मराठा आरक्षण पर विचार करने के लिए बनाए गए आयोग में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग यानी एमएसबीसीसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आनंद निर्गुडे ने इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले भी आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था और उन्होंने आयोग के काम में हस्तक्षेप का आरोप लगाया था। तो सवाल है कि आयोग को क्या काम दिया गया था और इसमें इस्तीफे क्यों हो रहे हैं?
इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि आख़िर इस मामले में ताजा घटनाक्रम क्या हुआ है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एमएसबीसीसी के अध्यक्ष पद से निर्गुडे ने 4 दिसंबर को राज्य सरकार को इस्तीफा सौंप दिया था और इसे 9 दिसंबर को स्वीकार कर लिया गया। हालाँकि निर्गुडे ने इस्तीफे की वजह नहीं बताई है।
एमएसबीसीसी एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण है। इसको एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा गठित किया गया था। इसको मराठा समुदाय के संदर्भ में असाधारण परिस्थितियों का पता लगाने के लिए कहा गया था, जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा से अधिक आरक्षण देने को उचित ठहराया जा सके। इसी आयोग के अध्यक्ष ने अब इस्तीफा दे दिया है।
अध्यक्ष के इस्तीफ़े का यह घटनाक्रम इस महीने की शुरुआत में आयोग के दो सदस्यों के इस्तीफे के बाद हुआ है। अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार आयोग के एक सदस्य बालाजी किलारिकर और लक्ष्मण हेक ने आयोग के कामकाज में राज्य सरकार के बढ़ते हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था।
किलारिकर ने पैनल के पक्षपातपूर्ण और एजेंडा-आधारित कामकाज का हवाला दिया है, जबकि हेक ने उनके इस्तीफे के कारण के रूप में सरकार के बढ़ते हस्तक्षेप की ओर इशारा किया है। एक अन्य सदस्य न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) चंद्रलाल मेश्राम ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह भी इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'हम सरकारी नौकर नहीं हैं। हमें सरकारी आदेशों के आधार पर काम नहीं करना चाहिए। मैंने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है, लेकिन हां, मैं इस्तीफा देने के बारे में सोच रहा हूं। मैं कुछ वरिष्ठों से चर्चा करूंगा और अगले दो-तीन दिनों में फैसला लूंगा।'
रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य सदस्य ने कहा कि आयोग की 1 दिसंबर की बैठक में असंतुष्ट सदस्यों ने केवल मराठों पर डेटा के संग्रह को अस्वीकार कर दिया था, और इसके बजाय सभी समुदायों पर डेटा जुटाने पर जोर दिया था।
बता दें कि मराठा आरक्षण के लिए मनोज जारांगे-पाटिल के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन और समुदाय की ओर से सरकार पर लगातार दबाव के कारण सरकार को यह कार्य नए सिरे से एमएसबीसीसी को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। आयोग के एक अन्य सदस्य ने कहा कि राज्य केवल 50 प्रतिशत आरक्षण के आंकड़े को पार करने के लिए आयोग की मुहर लगवाना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने के कारण मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया था।
राज्य में विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार केंद्र के साथ मिलकर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ऊपर बढ़ाने के लिए काम करे।
एक्टिविस्ट मनोज जारंगे पाटिल के नेतृत्व में महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन ने राज्य सरकार को मराठों को ओबीसी प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए मजबूर किया। इसके चलते ओबीसी ने विरोध प्रदर्शन किया है और चेतावनी दी है कि अगर आरक्षण में उनकी हिस्सेदारी कम की गई तो वे आंदोलन करेंगे।