महाराष्ट्र की सियासत में हुए एक बड़े घटनाक्रम में वंचित बहुजन आघाडी और शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने हाथ मिला लिया है। वंचित बहुजन आघाडी का नेतृत्व प्रकाश आंबेडकर करते हैं। वह डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के पोते हैं। इन दोनों दलों के गठबंधन को ‘शिव शक्ति और भीम शक्ति गठबंधन’ का नाम दिया गया है। महाराष्ट्र में बहुत जल्द बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव होने वाले हैं और उसके बाद मई, 2024 में लोकसभा और नवंबर, 2024 के विधानसभा चुनाव भी दूर नहीं हैं।
ऐसे में यह गठबंधन महाराष्ट्र की सियासत के लिहाज से निश्चित रूप से बेहद अहम है।
इस साल जून में बगावत का शिकार हुई शिवसेना की कोशिश खुद को फिर से खड़ा करने की है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बड़ी संख्या में सांसद, विधायक, शिवसैनिक उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ कर जा चुके हैं। ऐसे में उद्धव ठाकरे को एक ऐसा जोड़ीदार चाहिए जो उन्हें सियासी मजबूती दे सके।
हालांकि उद्धव ठाकरे का दल कांग्रेस और एनसीपी के साथ महा विकास आघाडी में भी शामिल है।
इस मौके पर प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि उद्धव ठाकरे को यह तय करना होगा कि वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन बनाए रखें या नहीं या फिर वंचित बहुजन आघाडी को गठबंधन के चौथे सहयोगी के रूप में लें या फिर वंचित बहुजन आघाडी और उद्धव ठाकरे गुट अलग गठबंधन में सहयोगी बनें।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने फैसला किया है कि वह महा विकास आघाडी गठबंधन में कांग्रेस और एनसीपी को बनाए रखते हुए कुछ नए साझीदारों को भी शामिल करेंगे।
शिवसेना जहां हिंदुत्व की राजनीति करने के लिए जानी जाती है वहीं प्रकाश आंबेडकर सेक्युलर राजनीति करते हैं। साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी, तभी उद्धव ठाकरे ने यह संकेत दे दिया था कि वह अब हिंदुत्व की राजनीति तो करेंगे लेकिन सत्ता में रहने के लिए सेक्युलर दलों के साथ तालमेल भी बढ़ाएंगे। यह सरकार सफलतापूर्वक ढाई साल तक चली लेकिन जून में हुई बगावत के बाद गिर गई।
आंबेडकर और प्रबोधनकर ठाकरे
प्रकाश आंबेडकर और उद्धव ठाकरे गुट के साथ आने के बाद साल 1950 का वह दशक याद आता है जब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर और प्रबोधनकर ठाकरे ने मिलकर सामाजिक बुराइयों जैसे- छुआछूत, दहेज प्रथा और जातिवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। यह दोनों ही नेता संयुक्त महाराष्ट्र मूवमेंट में कामरेड भी थे और तब महाराष्ट्र को अलग राज्य बनाने की लड़ाई लड़ी गई थी। प्रबोधनकर ठाकरे शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के पिता थे।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रबोधनकर 1920 के दशक में पहली बार चर्चा में तब आए थे जब उन्होंने दादर में आयोजित गणेश चतुर्थी समारोह में भीमराव आंबेडकर के एक दलित सहयोगी को गणेश प्रतिमा पर फूल चढ़ाने के लिए बुलाया था और ऐसा करके उन्होंने ऊंची जातियों के वर्चस्व को तोड़ने की कोशिश की थी। इसके बाद काफी हंगामा हुआ था और अगले साल दादर में गणेश पूजा नहीं हो सकी थी। लेकिन प्रबोधनकर ने अपने साथियों के साथ मिलकर श्री श्री भवानी नवरात्रि महोत्सव शुरू किया और इसमें सभी जातियों और समुदायों के लोगों को शामिल किया और तब नीची जाति के समझे जाने वाले महार समुदाय के लोगों ने भी भगवा झंडा फहराया था।
प्रकाश आंबेडकर और उद्धव ठाकरे ने कहा है कि बीजेपी की वजह से संविधान और लोकतंत्र को खतरा है। उन्होंने कहा कि उनके पूर्वजों ने जो किया वह आज सबसे ज्यादा प्रासंगिक है।
बीजेपी के लिए चिंता?
क्या वंचित बहुजन आघाडी के उद्धव ठाकरे के साथ आने से महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए कोई मुश्किल खड़ी हो सकती है। अगर महाराष्ट्र में ओबीसी, मराठा और दलित समुदाय का बड़ा तबका महा विकास आघाडी के साथ जुड़ जाता है तो यह बीजेपी-एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए चुनौती पेश कर सकता है। लेकिन ऐसा होना इतना आसान नहीं है क्योंकि उद्धव ठाकरे गुट कमजोर हुआ है और वर्तमान में उसके पास गिने-चुने विधायक और सांसद हैं। इसी तरह वंचित बहुजन आघाडी के पास कोई भी सांसद या विधायक नहीं है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वंचित बहुजन आघाडी के उम्मीदवारों की वजह से 8 से 10 सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा था और उन्हें इन लोकसभा क्षेत्रों में एक लाख से ज्यादा वोट हासिल हुए थे। तब प्रकाश आंबेडकर ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। लेकिन प्रकाश आंबेडकर ने जल्द ही एआईएमआईएम के साथ गठबंधन तोड़ दिया था।
2019 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस-एनसीपी और वंचित बहुजन आघाडी के बीच वोटों का बंटवारा होने की वजह से बीजेपी को 32 सीटों पर जीत मिल गई थी।
अगर महा विकास आघाडी के मौजूदा ढांचे को बरकरार रखते हुए इसमें वंचित बहुजन आघाडी शामिल हो तो निश्चित रूप से यह बीजेपी-एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए चुनौती बन सकता है।
कौन हैं प्रकाश आंबेडकर?
प्रकाश आंबेडकर कहते हैं कि उनकी पार्टी सभी जातियों, समुदायों और धर्मों के वंचित, पिछड़े और गरीबों की आवाज है।
प्रकाश आंबेडकर दो बार लोकसभा के और एक बार राज्यसभा के सांसद रहे हैं। 1994 तक वह रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया का प्रतिनिधित्व करते थे और दलितों के मुद्दे पर राजनीति करते थे। वह कांग्रेस के खिलाफ भी राजनीति करते रहे हैं। बाद में उन्होंने भारिप बहुजन महासंघ बनाया और इसमें ओबीसी के तबकों को भी शामिल किया।