महाराष्ट्र विधानमंडल में अपने मनोनयन के प्रति राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के रवैये को देखते हुए उद्धव ठाकरे ने बुधवार रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फ़ोन पर बात की। उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ महाराष्ट्र में राजनीतिक हालात के बारे में चर्चा की। शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ठाकरे ने विधानमंडल में उनके मनोनयन को लेकर प्रदेश में खेले जा रहे राजनीतिक 'खेल' पर नाराज़गी जताई। उन्होंने प्रधानमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। उद्धव को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानमंडल के दोनों सदनों में से किसी भी एक सदन का सदस्य बनना ज़रूरी है। क्योंकि अभी चुनाव नहीं हो सकते हैं तो उनके सामने मनोनीत होकर सदन का सदस्य बनने का रास्ता है।
राज्य की कैबिनट ने ऊपरी सदन में खाली पड़ी दो सीटों के लिए उद्धव ठाकरे के मनोनयन के लिए प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को भेजा था। इसके 20 दिन हो गए फिर भी राज्यपाल ने उस प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री से कहा कि कोरोना वायरस से लड़ाई के बीच महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में राजनीतिक अस्थिरता ठीक नहीं होगी। बता दें कि शिवसेना आरोप लगाती रही है कि बीजेपी राज्य में सरकार को अस्थिर करने में लगी हुई है।
उद्धव ठाकरे 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री बने थे। तब से वह विधानमंडल के दोनों सदनों में से किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। संविधान के क़ायदे के अनुसार, मंत्री या मुख्यमंत्री को छह महीने के अंदर सदस्य बन जाना होता है। इस हिसाब से उद्धव के पास विधिवत विधायक बनने के लिए छह महीने यानी 27 मई तक की मोहलत है। चुनाव आयोग 24 अप्रैल को विधान परिषद की नौ सीटों के लिए चुनाव करवाने की अधिसूचना जारी कर चुका था, लेकिन कोरोना और इसके बाद लॉकडाउन के कारण चुनाव को टाल दिया गया।
उद्धव के मनोनयन के लिए अब तक दो बार प्रस्ताव भेजा जा चुका है। सोमवार को ही राज्यपाल को दूसरी बार भेजे गए प्रस्ताव में एक बार फिर राज्यपाल से अपील की गयी है कि वह तत्काल उद्धव ठाकरे को विधायक मनोनीत करें और प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता दूर करें।
इससे पहले 9 अप्रैल को भी मंत्रिमंडल की तरफ़ से राज्यपाल को एक प्रस्ताव भेजा गया था। राज्यपाल कोटे से कला और सामाजिक क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वाले लोगों का मनोनयन होता है। इसके पीछे यह तर्क भी दिया गया कि उद्धव ठाकरे कुशल फ़ोटोग्राफ़र हैं, उनकी फ़ोटोग्राफ्स की प्रदर्शनियाँ हुई हैं और किताबें भी प्रकाशित हुई हैं, लिहाज़ा कला के कोटे से उन्हें विधायक मनोनीत किया जाना चाहिए। लेकिन राज्यपाल ने इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया।
कहा जा रहा है कि यदि उद्धव को मनोनीत नहीं भी किया जाता है तो भी अदालत में इस प्रकरण को चुनौती देने से लेकर उद्धव ठाकरे को इस्तीफ़ा दिलाकर फिर से शपथ देने तक के विकल्प हैं।