+
समलैंगिकता का इलाज करने का दावा करने वालों के लाइसेंस रद्द हों: कोर्ट

समलैंगिकता का इलाज करने का दावा करने वालों के लाइसेंस रद्द हों: कोर्ट

LGBTQIA+ समुदाय के हक़ों की हिफ़ाजत के संदर्भ में मद्रास हाई कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की हैं। 

LGBTQIA+ समुदाय के हक़ों की हिफ़ाजत के संदर्भ में मद्रास हाई कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा है कि ऐसे डॉक्टर्स जो इस बात का दावा करते हों कि वे समलैंगिकता का इलाज करते हैं, उनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाने चाहिए। 

अदालत ने सोमवार को दिए आदेश में तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार के अफ़सरों से कहा कि वे ऐसी योजना तैयार करें जिससे LGBTQIA+ समुदाय के हक़-हकूक का सम्मान किया जा सके। अदालत ने एक समलैंगिक जोड़े की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बाते कहीं। इस जोड़े ने याचिका में पुलिस पर उनका उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। 

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने मामले की सुनवाई के बाद जोड़े के हक़ में फ़ैसला दिया। जोड़े के परिजनों की ओर से पुलिस में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी और इसके बाद से ही पुलिस लगातार उनसे सवाल-जवाब कर रही थी। 

यौन स्वायत्तता पर टिप्पणी

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि यौन स्वायत्तता निजता के अधिकार का एक अहम अंग है और न्यायिक सेवा से जुड़े अफ़सरों, पुलिस और जेलों के अफ़सरों के बीच में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, साथ ही स्कूलों-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव किया जाना चाहिए, जिससे इस समुदाय के साथ भेदभाव न हो। उन्होंने कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट होने चाहिए। 

जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि LGBTQIA+ समुदाय के लोगों को उनकी निजता का और सम्मान के साथ अपना जीवन जीने का पूरा हक़ है, इसके तहत उनका सेक्सुअल ओरियंटेशन, लिंग की पहचान और उसकी अभिव्यक्ति सहित अपने पार्टनर को चुनने की इच्छा शामिल है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इसे पूरी तरह से संवैधानिक सुरक्षा हासिल है। 

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने राज्य और केंद्र सरकार से कहा कि वे इस बारे में अदालत को बताएं कि वे इस समुदाय के लिए किस तरह के क़दम उठा सकते हैं। जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि शिक्षाविदों को अभिभावकों से मिलकर उन्हें LGBTQIA+ समुदाय से जुड़े मुद्दों के बारे में समझाना चाहिए। 

‘मनोवैज्ञानिक की सहायता ली’

जस्टिस वेंकटेश ने फ़ैसला सुनाते हुए एक बेहद अहम बात कही। उन्होंने कहा, “मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि मैं भी उन लोगों में से था जो अभी तक समलैंगिकता को पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं। अज्ञानता किसी भी तरह के भेदभाव के लिए कोई तर्क नहीं हो सकती।” उन्होंने कहा कि इसके बाद मैंने इसके बारे में जाना। जस्टिस ने कहा कि उन्होंने इस मामले में आदेश को लिखने के लिए एक मनोवैज्ञानिक की सहायता ली थी। 

अदालत ने यह भी कहा कि अगर पुलिस किसी गुमशुदा व्यक्ति की तलाश करती है और वह व्यस्क है और LGBTQIA+ समुदाय से है तो उसे तुरंत उसके गुमशदा होने की शिकायत को बंद कर देना चाहिए जिससे उनका उत्पीड़न न हो।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अदालत के इस फ़ैसले को सराहा है और कहा है कि इससे LGBTQIA+ समुदाय के साथ समानता भरा व्यवहार होगा। उम्मीद है कि अगर अदालत के द्वारा दिए गए आदेशों का पालन होगा तो LGBTQIA+ समुदाय को जिस सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, उसमें कमी आएगी और उनके हक़ उन्हें मिल सकेंगे। 

केन्द्र सरकार का रूख़ उल्टा 

एक ओर अदालत ने समलैंगिकों के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो, इसे लेकर अहम बातें अपने फ़ैसले में कही हैं, वहीं केन्द्र सरकार का रूख़ इस मामले में पूरी तरह उल्टा है। 

केन्द्र सरकार ने सितंबर, 2020 में समान लिंग में शादी की मंजूरी देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट से कहा था कि 'समान लिंग में शादी हमारी सभ्यता के ख़िलाफ़ है।' इस संबंध में दायर याचिका पर केन्द्र सरकार ने अपना जवाब अदालत को सौंपा था। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार से कहा था कि हम मानते हैं कि इसे लागू करने के लिए कई कानून आड़े आयेंगे, लेकिन दुनिया बदल रही है और सरकार को खुले दिमाग से इस बात पर विचार करना चाहिए। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें