श्रद्धा वालकर की हत्या 18 मई को हुई थी। यह हत्या क़रीब छह महीने तक राज रही। तो सवाल है कि आख़िर यह राज कैसे खुला? क्या आपको पता है कि एक ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की वजह से आफताब पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
आफ़ताब ने इस हत्या को राज रखने का पूरा प्रयास किया, काफ़ी समय तक वह इसमें कामयाब भी रहा। आरोपी आफताब शव को 35 टुकड़े कर शवों को कुछ दिनों में ही ठिकाने भी लगा चुका था। चूँकि श्रद्धा घर छोड़कर भागी थी तो घर वाले संपर्क में थे नहीं। श्रद्धा के सोशल मीडिया खाते से आरोपी पोस्टें डालता रहा, उसके फोन से उसके दोस्तों को टेक्स्ट मैसेज भेज रहा था ताकि उनके जानने वालों को उसके लापता होने का पता न चल पाए और हत्या का राज न खुल जाए। यहाँ तक कि आरोपी ने अक्टूबर महीने में पुलिस से यह तक कह दिया था कि श्रद्धा 22 मई को ही लड़ाई के बाद घर छोड़कर चली गई थी। ऐसे में क्या आफताब को पकड़ना इतना आसान था?
तो सवाल है कि फिर हत्या का पता कैसे चलता? क़रीब छह महीने बाद अब कैसे हत्या की वह घटना उजागर हुई? इस सवाल का जवाब बाद में पहले यह जान लें कि यह पूरा मामला क्या है।
साल 2018-2019 में आफताब और श्रद्धा क़रीब आए थे। लेकिन उनके परिवारों द्वारा विरोध करने के बाद वे दोनों पालघर से मुंबई शिफ्ट हो गए थे और साथ रहने लगे थे। बाद में वे दिल्ली में चले गए। इस साल महरौली के छतरपुर पहाड़ी इलाक़े में 15 मई को एक वन रूम फ्लैट किराए पर लिया। यहीं पर वह घटना हुई।
पुलिस का कहना है कि उसकी हत्या तो उसके प्रेमी आफताब द्वारा ही गला घोंट कर कर दी गई थी, लेकिन उसने इस अपराध से बचने के लिए एक तरकीब निकाली। यह तरकीब थी शव को टुकड़ों में काटने की, फ्रीज़ में स्टोर कर एक-एक टुकड़े को ठिकाने लगाने की।
हत्या को छुपाने की कोशिश में 18 मई को श्रद्धा की हत्या के बाद आफताब ने उसके इंस्टाग्राम अकाउंट को लॉगइन किया और उसके दोस्तों को मैसेज भेजे जिससे उन्हें यह लगे कि श्रद्धा अभी भी जिंदा है।
आफताब ने श्रद्धा के क्रेडिट कार्ड का बिल भी चुका दिया जिससे कंपनियां श्रद्धा के मुंबई वाले पते पर कांटेक्ट न कर सकें।
लेकिन हत्या की वह वारदात छुप नहीं सकी। श्रद्धा के दोस्तों की खोजबीन से वह राज खुल ही गया। उसके एक दोस्त ने सबसे पहले सितंबर में महाराष्ट्र के पालघर इलाक़े में रहने वाले उसके परिवार को उसकी 'लापता' स्थिति के बारे में बताया था। परिवार ने जब पुलिस से संपर्क किया तो जाँच पड़ताल शुरू हुई।
आरोपी आफताब अमीन पूनावाला ने अक्टूबर के अंत में जाँचकर्ताओं को बताया कि श्रद्धा 22 मई को लड़ाई के बाद उनके दिल्ली के किराए के फ्लैट से बाहर चली गई थी।
हालाँकि, उसका बयान नवंबर में भी तब आया जब वालकर के कथित तौर पर घर छोड़ने के एक हफ्ते बाद उसके फोन से किए गए एक ऑनलाइन लेनदेन के बारे में सवाल पूछा गया था। यहीं से पुलिस को आफताब के बयान पर संदेह होना शुरू हुआ। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले से जुड़े महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों ने कहा है कि यही पहला संदेह था और इसके आधार पर और जाँच आगे बढ़ी।
रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में आफताब से पूछताछ कर रहे अधिकारियों ने कहा कि जब उससे पहली बार 26 अक्टूबर को वालकर की लोकेशन के बारे में पूछा गया, तो उसने कहा कि वह 22 मई को एक लड़ाई के बाद घर से निकल गई थी। पुलिस ने पाया कि उसका फोन 31 मई से बंद था। उस फ़ोन पर 26 मई के बाद से कोई कॉल नहीं किया गया था या उस पर कोई कॉल प्राप्त नहीं हुआ था।
एचटी की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, 'पूनावाला ने कहा कि वालकर ने अपने कपड़े और अन्य सामान घर में छोड़ दिए और केवल अपना सेलफोन ही अपने साथ ले गई। हालाँकि, बाद में जांच के दौरान हमें एक ऑनलाइन लेन-देन मिला, जो 22 मई से 26 मई के बीच किया गया था। इसमें 54,000 रुपये वालकर के खाते से नेट बैंकिंग ऐप के माध्यम से आफताब के खाते में भेजे गए थे।'
अधिकारियों ने कहा कि लेन-देन के दौरान उसके फोन की लोकेशन छतरपुर तक सीमित थी। ऐसा तब था जब आफताब ने दावा किया था कि वह मोबाइल लेकर घर से निकली थी। पुलिस ने कहा कि गिरफ्तारी से एक दिन पहले 11 नवंबर को पूछताछ के दौरान उससे लेन-देन के बारे में पूछा गया, जिसका जवाब देने में वह लड़खड़ाने लगा।
एचटी की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा, 'उसने कहा कि वह उसके पासवर्ड जानता था और लेन-देन खुद करता था, क्योंकि उसके पास पैसे बकाया थे।' उसका यह बयान पुलिस को दिए उसके अपने पिछले बयान के विपरीत था कि वह अपना फोन साथ ले गई थी। यहीं पर आफताब फँस गया। उसको इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया और हत्या की बात कबूल कर ली।