वायनाड के सहारे दक्षिण फ़तह करना चाहती है कांग्रेस 

07:29 pm Mar 31, 2019 | अरविंद यादव - सत्य हिन्दी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट के साथ ही केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कुछ लोगों को लगता है कि अमेठी सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से तगड़े मक़ाबले की वजह से ही राहुल गाँधी ने दक्षिण की एक ‘सुरक्षित’ सीट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। लेकिन राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के पीछे कई कारण हैं। 

पहला कारण यह कि राहुल गाँधी दक्षिण से चुनाव लड़कर यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में कहीं भी दक्षिण को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया है। दूसरा कारण यह कि दक्षिण में बीजेपी सिर्फ़ कर्नाटक को छोड़कर बाक़ी जगह कमजोर है। 

राहुल की रणनीति है कि दक्षिण के कार्यकर्ताओं और सहयोगी दलों में उत्साह बढ़ाया जाए ताकि वे बीजेपी को बुरी तरह से हराने की कोशिश में जी-जान लगा दें।

तीसरा कारण यह कि कांगेस आलाकमान को लगता है कि वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह से पार्टी को तीन राज्यों, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में सीधा फायदा होगा। 

वैसे तो वायनाड लोकसभा सीट केरल में है, लेकिन यह कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा से सटी हुई है। इस क्षेत्र में मलयालम, कन्नड़ और तमिल भाषी लोग रहते हैं। चौथा कारण यह कि कांगेस नहीं चाहती कि बीजेपी पिछले दिनों हुए सबरीमला आंदोलन का राजनीतिक लाभ उठाए। 

ग़ौरतलब है कि पिछले दिनों सबरीमला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करते हुए ज़बरदस्त आंदोलन हुआ था। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था। बीजेपी ने इस आंदोलन के ज़रिए केरल में अपना जनाधार बढ़ाकर पहली बार दक्षिण के इस राज्य से लोकसभा की सीट जीतने की योजना बनाई थी। 

कांगेस के रणनीतिकारों को लगता है कि वायनाड से चुनाव लड़ते हुए राहुल गाँधी बीजेपी की योजना को कामयाब होने से रोकेंगे। राहुल केरल में भी सॉफ़्ट हिंदुत्व की रणनीति को आज़माना चाहते हैं।

पाँचवा कारण यह है कि राहुल से पहले उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी दक्षिण से चुनाव लड़ चुकी हैं। सियासत के मुश्किल समय में इंदिरा गाँधी ने आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से भी चुनाव लड़ा था और शानदार जीत हासिल की थी। इस जीत की वजह से कांग्रेस ने दक्षिण में अपना खोया जनाधार एक बार फिर वापस हासिल किया था और केंद्र में भी कांगेस की शानदार जीत हुई थी।

राहुल की माँ सोनिया गाँधी भी दक्षिण से चुनाव लड़ चुकी हैं। सोनिया गाँधी ने 1999 के लोकसभा चुनाव में बेल्लारी सीट से बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को हराया था।

राहुल गाँधी ने केरल को इस वजह से भी चुना है कि उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने इस राज्य से अभी तक चुनाव नहीं लड़ा है। वैसे कई राज्यों के कांग्रेसी नेताओं ने राहुल से उनके राज्य से चुनाव लड़ने की अपील की थी। लेकिन राहुल ने वायनाड का ही चुनाव किया।

'सुरक्षित' सीट मानी जा रही वायनाड

वायनाड को चुनने की एक बड़ी वजह यह भी है यह सीट राहुल के लिए पूरी तरह से ‘सुरक्षित’ मानी जा रही है। वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 2009 में अस्तित्व में आया था। 2009 और 2014, दोनों ही चुनावों में यहाँ से कांगेस की ही जीत हुई थी। दोनों बार कांगेस के उम्मीदवार एमएल शाहनवाज ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई के उम्मीदवार को हराया था। लेफ़्ट फ़्रंट ने यह सीट इस बार भी सीपीआई को दी है। शाहनवाज का नवंबर 2018 में निधन हो गया था। तभी से यह सीट खाली है। चूँकि लोकसभा चुनाव नजदीक थे, इस वजह से यहाँ उपचुनाव नहीं कराया गया। 

वायनाड में 49 फ़ीसदी मतदाता हिंदू हैं जबकि क़रीब 27 फीसदी मुसलमान और 22 फ़ीसदी ईसाई मतदाता हैं।

कांगेस को लगता है कि ज़्यादातर मुसलमान और ईसाई मतदाता ही नहीं बल्कि हिंदू वोटर भी उसके साथ हैं। यहाँ से सीपीआई ने सुनीर को अपना उम्मीदवार बनाया है और वह मजबूत प्रत्याशी नहीं हैं। बीजेपी का भी यहाँ जनाधार नहीं है। इन्हीं कारणों से राहुल गाँधी ने माना कि दक्षिण में वायनाड ही सबसे 'सुरक्षित' सीट है।

ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि राहुल ने कर्नाटक की बेल्लारी, बेंगलुरु दक्षिण सीटों पर भी गंभीरतापूर्वक विचार किया लेकिन आख़िर में वायनाड को ही चुना। वायनाड सहित केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर 23 अप्रैल को मतदान होगा।

सीपीआई ने जताई कड़ी आपत्ति 

लेकिन कांग्रेस के सामने एक परेशानी है। सीपीआई ने राहुल गाँधी को चुनाव मैदान में उतारने पर कड़ी आपत्ति जताई है। सीपीआई के नेताओं का कहना है कि उनसे संपर्क किये बिना इतना बड़ा फ़ैसला लिया गया है। 

सीपीआई को लगता है कि कांग्रेस के इस एकतरफ़ा फ़ैसले से विपक्षी एकता, मोदी विरोधी पार्टियों की एकता को झटका लगा है। लेकिन कांग्रेस का मानना है कि वे नाराज़ वामपंथी दोस्तों का ग़ुस्सा ठंडा करने में कामयाब होंगे।