राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में एक मामले में नरेंद्र मोदी को पछाड़ दिया। विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए मोदी ने जहां सिर्फ़ दस सभाएं कीं, वहीं राहुल ने 21 सभाएँ और दो रोड शो किए। तो ज़्यादा और कम चुनाव प्रचार के मायने क्या हैं? दोनों के प्रचार के तौर तरीकों से ही समझिए। नरेंद्र मोदी ने साल 2013 के विधानसभा चुनाव में ताबड़तोड़ तीन दर्ज़न से ज्यादा चुनावी सभाएँ मध्यप्रदेश में की थीं। उनके रोड शो भी हुए थे। इस चुनाव के ठीक बाद लोकसभा चुनाव में भी वे मध्यप्रदेश में क़रीब दो दर्ज़न चुनावी सभाओं और रोड शो के लिए आए थे, लेकिन मौजूदा चुनाव में 10 नवम्बर से 26 नवम्बर के बीच मोदी पाँच बार ही मध्यप्रदेश आए। उन्होंने कुल दस सभाएँ कीं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2013 की तुलना में अधिक समय देते हुए मध्यप्रदेश में 21 सभाएँ और दो रोड शो किए। अमित शाह ने 23 सभाएँ कीं और छह रोड शो किए।
मोदी के मध्यप्रदेश के दौरे और सभाएँ कम होने को लेकर मध्यप्रदेश कांग्रेस मीडिया सेल के उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता ने तंज कसते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री की सभाओं की संख्या घटाकर भाजपा ने कांग्रेस का भारी नुकसान किया।’
मोदी एक्सपोज हो गए हैं: कांग्रेस
भूपेन्द्र गुप्ता आगे कहते हैं, ‘साढ़े चार सालों में मोदी और उनकी सरकार देश के सामने पूरी तरह से एक्सपोज हो गए हैं। हर मोर्चे पर नाकामी की वज़ह से मोदी का 56 इंच का सीना पूरी तरह सिकुड़ गया है। भाजपा के लिए अब वे न तो निगल पाने और न ही उगल पाने वाला चेहरा बन चले हैं। आने वाले लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद आरएसएस उन्हें भी मार्गदर्शक मंडल में भेजने पर विचार करती नजर आएगी।’‘मोदी के जिम्मे देश-दुनिया इसलिए सभाएँ कम’
मध्यप्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने प्रधानमंत्री की सभाओं की संख्या में गिरावट पर दलील देते हुए कहा, ‘पिछले चुनाव में मोदी जी, मुख्यमंत्री थे। अब देश के प्रधानमंत्री हैं। अकेला सूबा नहीं जहां चुनाव थे। देश और दुनिया को भी उन्हें देखना होता है।'
मध्यप्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने कहा कि भाजपा ने जितनी ज़रूरत महसूस की और मांग रखी, उसके अनुरूप मोदी जी ने मध्य प्रदेश को वक़्त दिया।’