शिवसेना के बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। शिंदे गुट ने बागी विधायकों को डिप्टी स्पीकर के द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस को चुनौती दी है। मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला की बेंच कर रही है।
महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवल ने 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने वाला नोटिस उन्हें शनिवार को भेजा था। सभी विधायकों को उनका लिखित जवाब दाखिल करने के लिए 27 जून शाम 5.30 बजे तक का वक्त दिया गया है। ये सभी विधायक गुवाहाटी के होटल में रुके हैं।
शिंदे गुट ने अपनी याचिका में कहा है कि पार्टी के 38 विधायकों ने महा विकास आघाडी सरकार से समर्थन वापस ले लिया है और यह सरकार अल्पमत में आ गई है। याचिका में कहा गया है कि महा विकास आघाडी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए डिप्टी स्पीकर के दफ्तर का गलत इस्तेमाल कर रही है।
इस मामले में शिवसेना की ओर से भी अदालत में याचिका लगाई गई है।
शिंदे गुट ने अपनी एक अन्य याचिका में कहा है कि बगावत करने वाले विधायकों की जान को खतरा है। याचिका में कहा गया है कि महा विकास आघाडी सरकार का महाराष्ट्र की कानून और व्यवस्था पर कोई नियंत्रण नहीं है। याचिका में शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत के कई बयानों का भी हवाला दिया गया है।
नबम रेबिया मामले का हवाला
एकनाथ शिंदे के गुट की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट नीरज कृष्ण कौल ने कहा कि ऐसे वक्त में जब डिप्टी स्पीकर को हटाए जाने का प्रस्ताव लंबित है, वह विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की कार्रवाई नहीं कर सकते। उन्होंने नबम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले का हवाला भी दिया।
जस्टिस सूर्यकांत ने एडवोकेट कौल से कहा कि आप लोग हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। इस पर एडवोकेट कौल ने इसके पीछे तीन वजह बताते हुए विधायकों को दी जा रही धमकियों के बारे में अदालत को बताया और कहा कि इस इस तरह के माहौल के बीच मुंबई में अपने कानूनी हक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह इस तरह के बयानों को वैरिफाई नहीं कर सकते लेकिन जहां तक अयोग्यता के नोटिस पर जवाब देने के लिए कम वक्त दिए जाने की बात है तो उन्होंने इसे देखा है।
एडवोकेट कौल ने कहा कि 2019 में एकनाथ शिंदे को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया था लेकिन 2022 में एक बैठक बुलाकर नया व्हिप जारी कर दिया गया। उन्होंने कहा कि अहम बात यह है कि डिप्टी स्पीकर इस तरह का नोटिस कैसे जारी कर सकते हैं जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच कह चुकी है कि यदि स्पीकर को हटाने का सवाल है तो वह किसी प्रक्रिया पर आगे नहीं बढ़ सकते। इसके अलावा वह बहुत जल्दबाजी में इस मामले में आगे बढ़ रहे हैं।
एडवोकेट कौल ने सुप्रीम कोर्ट के महाराष्ट्र में 12 विधायकों के एक साल के निलंबन को रद्द करने वाले फैसले को भी सामने रखा और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 32 में हस्तक्षेप किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह निलंबन पूरी तरह असंवैधानिक है।
ओबीसी आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना और बीजेपी के विधायकों के बीच धक्का-मुक्की हुई थी। इसके बाद बीजेपी के 12 विधायकों को विधानसभा उपाध्यक्ष ने एक साल के लिए निलंबित कर दिया था।
कौल ने नबम रेबिया के फैसले को पढ़ते हुए कहा कि स्पीकर अगर अपने बहुमत के प्रति आश्वस्त है, वह फ्लोर टेस्ट से क्यों डरेगा? कौल ने स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को हटाने से जुड़े अनुच्छेद 179 और महाराष्ट्र विधानसभा के नियम 11 को भी पढ़ा।
शिवसेना की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एकनाथ शिंदे गुट के वकील एडवोकेट कौल ने इसका कोई जवाब नहीं दिया कि सुप्रीम कोर्ट को उन्हें हाईकोर्ट क्यों नहीं भेज देना चाहिए। एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि साल 2020 में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के अलावा किसी भी अन्य मामले में अदालतों ने स्पीकर के सामने लंबित प्रक्रियाओं पर दखल नहीं दिया है।
उधर, सीनियर एडवोकेट और शिवसेना के लीगल एडवाइजर देवदत्त कामत ने कहा है कि स्पीकर की गैरमौजूदगी में डिप्टी स्पीकर के पास फैसला लेने की सारी शक्तियां हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के बाहर से पार्टी विरोधी गतिविधियां करने के लिए विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने के पूर्व में कई उदाहरण हैं। देवदत्त कामत ने कहा कि दल बदल कानून से बचने के लिए दो-तिहाई विधायक जरूरी होने का जो फ़ॉर्मूला है वह तभी लागू होता है जब विलय कर लिया जाए। जब तक विधायक किसी दूसरी पार्टी में विलय नहीं करते उन्हें अयोग्य ठहराया जा सकता है।