यह किसी फ़िल्मी ड्रामे से कम नहीं था। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में लोग अपने घरों में सोए हुए थे, लेकिन राजभवन में लोगों की नींद टूट चुकी थी। राजभवन का स्टाफ़ जग चुका था और अपने काम पर मुस्तैदी से लग चुका था। महामहिम राज्यपाल ने सूरज उगने से पहले से राज्य में बहुत बड़े राजनीतिक उलटफेर को अंजाम दे दिया था।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने तड़के 5.47 पर राष्ट्रपति शासन ख़त्म करने का आदेश जारी कर दिया। केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने सुबह तीन लाइन का एक नोटिस जारी कर जानकारी दी कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन ख़त्म कर दिया, यह आदेश 23 नवंबर, 2019 से लागू है।
यहाँ यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या और कैसे हो गया सवाल यह भी उठता है कि क्या राज्यपाल ने संविधान के नियमों का पूरी तरह पालन किया है और क्या इसमें किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं हुई। पर्यवेक्षकों का कहना है कि नियम के मुताबिक़, पहले राज्यपाल अपनी रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजते हैं, सरकार वह रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजती है। उसके बाद राष्ट्रपति इस पर फ़ैसला लेते हैं। अब सवाल यह उठता है कि महामहिम राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट कब सरकार को भेजी और सरकार ने कब अपनी सिफ़ारिशें राष्ट्रपति के पास भेजी क्या यह सारा कुछ रात भर में ही हो गया
पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि सबसे पहले बदली हुई राजनीतिक स्थिति से राज्यपाल का संतुष्ट होना ज़रूरी है। अब सवाल यह है कि क्या राज्यपाल इससे संतुष्ट हो गए थे कि नई सरकार बन सकती है और इसलिए राष्ट्रपति शासन हटना चाहिए और उन्हें इसकी सिफ़ारिश कर देनी चाहिए।
अगला सवाल यह है कि वह कौन सी बदली हुई राजनीतिक स्थिति थी, जिससे राज्यपाल राष्ट्रपति शासन हटाने की ज़रूरत समझने लगे। क्या उनसे किसी राजनीतिक दल के नेता ने मुलाक़ात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया था
क्या बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने मुलाक़ात कर कहा था कि वे राज्य में स्थायी सरकार दे सकते हैं क्या फडणवीस ने इसके साथ ही उन्हें समर्थन देने वाले विधायकों के नामों की सूची भी पेश कर दी थी
लेकिन यदि देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल से मुलाक़ात की तो यह राजभवन के रिकार्ड में ज़रूर होगा। उनके समय माँगने का समय दर्ज होगा और जिस समय उन्होंने मुलाक़ात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया होगा, वह समय भी दर्ज होगा। क्या वाकई ऐसा रिकार्ड है, हमें पता नहीं।
संविधान के जानकारों का कहना है कि यह सब ज़रूरी नहीं है। यदि राज्यपाल संतुष्ट हैं तो वे सीधे राष्ट्रपति शासन ख़त्म करने की सिफ़ारिश कर सकते हैं और राष्ट्रपति शासन ख़त्म होने के बाद सीधे शपथ भी दिलवा सकते हैं। क्या महाराष्ट्र में ऐसा ही हुआ है
ऐसा नहीं है कि देश में ऐसा पहली बार हुआ है। लोगों को वह दिन याद होगा जब आंध्र प्रदेश में तत्कालीन मुख्य मंत्री एन.टी. रामराव को रातोंरात बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी थीं।
एनटीआर ने इसके ख़िलाफ़ बहुत बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिया था और सभी विधायकों लेकर दिल्ली पहुँच कर राष्ट्रपति के सामने उन्हें पेश कर दिया था। इंदिरा जी और उनकी कांग्रेस पार्टी को इसका राजनीतिक ख़ामियाजा भुगतना पड़ा था। क्या इस बार भी ऐसा ही कुछ होगा, यह सवाल पूछा जाना भी लाज़िमी है। इस बार कांग्रेस पार्टी को इस राजनीति का स्वाद चखना पड़ा है। लेकिन क्या वह इस स्थिति में है कि महाराष्ट्र में इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए कोई बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दे शायद नहीं।