पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अंततः मध्य प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी छोड़ दी। कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के निकटस्थों में शुमार उम्रदराज (70 वर्षीय) विधायक डॉ. गोविंद सिंह को नया नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया है। सवाल यह है कि ग्वालियर-चंबल संभाग से आने वाले डॉक साहब ‘विधानसभा के 2018 जैसा करिश्मा दोहरा पायेंगे?’
मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस की चुनावी वैतरणी को किनारे लगाने वाले क्षेत्रों में ग्वालियर-चंबल संभाग का रोल भी बेहद अहम रहा था। ग्वालियर-चंबल संभाग की कुल 34 सीटों में से कांग्रेस की झोली में 26 सीटें आयी थीं। बीजेपी महज 7 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी। जबकि बसपा को एकमात्र सीट भिंड ज़िले में मिल सकी थी।
ग्वालियर-चंबल संभाग में साल 2013 के विधानसभा चुनावों की तुलना में बीजेपी को 2018 में 13 सीटों का बड़ा नुक़सान हुआ था। मध्य प्रदेश में 15 सालों के सतत वनवास के बाद कांग्रेस की साल 2018 में सत्ता में वापसी की एक बहुत खास वजह ज्योतिरादित्य सिंधिया रहे थे।
ग्वालियर-चंबल संभाग से आने वाले सिंधिया को 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति का मुखिया बनाया गया था। चमत्कारी चेहरे सिंधिया ने कोई कोर और कसर नहीं छोड़ी थी। पूरे प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए उन्होंने ताक़त झोंकी थी। मालवा-निमाड़ और ग्वालियर-चंबल में सबसे ज़्यादा चुनावी दौरे सिंधिया ने किये थे। दांव सफल रहा था। कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ में भी बीजेपी को धूल चटा दी थी। कमलनाथ का जादू महाकौशल में चला था।
विधानसभा के 2018 के चुनाव में मालवा-निमाड़ की कुल 66 सीटों में से 36 सीटें कांग्रेस ने हासिल की थीं। बीजेपी को 27 सीटें मिल पायी थीं। तीन पर कांग्रेस के बागी जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थे। मालवा-निमाड़ में भी बीजेपी को 2013 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 30 सीटों का भारी-भरकम नुकसान हुआ था। साल 2013 के चुनाव में बीजेपी को इस क्षेत्र की 66 में से 57 सीटें मिली थीं।
कुल मिलाकर अब अगले साल होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के सामने ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद पैदा हुई रिक्तता की भरपाई करना सबसे बड़ा लक्ष्य है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के रणनीतिकार कहते हैं, ‘सिंधिया के बीजेपी में चले जाने से तात्कालिक घाटा हुआ। कमलनाथ सरकार चली गई। लेकिन जनता ने गद्दारों को पहचान लिया। साल 2023 के विधानसभा चुनाव में वोटर सिंधिया और गद्दारी करने वाले अन्य कांग्रेसियों के साथ बीजेपी को भी बड़ा सबक़ सिखायेंगे।’
रणनीतिकार भले ही कुछ भी दावा करें, यह बात सोलह आने सही है, ‘सिंधिया के जाने से ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ के साथ-साथ प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी कांग्रेस के लिए बड़ा वैक्यूम क्रिएट हुआ है।’
कौन हैं गोविंद सिंह?
बात करें डॉ. गोविंद सिंह की तो वह सात बार के विधायक हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे। कमलनाथ ने भी अपनी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया था।
प्रेक्षकों का मानना है कि ठाकुर लीडर डॉ. सिंह सिंधिया के सामने कहीं भी नहीं टिकते हैं। न तो उनमें वाक् कला है और ना ही आक्रामक अंदाज। उम्र उन्हें वैसी इज़जात नहीं देती जैसी कि सिंधिया दौड़-भाग और दौरे करते हैं। डॉ. गोविंद सिंह अक्खड़ मिज़ाजी के लिए भी ख्यात हैं। ठन-ठोक बोलना उनकी आदत में शुमार है। यदि किसी मसले पर ‘अड़ जायें’ तो पीछे हटना पसंद नहीं करते। डॉ. गोविंद सिंह भिंड जिले की लहार सीट से विधायक हैं।
ग्वालियर-चंबल संभाग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 7 है। इन्हें साधना बेहद ज़रूरी है। क्षेत्र में उच्च जाति वर्ग बनाम अनुसूचित जाति वर्ग इक्वेशन ठीक नहीं है।
अनुसूचित जाति वर्ग का वोटर और लोग, उच्च वर्ग और इनमें भी खासकर ठाकुरों से दूरी बनाकर रखने लगे हैं। ऐसे में डॉ. गोविंद सिंह का दांव कांग्रेस के लिए कितना सफल होगा, आने वाला वक्त बतायेगा!
कमलनाथ ने कानों-कान भनक नहीं लगने दी
मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का दायित्व संभाल रहे कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे की भनक किसी को नहीं होने दी। गत दिवस दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाक़ात के वक्त वे इस्तीफा सौंप आये थे। अपनी जगह नये नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने वाला नाम दे आये थे। गुरुवार दोपहर कांग्रेस के प्रभारी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल का फैक्स भोपाल पहुंचा और प्रेस के लिये जारी हुआ तब कांग्रेसियों को भनक लगी कि नाथ ने विधानसभा में लीडर ऑफ अपोजिशन का पद छोड़ दिया है।
वेणुगोपाल के पत्र में सीएलपी लीडर पद से दिए गए इस्तीफे की मंजूरी और डॉ. गोविंद सिंह को नया नेता प्रतिपक्ष नियुक्ति किये जाने की सूचना दी गई। पत्र को कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मध्य प्रदेश के प्रभारी मुकुल वासनिक को भी इंडोस किया गया है।
विधानसभा में करने के लिए कुछ खास नहीं
मध्य प्रदेश विधानसभा में डॉ. गोविंद सिंह के पास नेता प्रतिपक्ष के नाते करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। इस साल वर्षाकालीन और शीतकालीन सत्र भर होना है। जबकि 2023 में बजट सत्र आयेगा। उसके बाद चुनावी माहौल ज़ोर पकड़ लेगा।
साल 2003 के बाद से मध्य प्रदेश विधानसभा में लंबे-लंबे सत्र चलने का सिलसिला लगभग ख़त्म हो गया है। दिग्विजय सिंह के दौर में साल में 75 दिनों का सत्र आम था। कई बार सत्र की अवधि साल भर में 100 के आसपास और इसके पार भी गई।
बीजेपी सत्ता में आयी तो सत्र छोटे होते चले गए। अब तो आलम यह है कि बहुत छोटा बजट सत्र भी तय अवधि तक नहीं चल पा रहा है। बिना चर्चा के बजट और बेहद अहम विधेयक पारित होना आम शिकायत बन चुकी है।