उद्धव ठाकरे पर महा विकास अघाड़ी छोड़ने का दबाव
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एमवीए की हार ने इसे बिखरने के हालात पैदा कर दिए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उद्धव ठाकरे की एक बैठक में सेना (यूबीटी) के 20 विधायकों में से अधिकांश ने कथित तौर पर यह आग्रह किया किया कि उद्धव को अब एमवीए छोड़ देना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि सेना (यूबीटी) का जमीनी स्तर का कैडर, जो विधानसभा चुनावों में एकनाथ शिंदे सेना की 57 सीटों की संख्या से पूरी तरह से प्रभावित था, एमवीए के "प्रभावी" होने पर अब सवाल उठा रहा है।
हालांकि, सूत्रों ने कहा, ठाकरे के साथ-साथ आदित्य ठाकरे और राज्यसभा सांसद संजय राउत के अलावा अन्य वरिष्ठ नेता "भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष पेश करने" के लिए गठबंधन बनाए रखने के इच्छुक हैं।
महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने कहा- “हमारे कई विधायकों को लगता है कि अब समय आ गया है कि शिवसेना (यूबीटी) स्वतंत्र रास्ता बनाए, अपने दम पर चुनाव लड़े और किसी गठबंधन पर निर्भर न रहे। शिवसेना कभी भी सत्ता का पीछा करने के लिए नहीं बनी है... यह (सत्ता) स्वाभाविक रूप से तब आएगी जब हम अपनी विचारधारा पर दृढ़ रहेंगे।''
अंबा दास दानवे ने कहा, एमवीए से आजाद होने के कदम से शिवसेना (यूबीटी) को "अपनी नींव मजबूत करने" में मदद मिलेगी।
चूंकि एकनाथ शिंदे ने 2022 में पार्टी में विभाजन के बाद सेना के अधिकांश विधायकों और सांसदों को अपने साथ ले लिया था, इसलिए पार्टी नेताओं ने सेना (यूबीटी) पर कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा और हिंदुत्व के साथ "विश्वासघात" करने का आरोप लगाया है। तब से गुटीय लड़ाई में सेना (यूबीटी) को कई झटके लगे हैं, जिसमें शिंदे पक्ष को पार्टी का चुनाव चिह्न और नाम गंवाना भी शामिल है।
हालिया विधानसभा चुनाव नतीजे सबसे बड़ा झटका थे, जिसमें पूरे एमवीए की 46 सीटों (शिवसेना-यूबीटी की 20, कांग्रेस की 16 और एनसीपी-एसपी की 10 सहित) की संख्या शिंदे सेना की संख्या से कम थी। सेना (यूबीटी) को 9.96% वोट मिले, जो शिंदे सेना से लगभग 3% पीछे है। यह छह महीने पहले लोकसभा नतीजों से बड़ी गिरावट है जब उद्धव सेना को 16.72% वोट मिले थे।
अब सेना (यूबीटी) नेताओं को लगता है कि एमवीए छोड़ना और अकेले जाना ही पार्टी के लिए अपने आधार से दोबारा जुड़ने और इसे शिंदे सेना की ओर जाने से रोकने का एकमात्र तरीका है।
हाल के चुनाव में हारे हुए उद्धव सेना के एक प्रत्याशी ने कहा- “शिवसेना ने हमेशा मराठी क्षेत्रवाद और हिंदुत्व को बढ़ावा दिया है… कांग्रेस और एनसीपी का रुझान अधिक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी है। भाजपा की शानदार सफलता को देखते हुए, जिसका श्रेय कई लोग हिंदू वोटों की एकजुटता को देते हैं, सेना (यूबीटी) के भीतर कांग्रेस और एनसीपी को समायोजित करने के लिए अपने हिंदुत्व झुकाव को कमजोर करने को लेकर चिंता बढ़ रही है।”
पार्टी नेताओं को चिंता है कि भाजपा का यह बयान कि सेना (यूबीटी) "मुसलमानों को बढ़ावा दे रही है और अपनी हिंदुत्व जड़ों को धोखा दे रही है" असर कर रहा है। नासिक सेंट्रल के एक सेना (यूबीटी) नेता ने कहा, "मुस्लिम वोटों को सुरक्षित करना फायदेमंद है, लेकिन अगर वे वोट अन्य समर्थकों को दूर कर देते हैं, तो वो हमारे लिए बेकार है।" हारने वाले सेना (यूबीटी) उम्मीदवार ने दावा किया कि पार्टी के कई कैडर "इतनी ज़बरदस्त हार के बाद ठाकरे के प्रति उनकी निष्ठा पर भी सवाल उठा रहे हैं।" हालांकि 2022 के विभाजन में, सेना के अधिकांश शीर्ष अधिकारी शिंदे के साथ चले गए थे, माना जाता था कि कैडर अभी भी ठाकरे के प्रति वफादार है।
चुनाव के बाद, कई सेना (यूबीटी) नेता सीट-बंटवारे की व्यवस्था की घोषणा में देरी और कांग्रेस द्वारा सेना (यूबीटी) के बजाय निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन देने जैसे मुद्दों का हवाला देते हुए "एमवीए के भीतर एकता की कमी" के बारे में भी बोल रहे हैं। सोलापुर दक्षिण इसका प्रमुख उदाहरण है, जहां कांग्रेस सांसद प्रणीति शिंदे ने मतदान के ठीक दिन पहले एक विद्रोही पार्टी के उम्मीदवार के लिए समर्थन की घोषणा की, हालांकि वहां एमवीए उम्मीदवार सेना (यूबीटी) नेता था।
बता दें कि एमवीए का गठन 2019 के नतीजों के बाद किया गया था, जब तत्कालीन एकजुट शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के सवाल पर भाजपा के साथ अपनी साझेदारी से हाथ खींच लिया था। इसके बाद ठाकरे ने एमवीए सरकार बनाने के लिए तत्कालीन एकजुट एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाया। शिंदे द्वारा सेना में विभाजन कराने के बाद 2022 में इसका पतन हो गया। एक साल बाद अजित पवार ने एनसीपी में फूट डाल दी थी। अजित पवार अब महायुति के साथ हैं।