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महाराष्ट्रः भाजपा वाले महायुति में सीट बंटवारे का गणित क्यों नहीं बैठ पा रहा?

महाराष्ट्रः भाजपा वाले महायुति में सीट बंटवारे का गणित क्यों नहीं बैठ पा रहा?

महाराष्ट्र में महायुति अब शायद ही बचे। विधानसभा चुनाव से पहले कोई न कोई दल अलग हो जाएगा। उसकी वजह है कि सीट शेयरिंग में कोई भी दल झुकने को तैयार नहीं है। 288 विधानसभा सीटों में से भाजपा अकेले 150 सीटों पर लड़ना चाहती है। शिवसेना शिंदे सौ सीटें मांग रही है तो अजीत पवार की एनसीपी की नजर 80 सीटों पर है। भाजपा ने ऐसी ही जिद लोकसभा में की थी, जो उसे भारी पड़ी थी। जानिए ताजा हालातः

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दो महीने रह गए हैं और महायुति के दल अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं कर पाए हैं। लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। महायुति के दल जो एनडीए का हिस्सा हैं, संकेत दे रहे हैं कि उनका एकसाथ चुनाव लड़ना मुश्किल है।  

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि भाजपा कम से कम 150 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। एकनाथ शिंदे की शिवसेना 100 सीटें मांग रही है, जबकि उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की एनसीपी 80 सीटों से कम पर राजी नहीं है। इस तरह विधानसभा की कम से कम 40 सीटों पर असहमति है और किसी भी दल का राजी होना मुमकिन नहीं है।

महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन अभी भी लोकसभा चुनावों के दौरान राज्य में मिली हार से उबर नहीं पाया है। इंडिया गठबंधन की 30 सीटों के मुकाबले राज्य की 48 सीटों में से केवल 17 सीटें ही एनडीए जीत पाई थी। कई वजहों से खराब प्रदर्शन रहा। विशेषज्ञों ने कहा कि उस समय भी सीट-बंटवारे पर असहमति ने अपनी भूमिका निभाई।

अजीत पवार ने गुरुवार को दिल्ली में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस के साथ गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर सीट बंटवारे पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अजीत पवार पर उनकी पार्टी के नेताओं का दबाव है कि वे 80-90 सीटों से कम पर समझौता न करें। उनका तर्क है कि उन्हें उन सभी 54 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए जो अविभाजित एनसीपी ने 2019 के विधानसभा चुनावों में जीती थीं। इसके अलावा 30 और भी सीटें इस गुट को चाहिए।

शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने 2019 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में 120 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था। सूत्रों ने कहा कि अजीत पवार गुट को पता है कि यह एक मुश्किल स्थिति है, क्योंकि वो शरद पवार गुट द्वारा जीती गई आठ लोकसभा सीटों के मुकाबले सिर्फ एक लोकसभा सीट जीत पाई है। यहां तक ​​कि वह बारामती सीट भी हार गई थी, जिसे अजीत पवार ने अपनी चचेरी बहन और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा को मैदान में उतारकर नाक का सवाल बना दिया था। जिसमें उनकी नाक बची नहीं।

4 जून को आए लोकसभा नतीजों के बाद से ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि अजीत पवार की पार्टी के सदस्य शरद पवार के गुट के संपर्क में हैं और असली एनसीपी में लौटना चाहते हैं। इससे अजीत पवार पर यह दबाव बढ़ रहा है कि पार्टी पर्याप्त उम्मीदवार उतारे ताकि असंतोष और संभावित बदलाव को कम से कम किया जा सके। यानी अगर कुछ विधायक टूट कर शरद पवार की शरण में जाते हैं तो अजीत पवार उनकी जगह दूसरों को टिकट दे सकें।

लोकसभा नतीजों के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े साप्ताहिक अखबार ऑर्गनाइज़र के एक लेख में अजीत पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए भाजपा की आलोचना की गई थी और तब से महायुति में दरार की चर्चा चल रही है। हालांकि सहयोगियों ने ऐसी किसी भी चर्चा को खारिज कर दिया है, खासकर इस महीने की शुरुआत में विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) चुनावों में महायुति गठबंधन ने ठीकठाक सीटें जीत लीं। लेकिन भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने शुक्रवार को फिर से सीट बंटवारे के मामले में बयान देकर हलचल मचा दी।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र में पार्टी का नेतृत्व करने वाले फडणवीस जहां 150 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, वहीं संवाददाता सम्मेलन में जब नारायण राणे से पूछा गया कि विधानसभा चुनाव में भाजपा कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो उन्होंने कहा, ''मैं चाहूंगा कि भाजपा सभी 288 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे।'' हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि वो मजाक कर रहे थे। लेकिन राजनीति में मजाक भी मकसद के तहत किए जाते हैं। अजीत पवार और उनकी पार्टी एनडीए में कितने दिन रहेगी, यह देखना है।

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