महाराष्ट्र सरकार ने अगले तीन साल तक राज्य की नौकरियों में स्थानीय लोगों का कोटा 80% से घटा कर 60% करने का फ़ैसला किया है।
उद्धव ठाकरे सरकार ने यह फ़ैसला ऐसे समय किया है जब राज्य में लॉकडाउन की वजह से उद्योग धंधे बंद पड़े है। अब जबकि कामकाज शुरू हो रहा है, उनकी कामयाबी पर सवाल उठने लगे हैं।
बदलाव क्यों
समझा जाता है कि राज्य सरकार ने पूंजी निवेश और अधिक संख्या में बाहर के लोगों को आकर्षित करने के लिए यह फ़ैसला किया है।इसके पहले जब लॉकडाउन के दौरान बाहर से आए ज़्यादातर लोगों ने महाराष्ट्र छोड़ दिया और अपने गृह राज्य लौट गए, शिवसेना प्रमुख ने मराठियों से अपील की थी कि वे इन खाली जगहों को भरें और अधिक से अधिक नौकरी हासिल कर लें।
कौशल की कमी
महाराष्ट्र सरकार के एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'यह व्यवस्था इसलिए की गई है कि ईकाइयां बाहर के लोगों को 60 प्रतिशत तक नौकरी दें और स्थानीय लोगों को उसका प्रशिक्षण दें ताकि तीन साल बाद सभी स्थानीय लोगों को नौकरी दी जा सके।'एक अधिकारी ने यह भी कहा कि कुछ क्षेत्रों में ज़रूरी कौशल वाले लोगों की कमी हो सकती है। ऐसे में यह व्यवस्था की गई कि उस कौशल वाले लोगों को अधिक संख्या में रख लिया जाए।
शिवसेना पीछे हटी
महाराष्ट्र में जिस महा विकास अघाड़ी की सरकार चल रही है, उसके साझा न्यूनतम कार्यक्रम में कहा गया है कि विशेष विधेयक ला कर यह आवश्यक कर दिया जाएगा कि स्थानीय लोगों को 80 प्रतिशत नौकरियाँ दी जाएं।शिवसेना की अगुआई में चल रही सरकार के लिए यह बेहद अहम फ़ैसला है और इसका राजनीतिक असर पड़ सकता है। शिवसेना की राजनीति महाराष्ट्र और ख़ास कर मुंबई में बाहर के लोगों को नौकरी देने के विरोध पर टिकी हुई है। शिवसेना कई बार बिहार-उत्तर प्रदेश से नौकरी की तलाश में आए लोगों पर हमले कर चुकी है। ऐसे में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने का फ़ैसला अहम है।