महाराष्ट्र में राजनीतिक सीन तेजी से बदल रहा है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ जो विधायक उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर अलग हुए थे वे अब नया समीकरण बनने से बेचैन हो गए हैं। उनके मंत्री बनने की संभावनाएं धूमिल हो गई हैं। क्योंकि एनसीपी से अलग हुए अजित पवार खेमे के 8 विधायक मंत्री बन चुके हैं। मुख्यमंत्री शिंदे हालांकि इन विधायकों को समझा रहे हैं लेकिन विधायक संतुष्ट नहीं हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीएम एकनाथ शिंदे ने कल सोमवार को करीब 12 से ज्यादा विधायकों के साथ बैठक की और उन्हें आश्वासन दिया कि वो जल्द ही डिप्टी सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात करके तमाम लंबित मुद्दों पर बात करेंगे।
पिछले साल जून में विद्रोह के बाद शिंदे जब उद्धव से अलग हुए थे तो उन्होंने अलग होने की एक वजह तत्कालीन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में एनसीपी का बोलबाला बताया था। उस समय शिंदे ने कहा था कि शिवसेना के विधायकों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों के लिए धन नहीं मिल रहा है और ज्यादातर आवंटन एनसीपी विधायकों ने हड़प लिया है। क्योंकि अजित पवार एमवीए सरकार में वित्त विभाग संभाल रहे थे और डिप्टी सीएम भी थे। लेकिन अब समीकरण फिर बदल गए। उन्हीं शिंदे के सामने अजित पवार फिर से डिप्टी सीएम हैं और उनके साथ आए एनसीपी विधायक मंत्री बन गए हैं। शिंदे और उनकी राजनीतिक के लिए एनसीपी के विधायकों का आना एक चुनौती तो बन ही गया है।
शिंदे ने सोमवार को ठाणे में एक बंद कमरे में बैठक की। जिसमें कुछ विधायकों और पार्टी कार्यकर्ता शामिल थे। हालांकि इस बैठक को राज्य में विकास कार्यों पर चर्चा के लिए आयोजित बैठक बताया गया। लेकिन मीडिया को अंदर नहीं आने दिया गया।
कई कैबिनेट मंत्री भी ठाणे बैठक में मौजूद थे। बैठक के बाद शिंदे गुट के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया - "हमने सीएम शिंदे को अपनी अशांति और चिंताओं से अवगत करा दिया है क्योंकि एनसीपी सरकार में शामिल हो चुकी है। इसके नेताओं की वरिष्ठता को देखते हुए, उन्हें ज्यादातर बड़े विभाग मिलेंगे, जो हमारी चिंता है क्योंकि वे नेता अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का पक्ष लेंगे और सरकारी धन का इस्तेमाल करेंगे।"
उस नेता ने कहा, "एनसीपी ही वो वजह है कि हमने शिंदे के साथ जाने और एक साल पहले अपने नेता उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह करने का फैसला किया था। अगर इस बार भी ऐसा ही व्यवहार हुआ, तो हममें से कुछ लोग फिर से निर्वाचित होने के लिए मुश्किलों में घिरे पाए जाएंगे।"
हालांकि शिंदे समर्थक विधायक और मंत्री शंभूराजे देसाई ने शिंदे गुट के विधायकों में बेचैनी की खबरों को खारिज कर दिया। सीएम शिंदे ने खुद अजित पवार और उनके साथ आए विधायकों का स्वागत किया है। अब सभी लोग मिलकर पीएम मोदी का हाथ मजबूत करेंगे और हिन्दुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे। अभी भी 14 मंत्री पद खाली हैं। शीघ्र ही उनको भरा जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषक मंत्री शंभूराजे देसाई के बयान से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि एनसीपी विधायकों के आने से चुनावी समीकरण भी बदल गया है। 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अब नए चुनावी समीकरण के तहत समझौता है। विश्लेषकों ने उदाहरण देकर बताया कि शिंदे समर्थक रायगढ़ से शिवसेना विधायक भरत गोगावाले और नासिक से सुहास कंडे की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही। क्योंकि उनसे ज्यादा कद के बड़े नेता उन्हीं के इलाकों से एनसीपी से आ गए हैं। जिनमें छगन भुजबल, अदिति तटकरे और वल्से पाटिल प्रमुख हैं। अब टिकट का फैसला इन्हें ध्यान में रखकर भाजपा करेगी। ये तीनों एनसीपी नेता शिंदे समर्थक विधायकों से कद में बड़े हैं।
शिंदे की कुर्सी रहेगी या जाएगी
रविवार के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद एकनाथ शिंदे की किस्मत धूमिल होती नजर आ रही है। जल्द ही शिवसेना विधायकों की अयोग्यता वाले मामले की सुनवाई शुरू होनी है। ऐसे में कानूनी विशेषज्ञों की राय है कि शिंदे के मुख्यमंत्री बने रहने की संभावना कम है। एनसीपी के अजीत पवार गुट के साथ गठबंधन करने का भाजपा का कदम इसकी पुष्टि भी कर रहा है।
विधानसभा स्पीकर कार्यालय ने विधायकों की अयोग्यता पर सुनवाई की प्रक्रिया फिर से शुरू करने का फैसला किया है। वह शिवसेना के दोनों गुटों के पांच याचिकाकर्ताओं को नोटिस भेजेगी, और उन्हें तय अवधि के भीतर लिखित रूप में अपना पक्ष पेश करने के लिए कहेगी।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि अगर स्पीकर शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित रूपरेखा के अनुसार काम करते हैं, तो शिंदे और उनके विधायकों को अयोग्य ठहराना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा, "संवैधानिक विशेषज्ञों से परामर्श के बाद विधायिका को एहसास हुआ कि उसके सामने कितना कठिन कार्य है। स्पीकर कार्यालय से दोनों पक्षों के सदस्यों को नोटिस भेजने में देरी इसी वजह से हुई। भाजपा का नया सहयोगी ढूंढने का कदम भी शायद इसी वजह से उठाया गया है।''
बहरहाल, स्पीकर 11 अगस्त से पहले इस मामले में कोई न कोई फैसला लेना होगा कि शिवसेना के बागी विधायकों को अयोग्य ठहराया जाएगा या नहीं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने में इस पर फैसला लेने को कहा था, जिसकी समय सीमा 11 अगस्त है।
हालांकि, बीजेपी के एक नेता के मुताबिक, शिंदे के कार्यकाल पर अनिश्चितता के बावजूद बीजेपी लोकसभा चुनाव तक उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि इससे नतीजों पर असर पड़ेगा। उन्होंने खुलासा किया, "इस प्रकार लंबित याचिकाओं पर सुनवाई लोकसभा चुनाव तक लंबी हो सकती है।" यानी स्पीकर अपना फैसला लोकसभा चुनाव के आसपास सुनाएं।