीआई की जाँच के लिये अनिवार्य है और इसके बिना सीबीआई जाँच नहीं कर सकती है। न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की एक पीठ ने कहा था कि यह प्रावधान संविधान के संघीय ढाँचे के अनुरूप है।