लोकसभा की सीटों का क्रम उत्तराखंड से शुरू होता है। राज्य की टिहरी लोकसभा सीट की संख्या 1 है, और हरिद्वार की 5। हालाँकि यह सीमान्त प्रदेश है, लेकिन मानचित्र के हिसाब से कश्मीर और हिमाचल प्रदेश और अधिक उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती प्रदेश हैं। उत्तराखंड को यह स्थान संभवतः स्वतंत्रता के बाद यहाँ की विशिष्ट राजनैतिक स्थिति के कारण प्राप्त हुआ। आज़ादी के बाद इस प्रदेश की टिहरी रियासत को व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव करवा कर देश का पहला स्वतंत्र राज्य बनने का गौरव हासिल हुआ। देश के अन्य राज्यों में स्वतंत्र विधानसभाओं के चुनाव 1952 में सम्पन्न हुए, जबकि टिहरी रियासत में 1948 में ही स्वतंत्र विधानसभा और स्वतंत्र राज्य का गठन हो चुका था।
वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद यहाँ एक बार, एक सीट के अपवाद को छोड़ कर कांग्रेस और बीजेपी बारी-बारी लोकसभा और विधानसभा में बाज़ी मारते आये हैं। यह भी रोचक संयोग है कि पिछले दो चुनावों में जिस दल की राज्य में सरकार रही, उसे लोकसभा में शून्य अंक मिला। 2009 के चुनावों में यहाँ बीजेपी की सरकार थी। तब राज्य की पाँचों लोकसभा सीटों पर उसका सूपड़ा साफ़ हुआ। 2014 में यहाँ कांग्रेस सता में थी तो उसे 5–0 के स्कोर पर संतोष करना पड़ा।
औसत से अधिक साक्षरता दर और बड़ी तादाद में यहाँ के निवासियों के नौकरी पेशा होने के कारण यहाँ राजनैतिक चहल-पहल कुछ ज़्यादा ही रहती है, ख़ासकर, अन्य पहाड़ी राज्यों के मुक़ाबले।
इस बार का चुनाव तलवार की धार पर लगे शहद को चाटने जैसा चुनौती और जोख़िम से भरा है। पाँचों सीटों पर एक से बढ़ कर एक दिग्गज किस्मत आजमा रहे हैं।
कभी गोविन्द वल्लभ पन्त, उनके पुत्र कृष्ण चन्द्र पन्त और फिर नारायण दत्त तिवारी जैसे नेताओं का मैदान रह चुकी यह सीट इस बार कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत और बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का अखाड़ा बनी पड़ी है। दोनों में एक रोचक समानता यह है कि दोनों पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। अजय भट्ट तब भी न केवल अपनी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष, बल्कि नेता प्रतिपक्ष भी थे। बीजेपी की भीषण सुनामी में भी वह ठीक-ठाक अंतर से हारे। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तब दो-दो विधानसभा सीटों पर हारने का कीर्तिमान बनाया। लेकिन राज्य में स्वयं की तथा पार्टी की बुरी पराजय के बावजूद उनके आलाकमान का उन पर विश्वास समाप्त नहीं हुआ। उन्हें इस हार के बाद पहले कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव और फिर असम का प्रभारी बनाया गया, जिन पदों पर वह अभी तक विद्यमान हैं। नयन तिवारी के निधन और भुवन चन्द्र खंडूरी के विमुख होने के बाद वह प्रदेश में सबसे बड़े कद के स्वाभाविक नेता हैं।
मोदी का कितना असर
दूसरी ओर, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के पक्ष में उनकी पार्टी के सत्तारूढ़ होने और संगठन की मज़बूती का गणित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को उनके क्षेत्र में सभा कर लौट चुके हैं। लेकिन इस बार उनके जलसे में पिछली बार जैसा चमत्कार नज़र नहीं आया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत कुमाऊँनी में लिखी 10 पंक्तियाँ पढ़ कर कीं, लेकिन यह आयुध भी अधिक मार नहीं कर सका, क्योंकि पिछली बार भी प्रधानमंत्री ऐसा ही कर चुके हैं।
यहाँ के लोगों पर यह भेद भी खुल गया कि प्रधानमंत्री जहाँ भी जाते हैं, वहीं की भाषा में कुछ देर अपने लिखा भाषण पढ़ते हैं, और स्वयं को पूर्व जन्म में उसी प्रदेश का निवासी बताते हैं।
दूसरा रोचक मुक़ाबला पौड़ी गढ़वाल सीट पर है। यहाँ से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्री रह चुके कद्दावर नेता भुवन चन्द्र खंडूरी के पुत्र मनीष खंडूरी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। वह ऐन मौक़े पर बीजेपी में अपने पिता के अपमान का हवाला देते हुए कांग्रेस में शामिल होकर बीजेपी को हैरान कर कई समीकरण उलट-पुलट कर चुके हैं। भुवन चन्द्र खंडूरी यद्यपि तकनीकी रूप से अभी बीजेपी में हैं, लेकिन उनकी चुप्पी कई अटकलों को जन्म दे रही है। प्रधानमंत्री की उत्तराखंड यात्रा में भी वह कहीं नहीं दिखे, बीजेपी की प्रचार सामग्री में भी कहीं उनका उल्लेख नहीं है। कभी केन्द्रीय मंत्री भक्त दर्शन और हेमवती नन्दन बहुगुणा जैसे दिग्गजों को दिल्ली भिजवाने वाले इस क्षेत्र में इस बार फिर राजनीतिक लू के थपेड़े चल रहे हैं।
तीन अन्य सीटों पर भी रोचक मुक़ाबला
राज्य की अन्य तीन सीटें भी सहज नहीं हैं। टिहरी सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह मौजूदा सांसद महारानी राज लक्ष्मी शाह का मुक़ाबला कर रहे हैं। रानी और उनका परिवार 10 चक्र में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। अल्मोड़ा सीट पर कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा, केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा से भिड़े हैं तो मुख्यमंत्री रह चुके चतुर राजनेता रमेश पोखरियाल हरिद्वार से दुबारा दिल्ली पहुँचने की जी-तोड़ कोशिशों में जुटे हैं।
मतदान को कम ही दिन बच गए हैं। यहाँ पहले चरण में 11 अप्रैल को वोट पड़ने हैं। पहाड़ों पर इस बार अभी भी रह-रह कर बर्फ़बारी हो रही है। मौसम ठंडा भी है और गर्म भी।