महाराष्ट्र के विधायक छगन भुजबल ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने महाराष्ट्र के मंत्री पद से पिछले साल नवंबर में ही इस्तीफा दे दिया था। वह ओबीसी कोटा में मराठा समुदाय को पिछले दरवाजे से आरक्षण देने का आरोप लगाते रहे हैं।
छगन भुजबल ने इसकी घोषणा एक रैली में की है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार भुजबल ने शनिवार को खुलासा किया कि उन्होंने पिछले नवंबर में राज्य मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा, 'विपक्ष के कई नेता यहाँ तक कि मेरी सरकार के नेता भी कहते हैं कि मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए। किसी ने कहा कि भुजबल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। मैं विपक्ष, सरकार और अपनी पार्टी के नेताओं को बताना चाहता हूं कि 17 नवंबर को अंबाद में आयोजित ओबीसी एल्गर रैली से पहले मैंने 16 नवंबर को कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और फिर उस कार्यक्रम में शामिल होने गया था।'
तो सवाल है कि जब उन्होंने क़रीब ढाई महीने पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था तो अब तक इसकी जानकारी बाहर क्यों नहीं आई? उन्होंने खुद इसकी घोषणा पहले क्यों नहीं की? इसके जवाब में भुजबल ने कहा है कि वह दो महीने से अधिक समय तक चुप रहे क्योंकि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने उन्हें इस बारे में नहीं बोलने के लिए कहा था।
वरिष्ठ नेता ने कहा, 'बर्खास्तगी की कोई जरूरत नहीं है। मैंने अपना इस्तीफा दे दिया है। मैं अंत तक ओबीसी के लिए लड़ूंगा।'
इससे पहले छगन भुजबल को महाराष्ट्र कैबिनेट से बाहर करने की कथित मांग करने वाली शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) विधायक संजय गायकवाड़ का एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था। इस वीडियो के आने के बाद भुजबल ने शुक्रवार को कहा था कि इस्तेमाल की गई भाषा से वह आहत हुए हैं। उन्होंने कहा था, 'मैंने उनका बयान सुना है और इसके बारे में पढ़ा है। हर किसी को मेरा इस्तीफा मांगने का अधिकार है। विधायक मुझसे इस्तीफा भी मांग सकते हैं। मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है। लेकिन उन्होंने जिस भाषा का इस्तेमाल किया वह उचित नहीं है।'
उन्होंने कहा था, 'मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मैं उस संस्थान का वरिष्ठ प्रोफेसर था जिसमें उन्होंने ये पाठ सीखा है।'
बहरहाल, शनिवार को एक रैली को संबोधित करते हुए भुजबल ने दोहराया कि वह मराठों को आरक्षण मिलने के विरोध में नहीं हैं, लेकिन मौजूदा ओबीसी कोटा साझा करने के ख़िलाफ़ हैं। वह मराठा आरक्षण की मांग से निपटने के लिए राज्य सरकार की आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने सरकार पर मराठा आरक्षण नेता मनोज जारांगे की मांगों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था।
भुजबल ने आरोप लगाया कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा एक सर्वेक्षण के माध्यम से मराठा समुदाय के पिछड़ेपन को निर्धारित करने के लिए डेटा जुटाने की प्रक्रिया सही नहीं है।
उन्होंने कहा, 'हालाँकि राज्य की आबादी में ओबीसी 54-60%, एससी/एसटी 20% और ब्राह्मण 3% हैं, फिर भी सभी विधायक और सांसद मराठा वोट खोने से डरते हैं।' भुजबल ने दावा किया कि ओबीसी विधायक रैलियों में भाग लेना तो दूर, फंडिंग में भी मदद नहीं करते हैं।
एनसीपी में शामिल होने से पहले भुजबल भी शिवसेना में थे। वह अब एनसीपी के अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट के साथ हैं।
बता दें कि भुजबल ने जिस 16 नवंबर को इस्तीफे देने की बात की है उसके 10 दिन बाद ही नवंबर में उन्होंने अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ रुख अपनाया था। उन्होंने मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र दिए जाने का विरोध किया था। इस मामले में अपनी ही सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति संदीप शिंदे समिति को रद्द करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था, 'समिति का गठन किया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मराठा समुदाय पिछड़ा नहीं है।' उन्होंने यह भी कहा था कि हाल के दिनों में मराठों को दिए गए कुनबी जाति प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
छगन भुजबल एनसीपी (अजित पवार समूह) से हैं और वह ओबीसी समुदाय से आते हैं।