शिवसेना-बीजेपी ने सीटें बाँट लीं, अठावले की माँग से फँसा पेच

03:39 pm Feb 19, 2019 | संजय राय - सत्य हिन्दी

शिवसेना और बीजेपी के बीच महाराष्ट्र में सीटों का बँटवारा तय हो गया है। दोनों दलों ने सोमवार को एक साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इसकी घोषणा भी कर दी कि आगामी आम चुनाव साथ मिलकर लड़ेंगे। लेकिन इस घोषणा के साथ ही एक सवाल यह खड़ा हो गया है कि शिव सेना -बीजेपी के उन सहयोगी दलों का क्या होगा जो केंद्र और महाराष्ट्र में उनकी सरकार में सहयोगी हैं?

इन सहयोगी दलों को साथ रखकर ही शिव सेना- बीजेपी ने पिछला लोकसभा चुनाव लड़ा था और मतों का विभाजन टालते हुए एक मज़बूत गठबंधन तैयार किया था। विधानसभा चुनावों में बीजेपी- शिव सेना गठबंधन भले ही टूट गया था लेकिन बीजेपी ने छोटे दलों को साथ रखकर चुनाव लड़ा था और उसे पहली बार प्रदेश में सबसे बड़ा दल और सरकार बनाने का अवसर मिला था। इन छोटे दलों में रिपब्लिकन पार्टी का रामदास अठावले ग्रुप, शिव संग्राम संगठन, राष्ट्रीय समाज पक्ष आदि शामिल हैं। इस गठबंधन की घोषणा के बाद ये दल अपने आप को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। अठावले वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री हैं जबकि समाज पक्ष के नेता राज्य सरकार में मंत्री हैं और शिव संग्राम पक्ष के नेता को राज्य मंत्री का दर्जा हासिल है।

  • गठबंधन की कवायद के दौरान इन दलों के नेताओं द्वारा भी सवाल उठाये जा रहे थे लेकिन जो घोषणा हुई उसमें उनकी भूमिका का कोई ज़िक्र नहीं है।

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सबसे बड़ा सवाल तो केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का है। वह गत एक साल से अपनी पार्टी के कार्यक्रमों व अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में यह घोषणा करते रहे हैं कि अगला लोकसभा चुनाव वह दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा से लड़ेंगे।

लेकिन 48 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 25 और शिवसेना ने 23 सीटें आपस में बाँट ली। क्योंकि नए फॉर्मूले के तहत बीजेपी ने शिवसेना के अलावा किसी भी गठबंधन के साथी के लिए कोई भी सीट नहीं छोड़ी है। अब रामदास अठावले ने बीजेपी से दक्षिण मध्य मुंबई सीट की माँग की है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी रामदास अठावले को किसके कोटे से सीट देती है या फिर गठबंधन से बाहर रखती है। बड़ी बात यह है कि गठबंधन में अब तक बीजेपी महाराष्ट्र में 26 सीटों पर चुनाव लड़ती आयी है। शिव सेना की ज़िद पर उसे इस बार अपने हिस्से की एक सीट छोड़नी पड़ी है।

  • अब ऐसे में वह रामदास अठावले की माँग को मानती है तो एक और सीट छोड़नी पड़ेगी। अब सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी के चाहने पर भी रामदास अठावले को दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा सीट मिलेगी?

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अगर शिव सेना की तरफ़ से जवाब माँगा जाएगा तो उत्तर ना में ही मिलना है, क्योंकि मुंबई में यही लोकसभा की सीट है जो अधिकाँश समय शिव सेना के कब्ज़े में रही है और वर्तमान में भी शिव सेना के राहुल शेवाले यहाँ से सांसद हैं। 

क्या शिवसेना दक्षिण मध्य मुंबई सीट छोड़ेगी?

दक्षिण मध्य मुंबई सीट का रुख़ 1952 से 1989 तक कभी कांग्रेस तो कभी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के बीच घूमता रहा। 1984 में यहाँ से निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली लेकिन उसके बाद इस सीट का मिज़ाज बदला। 1989 से 2009 तक 20 साल यहाँ शिवसेना का दबदबा रहा। उस दौरान यहाँ से मोहन रावले ने लगातार 5 चुनावों में शिवसेना का झंडा बुलंद रखा। 2009 में कांग्रेस के दलित नेता एकनाथ गायकवाड़ यहाँ से चुनाव जीते, लेकिन 2014 की मोदी लहर में यह सीट फिर से शिवसेना के खाते में आ गई। 2014 में इस लोकसभा सीट से शिवसेना के राहुल रमेश शेवाले ने 3,81,008 वोट पाकर जीत हासिल की। कांग्रेस के एकनाथ महादेव गायकवाड़ को 2,42,828 वोट मिले। तीसरे स्थान पर मनसे के आदित्य राजन शिरोडकर रहे जिन्हें 73,096 वोट मिले थे। ऐसे में शिव सेना यह सीट छोड़ देगी ऐसा नहीं लगता। 

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अठावले पर बीजेपी दुविधा में 

ऐसे में रामदास अठावले का क्या होगा? क्या बीजेपी -शिव सेना उसे गठबंधन से बाहर छोड़ देंगे? जिस तरह से बीजेपी लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन को बरकरार रखने के लिए कवायद कर रही है उसे देखकर तो यह नहीं लगता कि वह प्रदेश में रामदास अठावले को नाराज़ कर दलित वोटों को दूर कर दे। तो क्या अठावले को बीजेपी अपने खाते से कोई और सीट देगी या राज्यसभा में भेजने का प्रलोभन देगी। वैसे, अठावले के रुख़ को देखते हुए तो यह लग रहा है कि वह इसी सीट पर अपना दावा ठोकेंगे? यदि ऐसा होता है तो बीजेपी को अब अठावले को मनाने लिए नयी कवायद शुरू करनी पड़ेगी।

  • अठावले के अलावा जो दो प्रमुख दल हैं जिन्हें बीजेपी- शिव सेना ने गठबंधन में जगह नहीं दी हैं उनमें शिव संग्राम पक्ष मराठा आंदोलन की माँग को लेकर अस्तित्व में आया है, जबकि राष्ट्रीय समाज पक्ष धनगर समाज से सम्बंधित है। इन दोनों दलों का अपनी-अपनी जाति पर प्रभाव है और उसका फ़ायदा 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा -शिव सेना गठबंधन को हुआ था। 

किसान नेता राजू शेट्टी को कैसे साधेगी बीजेपी?

इसके अलावा एक दल और है जो इस बार इस गठबंधन से बाहर है, वह है किसान नेता राजू शेट्टी का शेतकरी स्वाभिमानी पक्ष। इस दल की पकड़ प्रदेश के कोल्हापुर व आसपास के तीन जिलों में ज़्यादा है लेकिन विगत सालों में जिस तरह से प्रदेश भर में किसान आंदोलित हैं राजू शेट्टी व उनकी पार्टी का आधार क्षेत्र बढ़ा है। मोदी सरकार को किसान विरोधी बताते हुए राजू शेट्टी जो वर्तमान में सांसद भी हैं इस गठबंधन से बाहर निकल गए हैं। पिछली बार उनकी पार्टी को दो लोकसभा सीटें दी गयी थीं जिसमें से एक पर जीत हासिल की थी। इस बार राजू शेट्टी की पार्टी कांग्रेस गठबंधन के साथ जाने वाली है और उसका नुक़सान बीजेपी - शिव सेना को साफ़ तौर से दिखाई भी दे रहा है।

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