लोकसभा चुनाव से ऐन पहले झटका खाए शरद पवार अब क्या करेंगे? चुनाव आयोग ने मंगलवार अपने फैसले में कहा है कि अजित पवार गुट ही असली एनसीपी है और शरद पवार गुट को नया नाम और चुनाव चिह्न 7 फरवरी को अलॉट किया जाएगा। चार बजे तक शरद पवार खेमे को नये नाम और चुनाव चिह्न आयोग के सामने पेश करना होगा। तो क्या शरद पवार खेमा इतने कम समय में यह तय कर पाएगा? सवाल यह भी है कि यह खेमा अपनी पार्टी के नये नाम और चुनाव चिह्न को लोकसभा चुनाव से पहले इतनी जल्दी लोगों तक क्या पहुँचा पाएगा?
वैसे, शरद पवार अपनी दूरदर्शिता और एक ताक़तवर नेता के रूप में जाने जाते हैं। उनकी पहचान मास लीडर के रूप में रही है। बड़ों बड़ों को पटखनी देने वाले पवार चुनाव आयोग में अपने भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में हुए विद्रोह के कारण हार गए। अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न दोनों उनके हाथ से निकल गए। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती तो फिलहाल यही लगती है।
शरद पवार गुट ने कहा है कि पवार अपने संगठन के नाम और चुनाव चिह्न की घोषणा बुधवार को करेंगे। समूह ने यह भी कहा कि वह चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएगा। इस मामले में अजित पवार खेमे ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर किया है।
शरद पवार खेमे के लिए एक तात्कालिक कार्य अपनी पार्टी के लिए एक नाम और प्रतीक ढूंढना है। यह इसलिए काफी अहम है क्योंकि राज्यसभा चुनाव में बस कुछ ही दिन बचे हैं। लोकसभा और राज्य की विधानसभा चुनाव भी नजदीक आ रहे हैं। चुनाव आयोग ने इस खेमे को अपने राजनीतिक दल के लिए एक नाम का दावा करने और आज शाम 4 बजे तक तीन प्राथमिकताएं देने का विकल्प दिया है। पवार की बेटी और बारामती से सांसद सुप्रिया सुले ने मंगलवार कहा था कि वे बुधवार को प्राथमिकताएं सौंपेंगी।
मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि शरद पवार खेमे को इस तरह के फ़ैसले आने की आशंका थी और इस वजह से पहले से ही नाम और सिंबल को लेकर पार्टी में चर्चा हो चुकी है। द इंडियन एक्सप्रेस ने पवार की पार्टी के सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि नए नाम में "राष्ट्रवादी" और "कांग्रेस" शब्द बरकरार रहने की संभावना है। पार्टी के नए चुनाव चिह्न के विकल्पों में 'उगता सूरज', 'पहिया' और 'ट्रैक्टर' शामिल हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि 'चश्मा', और 'सूरजमुखी' जैसे चुनाव चिह्नों पर भी विचार किया जा रहा है।
अपने छह दशक के राजनीतिक करियर में पवार ने कम से कम चार अलग-अलग चुनाव चिह्नों पर चुनाव लड़ा है: बैल की जोड़ी, चरखा, गाय और बछड़ा, और हाथ और घड़ी। एनसीपी की स्थापना से पहले वह कांग्रेस, कांग्रेस (आर), कांग्रेस (यू), कांग्रेस (सोशलिस्ट), और कांग्रेस (आई) जैसी पार्टियों में थे।
बहरहाल, शरद पवार के सहयोगी और पूर्व मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने कहा है कि वह फीनिक्स की तरह उभरेंगे। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार आव्हाड ने कहा, 'शरद पवार हमारी पार्टी हैं। वह हमारे प्रतीक हैं और इस राज्य के लोग उन्हें जानते हैं। राज्य में कई लोग हैं जो अभी भी मजबूती से पवार के पीछे हैं।'
शरद पवार के समर्थक भले ही कुछ भी दावे करें, लेकिन समझा जाता है कि पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती राज्य और राष्ट्रीय चुनावों से पहले अपने नए नाम और चुनाव चिह्न के बारे में जागरूकता फैलाना होगी।
ख़ासकर, ग्रामीण इलाकों में अभी भी घड़ी के प्रतीक को शरद पवार के साथ पहचान सकते हैं और जब तक उनका खेमा राज्य भर के मतदाताओं तक पहुंचने और नई पार्टी के नाम और प्रतीक को पेश करने में सक्षम नहीं हो जाता, तब तक अजित पवार गुट को चुनाव में अनुचित लाभ मिल सकता है।
शरद पवार के लिए विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के सामने भी लड़ाई है क्योंकि दोनों राकांपा समूहों के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर अभी तक फैसला नहीं आया है। मामले की सुनवाई 31 जनवरी को पूरी हुई और 15 फरवरी तक फैसला आने की संभावना है।
वैसे यह लड़ाई अभी सुप्रीम कोर्ट में भी बाक़ी है। चुनाव आयोग के फ़ैसले के बाद शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा है कि यह सवाल कि पार्टी किसकी है, सुप्रीम कोर्ट में तय किया जाएगा। चुनाव आयोग के फ़ैसले पर उन्होंने कहा, 'यह अदृश्य शक्ति की जीत है। जिस व्यक्ति ने पार्टी की स्थापना की उसे हार का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन मुझे ये अजीब नहीं लगता। हमें वह आदेश मिल रहा है जो शिवसेना के खिलाफ था। यही साजिश ठाकरे परिवार के खिलाफ भी रची गई थी। यह महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश है। यह फैसला हमारे लिए बिल्कुल भी चौंकाने वाला नहीं है। शरद पवार ने इस पार्टी को शून्य से खड़ा किया, हम इसे फिर से खड़ा करेंगे।'